सिस्टसरकोसिस
सिस्टसरकोसिस एक ऊतकीय संक्रमण है जो फीताकृमि (टीनियासोलियम)के लार्वा (सिस्टसिरेकस) द्वारा होता है।[1][2] लोगों को बरसों तक इसके कोई भी लक्षण नहीं हो सकते हैं या बेहद कम लक्षण प्रकट हो सकते हैं, इसके चलते त्वचा या मांसपेशियों में लगभग एक या दो सेंटीमीटर के दर्दरहित ठोस उभार उत्पन्न हो सकते हैं, या मस्तिष्क के प्रभावित होने की स्थिति में उनमें स्नायविक लक्षण दिख सकते हैं।[3][4] महिनों या वर्षों के बाद इन उभारों में दर्द हो सकता है और सूजन पैदा हो सकती है। विकासशील देशों में दौरों का यह सबसे आम कारण है। [3]
Cysticercosis वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
![]() | |
---|---|
एक व्यक्ति में चुंबकीय अनुनाद छवि, जिसमें मस्तिष्क के भीतर कई अल्सर दिखाई दे रहे हैं।. | |
आईसीडी-१० | B69. |
आईसीडी-९ | 123.1 |
डिज़ीज़-डीबी | 3341 |
मेडलाइन प्लस | 000627 |
ईमेडिसिन | emerg/119 med/494 ped/537 |
एम.ईएसएच | D003551 |
कारण व निदान
यह आम तौर पर फीताकृमि के अंडों से संक्रमित खाद्य या पानी को ग्रहण करने से होता है। बिना पकाई गयी सब्जियां इसका प्रमुख कारण हैं।[2] फीताकृमि के ये अंडे, वयस्क कृमियों से संक्रमित व्यक्ति के मल से आते हैं, एक स्थिति जिसे टनायसिस कहते हैं।[3][5] टनायसिस एक भिन्न रोग है तथा कम या गलत तरीके से पकाए गए शूकर के मीट को खाने से होता है।[2] वे लोग जो फीताकृमि से पीड़ित किसी व्यक्ति के सथ रहते हैं उनमें सिस्टसरकोसिस के होने का जोखिम अधिक होता है।[5] पुटिका (सिस्ट) के निष्कर्षण से निदान किया जा सकता है।[3] मस्तिष्क में रोग होने की स्थिति में [[कम्प्यूटर टोमोग्राफी (सीटी) या मैग्नेटिक रेसोनेनेस इमेजिंग (एमआरई) द्वारा मस्तिष्क की तस्वीर निदान के लिए सबसे उपयोगी होती है। प्रमस्तिष्कीय मेरुरज्जु द्रव और रक्त में स्नोफिल्स कही जाने वाली श्वेत रक्त कणिकाओं की बढ़ी हुई संख्या को भी संकेतक के रूप में उपयोग किया जाता है। [3]
रोकथाम व उपचार
निजी स्वच्छता तथा साफ-सफाई द्वारा संक्रमण की प्रभावी रूप से रोकथाम की जा सकती है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: शूकर को पूरा पकाना, उपयुक्त शौचालय और साफ पानी तक पर्याप्त पहुंच। विस्तार से बचाव के लिए टनायसिस से पीड़ित का उपचार भी महत्वपूर्ण है। [2] रोग के उपचार में तंत्रिका तंत्र को शामिल करने की जरूरत नहीं हो सकती है।[3] न्यूरोसिस्टोसरकोसिस से पीड़ित लोगों के उपचार में प्राज़ीक्वाटेल या अल्बेंडाज़ोल दवाओं की जरूरत पड़ सकती है। इसकी जरूरत लंबी अवधि तक पड़ सकती है। उपचार के दौरान सूजन-रोधी के रूप में स्टेरॉएड तथा दौरा-रोधी दवाओं की भी जरूरत पड़ सकती है। सिस्ट (पुटिका) को हटाने के लिए शल्यक्रिया की जरूरत पड़ सकती है।[2]
महामारी विज्ञान
पोर्क फीताकृमि एशिया, उप-सहारा अफ्रीका तथा लातिन अमरीका में विशेष रूप से आम है।[3] कुछ क्षेत्रों में यह माना जाता है कि 25% लोग प्रभावित होते हैं।[3] विकसित देशों में यह बहुत मामूली होती है।[6]विश्वव्यापी रूप से 2010 में इससे लगभग 1,200 मौतें हुई थीं, जबकि 1990 तक इनकी संख्या लगभग 700 तक थी।[7] सिस्टोसरकोसिस शूकरों व गायों को भी होती है, लेकिन इनमें लक्षण बेहद कम दिखते हैं क्योंकि दोनो का ही जीवन काल छोटा होता है।[2] पूरे मानव इतिहास में यह रोग होता रहा है।[6] यह उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों में से एक है।[8]