सागर नितल प्रसरण
सागर नितल प्रसरण (अंग्रेज़ी:Seafloor spreading) एक भूवैज्ञानिक संकल्पना है जिसमें यह अभिकल्पित किया गया है कि स्थलमण्डल समुद्री कटकों के सहारे प्लेटों में टूट कर इस कटकीय अक्ष के सहारे सरकता है और इसके टुकड़े एक दूसरे से दूर हटते हैं तथा यहाँ नीचे से मैग्मा ऊपर आकार नए स्थलमण्डल (प्लेट) का निर्माण करता है।[1]
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/f/f5/Earth_seafloor_crust_age_1996_-_2.png/300px-Earth_seafloor_crust_age_1996_-_2.png)
भौतिक भूगोल सविंदर सिंह यह सिद्धांत 1960 में प्रतिपादित किया हैरी हैस महोदय के द्वारा सागर मित्र प्रश्न सिद्धांत के प्रतिपादक से पूर्व हेरियस में निम्नलिखित तथ्यों का विश्लेषण किया
मध्य महासागरीय कटक के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्गार सामान्य किया है जिससे अत्यधिक मात्रा में लावा बाहर निकलता है और भूपर्पटी का निर्माण होता हैसागरीय अधस्तल का विस्तार
जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है, प्रवाह उपरांत अध्ययनों ने महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत की, जो वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के समय उपलब्ध नहीं थी। चट्टानों के पुरा चुंबकीय अध्ययन और महासागरीय तल के मानचित्रण ने विशेष रूप से निम्न तथ्यों को उजागर कियाः
(i) यह देखा गया कि मध्य महासागरीय कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्गार सामान्य क्रिया है और ये उद्गार इस क्षेत्र में बड़ ी मात्रा में लावा बाहर निकालते हैं।
चित्र 4.5 ः संसार की प्रमुख बड़ ी व छोटी प्लेट का वितरण
(ii) महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पाई जाने वाली चट्टानों के निर्माण का समय, संरचना, संघटन और चुंबकीय गुणों में समानता पाई जाती है। महासागरीय कटकों के समीप की चट्टानों में सामान्य चुंबकत्व ध्रुवण (Normal polarity) पाई जाती है तथा ये चट्टानें नवीनतम हैं। कटकों के शीर्ष से दूर चट्टानों की आयु भी अधिक है।
(iii) महासागरीय पर्पटी की चट्टानें महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों की अपेक्षा अधिक नई हैं। महासागरीय पर्पटी की चट्टानें कहीं भी 20 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी नहीं हैं।
(iv) गहरी खाइयों में भूकंप के उद्गम अधिक गहराई पर हैं। जबकि मध्य-महासागरीय कटकों के क्षेत्र में भूकंप उद्गम केंद्र (Foci) कम गहराई पर विद्यमान हैं।
इन तथ्यों और मध्य महासागरीय कटकों के दोनों तरफ की चट्टानों के चुंबकीय गुणों के विश्लेषण के आधार पर हेस (Hess) ने सन् 1961 में एक परिकल्पना प्रस्तुत की, जिसे ‘सागरीय अधस्तल विस्तार’ (Seafloor spreading) के नाम से जाना जाता है। हेस (Hess) के तर्कानुसार महासागरीय कटकों के शीर्ष पर लगातार ज्वालामुखी उद्भेदन से महासागरीय पर्पटी में विभेदन हुआ और नया लावा इस दरार को भरकर महासागरीय पर्पटी को दोनों तरफ धकेल रहा है। इस प्रकार महासागरीय अधस्तल का विस्तार हो रहा है। महासागरीय पर्पटी का अपेक्षाकृत नवीनतम होना और इसके साथ ही एक महासागर में विस्तार से दूसरे महासागर के न सिकुड़ ने पर, हेस (Hess) ने महासागरीय पर्पटी के क्षेपण की बात कही। हेस केअनुसार, यदि ज्वालामुखी पर्पटी से नई पर्पटी का निर्माण होता है, तो दूसरी तरफ महासागरीय गर्तों में इसका विनाश भी होता है। चित्र 4.3 में सागरीय तल विस्तार की मूलभूत संकल्पना को दिखाया गया है।
महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पाई जाने वाली चट्टानों के निर्माण का समय संरचना संगठन एवं चुंबकीय गुणों में समानता पाई जाती है
कटकों के समीप चट्टानी नवीनतम और कटकों के दूर जाने पर क्रमश अधिक प्राचीन चट्टाने पाई जाती है
महासागरीय पेटी की चट्टाने महाद्वीपीय प्रॉपर्टी की चट्टानों की अपेक्षा अधिक नवीन है
गहरी खाई में भूकंप के उद्गम अधिक गहराई पर जबकि मध्य महासागरीय कटक के क्षेत्र में भूकंप कम गहराई पर उत्पन्न होते हैं
=सन्दर्भ==