सलफ़ी आंदोलन
सलफ़ी आंदोलन, जिसे सलफीयत और सलाफिया भी कहा जाता है, सुन्नी इस्लाम के भीतर एक सुधार शाखा या पुनरुत्थानवादी आंदोलन है[1][2][3] or revivalist[4] जो 19 वीं शताब्दी के अंत में मिस्र में, यूरोपीय साम्राज्यवाद के विरोध के रूप में विकसित हुआ था।[4][5][6][7][8] 18 वीं शताब्दी में शुरू हुए वहाबी आंदोलन में इसकी जड़ें थीं, जोकी आधुनिक सऊदी अरब के नज्द क्षेत्र में उत्पन्न हुई थीं। सलफ़ी आंदोलन, सलाफ की परंपराओं की वापसी की वकालत करती है। सलाफ़ यानि मुस्लिमों की पहली तीन पीढ़ियां, जो सलाफी मान्यता के अनुसार उन्होंने इस्लाम के अपरिवर्तित, शुद्ध रूप का पालन किया करते थे।[9] उन पीढ़ियों में इस्लामी पैगंबर मुहम्मद और उनके साथी (साहब), उनके उत्तराधिकारी (तबिउन), और उत्तराधिकारीयों के उत्तराधिकारी (तबा तबीउन) शामिल हैं।
सलाफी सिद्धांत धर्म के शुरुआती वर्षों में वापस देखने पर आधारित है, यह समझने के लिए कि समकालीन मुसलमानों को अपने धर्म का पालन कैसे करना चाहिए।[10] वे धार्मिक नवाचार या बिदाह को अस्वीकार करते हैं, और शरिया (इस्लामी कानून) के कार्यान्वयन का समर्थन करते हैं। इस आंदोलन को अक्सर तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है: सबसे बड़ा समूह शुद्धतावादी हैं, जो राजनीति से बचते हैं; दूसरा सबसे बड़ा समूह राजनीतिक एक्टिविस्टों का है, जो राजनीति में शामिल होते हैं तीसरा समूह जिहादीयों का हैं, जो काफी कम संख्या में हैं और शुरुआती इस्लामी तरीके को बहाल करने के लिए सशस्त्र संघर्ष की वकालत करते हैं। कानूनी मामलों में, सलाफी दो गुटों में विभाजित हैं, पहले वो जो स्वतंत्र कानूनी निर्णय (इज्तिहाद) के नाम पर, कानून के चार सुन्नी शालाओं (मज़ाहिब) के सख्त पालन (तक्लिद) को अस्वीकार करते हैं, और अन्य वो लोग जो इन के प्रति वफादार रहते हैं।[11][12]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- कट्टरता की इबारत (खुर्शीद अनवर)
- वहाबी आतंकवाद का नया चेहरा (नवभारत टाइम्स)
- वहाबी रिपब्लिक बन रहा है पाकिस्तान (डी डब्ल्यू वर्ड)
- अरब के 'बहावी इस्लाम' को सफल नहीं होने देंगे हम भारत के मुसलमान (विस्फोट)
- वहाबियत, वास्तविकता और इतिहास 4 (इस्लामी धर्म एकता परिषद)