विलुप्ति
जीव विज्ञान में विलुप्ति (extinction) उस घटना को कहते हैं जब किसी जीव जाति का अंतिम सदस्य मर जाता है और फिर विश्व में उस जाति का कोई भी जीवित जीव अस्तित्व में नहीं होता। अक्सर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी जीव का प्राकृतिक वातावरण बदल जाता है और उसमें इन बदली परिस्थितियों में पनपने और जीवित रहने की क्षमता नहीं होती। अंतिम सदस्य की मृत्यु के साथ ही उस जाति में प्रजनन द्वारा वंश वृद्धि की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं। पारिस्थितिकी में कभी कभी विलुप्ति शब्द का प्रयोग क्षेत्रीय स्तर पर किसी जीव प्रजाति की विलुप्ति से भी लिया जाता है।
संरक्षण स्थिति |
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विलुप्त होने का जोखिम |
विलुप्त |
संकटग्रस्त |
कम जोखिम |
यह भी देखें |
प्रकृति संरक्षण हेतु अंतरराष्ट्रीय संघ ![]() |
अध्ययन से पता चला है कि अपनी उत्पत्ति के औसतन १ करोड़ वर्ष बाद जाति विलुप्त हो जाती है, हालांकि कुछ जातियां दसियों करोड़ों वर्षों तक जारी रहती हैं। पृथ्वी पर मानव के विकसित होने से पहले विलुप्तियां प्राकृतिक वजहों से हुआ करती थीं। माना जाता है कि पूरे इतिहास में जितनी भी जातियां पृथ्वी पर उत्पन्न हुई हैं उनमें से लगभग ९९.९% विलुप्त हो चुकी हैं।[1] मानवों के आगमन के बाद उसने बहुत सी जातियों को शिकार या अन्य गतिविधियों से विलुप्त कर दिया है और बहुत सी जातियों को विलुप्ति की कगार पर ला खड़ा किया है।
सामूहिक विलुप्ति एक विशेष प्रकार की घटना होती है जिसमें एक छोटे से काल में बहुत सी जातियां विलुप्त हो जाती हैं और पूरी पृथ्वी के सम्पूर्ण जीवन में कमी आती है।[2] सामूहिक विलुप्ति पृथ्वी पर असाधारण है लेकिन जातियों में छिट-पुट विलुप्ति होती रहती है। बहुत से वैज्ञानिक आधुनिक काल में मानवों द्वारा किए गए बदलावों (जैसे की वनों का नाश, प्रदूषण और वातावरण में बदलाव) के कारण तेज़ी से हो रही विलुप्तियों को लेकर चिंतित हैं।[3]