4 मई का आंदोलन

बीजिंग में 4 मई 1919 को विरोध के साथ चीनी सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलन शुरू हुआ

4 मई का आंदोलन चीन का एक प्रमुख आंदोलन था। वर्साय की सन्धि की शर्तों से चीन का जनमानस उद्विग्न हो उठा। इस संधि द्वारा शांतुंग को जापान को देने का जो निर्णय लिया गया उससे चीन के राष्ट्रीय हित और प्रतिष्ठा को आघात पहुंचा। 4 म‌ई 1919 ई. को प्राय: पांच हजार विद्यार्थियों ने पेकिंग में विराट प्रदर्शन किया। ऐसा क्षोभ प्रदर्शन उसी दिन शंघाई शहर में भी हुआ। सारे चीन में नवयुवकों और विद्यार्थियों के आंदोलन की धूम मच गई। यह आंदोलन केवल युवा वर्ग तक ही सीमित नहीं रहा गया। इसमें मध्यम वर्ग के लोग, श्रमिक और अन्य वर्ग के लोग सम्मिलित थे। आंदोलनकारी चीन के किसी भी भूभाग पर किसी अन्य राष्ट्र का अधिकार स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। वे गौरव की रक्षा किसी भी मूल्य पर करने को तैयार थे। इसी जन आक्रोश के बीच चीन में प्रगतिशील शक्तियां सजग हो गई और चीन के आधुनिक करण का प्रयास इस आंदोलन से ही आरंभ हो गया।[1]

4 मई आंदोलन के दौरान बीजिंग में विद्यार्थियों का प्रदर्शन।

चीन में एक सांस्कृतिक क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार होने लगी अब चीन के बुद्धिजीवी ने चीन की राजनीतिक और सांस्कृतिक परंपराओं की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठना आरंभ कर दिया।[2][3]

उन्होंने अनुभव किया कि एक नया शक्तिशाली चीन के निर्माण के लिए प्रचलित परंपराओं को समाप्त करना आवश्यक है। केवल राजतंत्र की समाप्ति से ही देश की समस्या का समाधान संभव है। चीन के बुद्धिजीवी पूर्ण रूप से अब यह निर्णय ले चुके थे कि अपने सेना के निर्माण के लिए एक नए सांस्कृतिक परंपरा का आरंभ करना आवश्यक है। इसी सोच के कारण ही चीन में एक सांस्कृतिक क्रांति शुरू हुई। यह बुद्धिजीवी कनफ्यूशियसवाद के विरोधी थे तथा वे पूर्व और पश्चिम की संस्कृति को समन्वित करना चाहते थे।[4] इसके अलावा वह भाषा में सुधार कर एक नई साहित्यिक परंपरा की नींव डालना चाहते थे। इस नये सांस्कृतिक आंदोलन में चेन तु सिउ की भूमिका महत्वपूर्ण थी। अब चीन में इस संस्कृतिक क्रांति के कारण राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ राष्ट्रीयता की इस भावना का परिणाम 4 मई का आंदोलन था। इस आंदोलन में समाज के सभी वर्गों के भाग लेने के कारण यह एक जन आंदोलन बन गया। आंदोलनकारी चीन में विदेशी हस्तक्षेप का खुलकर विरोध किए तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार भी करना उन्हें आरंभ कर दिया। इस आंदोलन से चीन के आधुनिकीकरण का मार्ग प्रशस्त हो गया। इसी आंदोलन से चीन में श्रमिक और विद्यार्थियों का आंदोलन आरंभ हुआ। चीन के बुद्धिजीवी मार्क्सवाद के प्रति आकर्षित हुए। वे धीरे-धीरे स्थिति से अवगत हुए कि देश की समस्याओं का समाधान समाजवादी पद्धति से ही हो सकता है। 4 मई के आंदोलन में साम्यवाद के बीच छिपे हुए थे। चीन के भावी महान साम्यवादी नेता माओ त्से तुंग ने भी इस आंदोलन में भाग लिया था। अब धीरे-धीरे चीन में मार्क्स और एंजिल्स के सिद्धांत का प्रसार आरंभ हो गया। कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो का चीनी भाषा में अनुवाद किया गया। 4 मई के आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसी के कारण चीन के बुद्धिजीवी अपने देश को एक प्रगतिशील देश बनाने के लिए दृढ़ संकल्प लिए। इस आंदोलन ने चीन के निवासियों को नवजागरण का संदेश दिया एवं प्रगतिशील दृष्टि प्रदान की।

सन्दर्भ

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