माइक्रोफोन

microphone-mic

एक माइक्रोफोन (जिसे बोलचाल की भाषा में Mic या Mike [दोनों का उच्चारण /ˈmaɪk/ (माइक)] कहा जाता है) एक ध्वनिक-से-वैद्युत ट्रांसड्यूसर (en:Transducer) या संवेदक होता है, जो ध्वनि को विद्युतीय संकेत में रूपांतरित करता है। 1876 में, एमिली बर्लिनर ( en:Emile Berliner) ने पहले माइक्रोफोन का आविष्कार किया, जिसका प्रयोग टेलीफोन स्वर ट्रांसमीटर के रूप में किया गया। माइक्रोफोनों का प्रयोग अनेक अनुप्रयोगों, जैसे टेलीफोन, टेप रिकार्डर, कराओके प्रणालियों, श्रवण-सहायता यंत्रों, चलचित्रों के निर्माण, सजीव तथा रिकार्ड की गई श्राव्य इंजीनियरिंग, FRS रेडियो, मेगाफोन, रेडियोटेलीविजन प्रसारण और कम्प्यूटरों में आवाज़ रिकार्ड करने, स्वर की पहचान करने, VoIP तथा कुछ गैर-ध्वनिक उद्देश्यों, जैसे अल्ट्रासॉनिक परीक्षण या दस्तक संवेदकों के रूप में किया जाता है।

शॉक माउंट वाला एक न्यूमन U87 कंडेंसर माइक्रोफोन

वर्तमान में प्रयोग किये जाने वाले अधिकांश माइक्रोफोन यांत्रिक कंपन से एक विद्युतीय आवेश संकेत उत्पन्न करने के लिये एक विद्युतचुंबकीय प्रवर्तन (गतिज माइक्रोफोन), धारिता परिवर्तन (दाहिनी ओर चित्रित संघनित्र माइक्रोफोन), पाइज़ोविद्युतीय निर्माण (Piezoelectric Generation) या प्रकाश अधिमिश्रण का प्रयोग करते हैं।

प्रकार

किसी माइक्रोफोन के संवेदनशील ट्रांसड्यूसर तत्व को इसका तत्व या कैप्सूल कहा जाता है। एक संपूर्ण माइक्रोफोन में एक ढांचा, एक तत्व से किसी अन्य उपकरण तक संकेत लाने का कोई माध्यम और संचालित किये जा रहे उपकरण तक कैप्सूल के आउटपुट को अनुकूलित करने के लिये अक्सर एक विद्युतीय परिपथ भी शामिल होता है। माइक्रोफोनों का उल्लेख उनके ट्रांसड्यूसर सिद्धांत, जैसे संघनित्र, गतिज आदि, के द्वारा तथा उनकी दिशात्मक विशेषताओं के द्वारा किया जाता है। माइक्रोफोन का वर्णन करने के लिये कभी-कभी कुछ अन्य विशेषताओं, जैसे मध्यपट का आकार, अभीष्ट प्रयोग या माइक्रोफोन की मुख्य-धुरी से ध्वनि के मुख्य स्रोत तक अभिविन्यास (अंत- या पार्श्व-संबोधन) का प्रयोग किया जाता है।

संघनित्र माइक्रोफोन

ओक्टावा 319 कंडेंसर माइक्रोफोन के अन्दर

एक संघनित्र माइक्रोफोन,[1] जिसे संधारित्र माइक्रोफोन या विद्युत्स्थैतिक माइक्रोफोन भी कहते हैं, में मध्यपट संधारित्र की एक प्लेट के रूप में कार्य करता है और कंपन इन प्लेटों के बीच अंतर को परिवर्तित करता है। इस प्रकार निर्मित ट्रान्सड्यूसर से श्राव्य आउटपुट प्राप्त करने की दो विधियां हैं: DC-अभिनत (DC-biased) और रेडियो आवृत्ति (RF) या उच्च आवृत्ति (HF) संघनित्र माइक्रोफोन. एक DC-अभिनत माइक्रोफोन में, प्लेटें एक स्थिर आवेश (Q) के साथ अभिनत होती हैं। संधारित्र प्लेटों के पार अनुरक्षित वोल्टेज हवा में होने वाले कंपनों के साथ धारिता सूत्र (C=Q/V) के अनुसार परिवर्तित होता है, जहां, Q= कूलम्ब में मापा जाने वाला आवेश, C= फैरेड में मापी जाने वाली धारिता और V= वोल्ट में मापा जाने वाला संभावित अंतर (Potential Difference) हैं। समानांतर-प्लेट वाले किसी संधारित्र के लिये प्लेटों की धारिता उनके बीच अंतर के साथ प्रतिलोम रूप से आनुपातिक होती है। (विवरण के लिये धारिता देखें.) स्थिर और चलायमान प्लेटों की असेम्बली को एक "तत्व" या कैप्सूल कहा जाता है।

संधारित्र पर एक लगभग स्थिर आवेश बनाए रखा जाता है। जैसे-जैसे धारिता बदलती जाती है, संधारित्र पर उपस्थित इस आवेश में भी बहुत थोड़ा परिवर्तन होता जाता है, लेकिन सुनी जा सकनेवाली आवृत्तियों पर यह समुचित रूप से स्थिर ही बना रहता है। कैप्सूल की धारिता (लगभग 5-100 pF) और अभिनत प्रतिरोधक का मान (100 मेगओह्म (megohms) से दसियों गिगओह्म (gigohms)) मिलकर एक फिल्टर का निर्माण करते हैं, जो ध्वनि संकेतों के लिये उच्च-पार (Highpass) और अभिनत वोल्टेज के लिये निम्न-पार (Lowpass) होता है। ध्यान दें कि एक RC परिपथ का समय स्थिरांक प्रतिरोध और धारिता के गुणनफल के बराबर होता है।

धारिता परिवर्तन की समय-सीमा के भीतर (20 Hz ध्वनि संकेत पर अधिकतम 50 ms), आवेश प्रायोगिक रूप से स्थिर होता है और संधारित्र के पार तात्कालिक रूप से परिवर्तित होता वोल्टेज धारिता में हो रहे परिवर्तन को प्रतिबिंबित करता है। संधारित्र पर उपस्थित वोल्टेज अभिनत वोल्टेज से ऊपर और नीचे परिवर्तित होता रहता है। अभिनत और संधारित्र के बीच वोल्टेज का अंतर क्रमिक प्रतिरोधक पर दिखाई देता है। प्रतिरोधक पर स्थित वोल्टेज को प्रदर्शन या रिकॉर्डिंग के लिये परिवर्धित किया जाता है।

AKG C451B लघु-डायाफ्राम कंडेंसर माइक्रोफोन

RF संघनित्र माइक्रोफोन अपेक्षाकृत कम RF वोल्टेज का प्रयोग करते हैं, जो एक निम्न-शोर वाले दोलक द्वारा उत्पन्न किया जाता है। यह दोलक कैप्सूल के मध्यपट को हिलानेवाली ध्वनि तरंगों द्वारा उत्पन्न धारिता परिवर्तन द्वारा आयाम आपरिवर्तित होता है या यह कैप्सूल एक गुंजायमान परिपथ, जो दोलक संकेत की आवृत्ति को आपरिवर्तित करता है, का भाग भी हो सकती है। डिमॉड्यूलेशन बहुत कम स्रोत प्रतिबाधा के साथ कम-शोर वाला ध्वनि-आवृत्ति संकेत प्रदान करता है। एक उच्च अभिनत वोल्टेज की अनुपस्थिति कम तनाव वाले एक मध्यपट का प्रयोग करने की अनुमति देती है, जिसका प्रयोग उच्च अनुकूलता के कारण अधिक चौड़ी आवृत्ति प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिये किया जा सकता है। RF अभिनतीकरण (RF-biasing) की प्रक्रिया का परिणाम एक निम्न विद्युतीय प्रतिबाधा कैप्सूल के रूप में मिलता है, जिसका एक उपयोगी उपोत्पाद यह है कि RF संघनित्र माइक्रोफोनों को नमी-युक्त मौसम वाली परिस्थियों में भी संचालित किया जा सकता है, जो कि DC-अभिनत माइक्रोफोनों में समस्या उत्पन्न कर सकती है, जिनकी रोधक सतहें दूषित हो गईं हों. माइक्रोफोनों की सेन्हीज़र (Sennheiser) "MKH" श्रृंखला RF अभिनतीकरण तकनीक का प्रयोग करती है।

संघनित्र माइक्रोफोन सस्ते कराओके माइक्रोफोनों के माध्यम से टेलीफोन ट्रांस्मीट्ररों से लेकर ध्वनि की पुनरोत्पत्ति की उच्च-अचूकता वाले रिकॉर्डिंग माइक्रोफोनों तक की श्रेणी में होते हैं। सामान्यतः वे एक उच्च-गुणवत्ता वाला ध्वनि संकेत उत्पन्न करते हैं और अब वे प्रयोगशाला और स्टूडियो रिकॉर्डिंग अनुप्रयोगों में एक लोकप्रिय पसंद बन गए हैं। वह द्रव्यमान, जिसे हिलाना प्रासंगिक ध्वनि तरंगों के लिये अनिवार्य होता है, बहुत कम होना इस प्रौद्योगिकी की एक अंतर्निहित उपयुक्तता है, जबकि इसके विपरीत अन्य माइक्रोफोन प्रकारों में ध्वनि तरंगों के लिये अधिक कार्य करना आवश्यक होता है। उनमें ऊर्जा के स्रोत की आवश्यकता होती है, जो फैण्टम ऊर्जा जैसे माइक्रोफोन आउटपुट के माध्यम से या एक छोटी बैटरी के द्वारा प्रदान की जाती है। ऊर्जा संधारित्र प्लेट वोल्टेज की स्थापना के लिये आवश्यक होती है और माइक्रोफोन इलेक्ट्रॉनिक्स को शक्रि प्रदान करने के लिये भी इसकी आवश्यकता पड़ती है (इलेक्ट्रेट की स्थिति में प्रतिबाधा रूपांतरण और RF/HF माइक्रोफोनों की स्थिति में DC-तरंगित माइक्रोफोन, डिमॉड्यूलेशन या पहचान). संघनित्र माइक्रोफोन दो मध्यपटों के साथ भी उपलब्ध होते हैं, जिनसे प्राप्त संकेतों को ध्रुवीय शैलियों की एक श्रेणी प्रदान करने के लिये विद्युतीय रूप से जोड़ा जा सकता है (नीचे देखें), जैसे कारडायोड, सर्वदिशात्मक तथा अंग्रेज़ी में आठ का आकार. कुछ माइक्रोफोनों के साथ सहज रूप से पैटर्न में परिवर्तन कर पाना भी संभव है, जैसे Røde NT2000 या CAD M179.

इलेक्ट्रेट संघनित्र माइक्रोफोन

जी. एम. सेसलर और अन्य द्वारा फॉयल इलेक्ट्रेट माइक्रोफोन पर पहला पेटेंट (पृष्ठ 1 से 3)

एक इलेक्ट्रेट माइक्रोफोन संधारित्र माइक्रोफोन का एक अपेक्षाकृत नया प्रकार है, जिसका गेरहार्ड सेसलर (Gerhard Sessler) और जिम वेस्ट (Jim West) ने 1962 में बेल लैबोरेटरीज़ (Bell laboratories) में किया।[2]ऊपर संघनित्र माइक्रोफोन के अंतर्गत वर्णित बाहरी रूप से लागू किया गया आवेश एक इलेक्ट्रेट पदार्थ में एक स्थाई आवेश के द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। एक इलेक्ट्रेट एक लौह-विद्युतीय पदार्थ होता है, जिसे स्थाई तौर पर विद्युतीय रूप से आवेशित या तरंगित किया जाता है। यह नाम इलेक्ट्रोस्टैटिक और मैग्नेट (चुंबक) के मिलकर बना है; पदार्थ में स्थिर आवेशों के सरेखण के द्वारा एक इलेक्ट्रे में एक स्थिर आवेश जोड़ा जाता है, जो कि लगभग वैसा ही होता है, जैसे लोहे के किसी टुकड़े में चुंबकीय क्षेत्र के सरेखण द्वारा चुंबक का निर्माण किया जाता है।

उनके अच्छे प्रदर्शन और उत्पादन की सरलता और इसके परिणामस्वरूप कम लागत, के कारण वर्तमान समय में बननेवाले माइक्रोफोनों में से अधिकांश इलेक्ट्रेट माइक्रोफोन होते हैं; एक सेमीकण्डक्टर उत्पादक[3] का वार्षिक आकलन एक बिलियन इकाइयों से अधिक का है। लगभग सभी सेल-फोन, कम्प्यूटर, PDA तथा हेडसेट माइक्रोफोन इलेक्ट्रेट प्रकार के हैं। उच्च-गुणवत्ता वाली रिकॉर्डिंग और लैवेलियर प्रयोग से लेकर छोटे ध्वनि रिकॉर्डिंग उपकरणों और टेलीफोनों में अंतर्निर्मित माइक्रोफोनों तक अनेक अनुप्रयोगों में उनका उपयोग किया जाता है। यद्यपि किसी समय इलेक्ट्रेट माइक्रोफोनों को कम गुणवत्ता वाले समझा जाता था, लेकिन आज इस श्रेणी के सर्वश्रेष्ठ माइक्रोफोन प्रत्येक क्षेत्र में पारंपरिक संघनित्र माइक्रोफोन से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं और वे लंबी अवधि तक की स्थिरता और किसी मापन माइक्रोफोन के लिये आवश्यक अत्यंत-स्पष्ट प्रतिक्रिया भी दे सकते हैं। अन्य संधारित्र माइक्रोफोनों के विपरीत, उनमें किसी ध्रुवीकरण वोल्टेज की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन अक्सर उनमें एक एकीकृत पूर्व-प्रवर्धक लगा होता है, जिसे विद्युत शक्ति की आवश्यकता होती है (जिसे अक्सर गलत रूप से ध्रुवीकरण विद्युत-शक्ति या अभिनत (bias) कहा जाता है). ध्वनि की पुनर्शक्ति और स्टूडियो अनुप्रयोगों के लिये अक्सर यह पूर्व-प्रवर्धक फैण्टम द्वारा विद्युत-शक्ति प्राप्त करता है। पर्सनल कम्प्यूटर (PC) के लिये निर्मित माइक्रोफोन, जिन्हें कभी-कभी मल्टीमीडिया माइक्रोफोन कहा जाता है, एक स्टीरियो 3.5 mm प्लग का प्रयोग (एक मोनो स्रोत के माध्यम से) करते हैं, जिसमें रिंग को कम्प्यूटर में एक 5 V आपूर्ति से एक प्रतिरोधक के माध्यम से (सामान्यतः) विद्युत-शक्ति प्राप्त होती है; दुर्भाग्य से, अनेक असंगत गतिज माइक्रोफोन भी 3.5 mm प्लग में जोड़ दिये जाते हैं। यद्यपि शोर के स्तर के सन्दर्भ में बहुत थोड़े इलेक्ट्रेट माइक्रोफोन सर्वश्रेष्ठ DC-ध्रुवीकृत इकाइयों से प्रतिस्पर्धा करते हैं, लेकिन ऐसा इलेक्ट्रेट की अंतर्निहित सीमा के कारण नहीं है। बल्कि, आंतरिक आयामों में आवश्यक सख़्त सहनशीलताओं के कारण बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिये आवश्यक तकनीकें स्वयं को उच्चम गुणवत्ता वाले माइक्रोफोनों के उत्पादन के लिये आवश्यक अचूकता के साथ खुद को प्रस्तुत नहीं करते. ये सहनशीलताएं सभी संघनित्र माइक्रोफोनों के लिये समान होती हैं, चाहे DC, RF या इलेक्ट्रेट किसी भी प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाए.

गतिज माइक्रोफोन

पिट्टी स्मिथ एक शुरे SM58 (गत्यात्मक कारडायोड प्रकार) माइक्रोफोन में गा रहे हैं

गत्यात्मक माइक्रोफोन विद्युत-चुंबकीय प्रवर्तन के माध्यम से कार्य करते हैं। वे सख़्त, अपेक्षाकृत सस्ते और आर्द्रता के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। इसके साथ ही फीडबैक से पूर्व उनकी संभावित रूप से उच्च-प्राप्ति उन्हें मंच पर प्रयोग के लिये आदर्श बनाती है।

गतिमान कुण्डली वाले माइक्रोफोन भी लाउडस्पीकर जैसे ही गतिज सिद्धांत का प्रयोग करते हैं, लेकिन वह विपरीत होता है। एक छोटी से गतिमान प्रवर्तन कॉइल, जिसे एक स्थाई चुम्बक के चुंबकीय क्षेत्र में रखी जाती है, को मध्यपट से जोड़ा जाता है। जब ध्वनि माइक्रोफोन के वातरोधी शीशे से प्रवेश करती है, तो ध्वनि तरंगें मध्यपट को हिलाती हैं। जब मध्यपट में कंपन होता है, तो कॉइल चुंबकीय क्षेत्र में चली जाती है, जिससे विद्युत-चुंबकीय प्रवर्तन के माध्यम से कॉइल में एक बदलती हुई विद्युत-धारा उत्पन्न होती है। एक एकल गतिज पर्दा सभी ध्वनि आवृत्तियों के प्रति रेखीय रूप से प्रतिक्रिया नहीं देते. इसी कारण कुछ माइक्रोफोनों में ध्वनि स्पेक्ट्रम के विभिन्न भागों के लिये अनेक पर्दों का प्रयोग क्रते हैं और इसके बाद परिणामित संकेतों को संयोजित करते हैं। अनेक संकेतों को ठीक प्रकार से संयोजित करना कठिन होता है और ऐसा कर पाने वाली रचनाएं बहुत दुर्लभ और महंगी होती हैं। वहीं दूसरी ओर, विभिन्न अन्य रचनाएं विशिष्ट रूप से ध्वनि स्पेक्ट्रम के पृथक्कृत भागों पर केंद्रित होती हैं। उदाहरणार्थ, AKG D 112 की रचना उच्च-स्वर के बजाय मंद्र-स्वर के प्रति प्रतिक्रिया देने के लिये की गई है।[4] ध्वनि इंजीनियरिंग में सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करने के लिये अक्सर विभिन्न प्रकार के माइक्रोफोनों का प्रयोग किया जाता है।

एडमंड लोवे एक रिबन माइक्रोफोन का उपयोग कर रहे हैं

रिबन माइक्रोफोन

रिबन माइक्रोफोन एक पतली, सामान्यतः सिकुड़ी हुई धातु की रिबन का प्रयोग करता है, जो चुंबकीय क्षेत्र में विलंबित होती है। यह रिबन विद्युतीय रूप से माइक्रोफोन के आउटपुट से जुड़ी होती है और चुंबकीय क्षेत्र के भीतर इसका कंपन विद्युतीय संकेत उत्पन्न करता है। रिबन माइक्रोफोन और गतिमान कुण्डली वाले माइक्रोफोन इस सन्दर्भ में समान होते हैं कि ये दोनों ही चुंबकीय प्रवर्तन के द्वारा ध्वनि उत्पन्न करते हैं। बुनियादी रिबन माइक्रोफोन एक द्विदिशात्मक (जिसे आकार-आठ भी कहते हैं) पैटर्न में ध्वनि की पहचान करते हैं क्योंकि रिबन, जो कि सामने और पीछे, दोनों ओर से ध्वनि के लिये खुली होती है, ध्वनि के दाब के बजाय दाब प्रवणता के प्रति प्रतिक्रिया देते हैं। हालांकि सामने और पीछे की ओर स्थित सममितीय पिक-अप सामान्य स्टीरियो रिकॉर्डिंग में एक समस्या हो सकती है, लेकिन रिबन माइक्रोफोन को क्षितिजात्मक रूप से, उदाहरण के लिये करताल के ऊपर, रखने पर उच्च-क्षेत्र अस्वीकृति का प्रयोग एक लाभ के लिये किया जा सकता है, ताकि पिछला लबादा केवल करताल के ऊपर से आने वाली ध्वनि को ही लेता है। 8 के आकार पर रेखित या ब्लूमलिन जोड़ा (Blumlein Pair), स्टीरियो रिकॉर्डिंग लोकप्रिय होती जा रही है और किसी रिबन माइक्रोफोन की आकार 8 प्रतिक्रिया उस अनुप्रयोग के लिये आदर्श होती है।

अन्य दिशात्मक पैटर्न रिबन के एक भाग को एक ध्वनिक-जाल या व्यारोध में सम्मिलित करके उत्पन्न किये जाते हैं, जिससे ध्वनि को केवल एक भाग में पहुंचने की अनुमति मिलती है। पारंपरिक RCA टाइप 77-DX (RCA Type 77-DX) माइक्रोफोन में बाह्य-रूप से समायोजित विभिन्न आंतरिक व्यारोध होते हैं, जो "आकार-8" से लेकर "एकदिशात्मक" तक विभिन्न प्रतिक्रिया शैलियों के चयन की अनुमति देते हैं। ऐसे पुराने रिबन माइक्रोफोन, जिनमें से कुछ अभी भी बहुत उच्च गुणवत्ता वाला ध्वनि पुनरुत्पादन प्रदान करते हैं, को किसी समय इसी कारण मूल्यवान माना जाता था, लेकिन एक अच्छी निम्न-आवृत्ति वाली प्रतिक्रिया केवल तभी प्राप्त की जा सकती है, यदि रिबन बहुत हल्के ढंग से विलंबित होती है और इसने उन्हें नाज़ुक बना दिया है। नये नैनोपदार्थों (nanomaterials) सहित अब ऐसे आधुनिक रिबन पदार्थ प्रस्तुत किये गये हैं, जो इन समस्याओं को दूर करते हैं और यहां तक निम्न आवृत्तियों पर रिबन माइक्रोफोनों की प्रभावी गतिज सीमा में सुधार भी करते हैं।[5] रक्षात्मक वात-पटल एक विशिष्ट रिबन को क्षति पहुंचने के खतरे को कम कर सकता है और साथ ही रिकॉर्डिंग में स्पर्श शिल्पकृतियों को भी घटा सकता है। उपयुक्त रूप से रचित वात-पटल नगण्य उच्च-स्वर क्षीणन उत्पन्न करते हैं। सामान्यतः गतिज माइक्रोफोनों कि अन्य श्रेणियों में, रिबन माइक्रोफोनों में फैण्टम विद्युत-शक्ति की आवश्यकता नहीं होती; वस्तुतः यह वोल्टेज कुछ पुराने रिबन माइक्रोफोनों को क्षतिग्रस्त कर सकता है। कुछ नए आधुनिक रिबन माइक्रोफोन डिज़ाइन एक पूर्व-प्रवर्धक को सम्मिलित करते हैं और अतः इनमें फैण्टम शक्ति की आवश्यकता होती है और आधुनिक अप्रत्यक्ष रिबन माइक्रोफोनों, अर्थात् वे जिनमें उपरोक्त वर्णित पूर्व-प्रवर्धक नहीं होते, के परिपथ विशिष्ट रूप से फैण्टम विद्युत-शक्ति द्वारा रिबन तथा परिवर्तक को होने वाली क्षति को रोकने के लिये बनाए जाते हैं। साथ ही, कुछ नए रिबन भी उपलब्ध हैं, जो वात-विस्फोटों और फैण्टम विद्युत-शक्ति के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।

कार्बन माइक्रोफोन

बर्लिनर और एडिसन माइक्रोफोनों जैसा एक कार्बन माइक्रोफोन एक कैप्सूल या बटन का प्रयोग करता है, जिसमें धातु की दो प्लेटों के बीच कार्बन कणिकाएं दबी हुई होती हैं। धातु की इन प्लेटों के पार एक वोल्टेज लागू किया जाता है, जिससे विद्युत-प्रवाह की एक छोटी-सी मात्रा कार्बन से होकर प्रवाहित होती है। इनमें से एक प्लेट, मध्यपट, संयोगित ध्वनि तरंगों के साथ कंपित होती है और कार्बन में बदलता हुआ दाब लागू करती है। यह बदलता हुआ दाब इन कणिकाओं को विरुपित कर देता है, जिससे आसन्न कणिकाओं के प्रत्येक जोड़े के बीच का संपर्क-क्षेत्र में परिवर्तित होता है और जिससे कणिकाओं के द्रव्यमान के विद्युतीय प्रतिरोध में परिवर्तन करता है। प्रतिरोध में परिवर्तन माइक्रोफोन से होकर प्रवाहित हो रहे संबंधित विद्युत-प्रवाह में परिवर्तन करता है, जिससे विद्युतीय संकेत उत्पन्न होते हैं। किसी समय कार्बन माइक्रोफोनों का प्रयोग टेलीफोनों में आम थाल उनमें ध्वनि पुनरुत्पादन की गुणवत्ता बहुत ही निम्न होती है और इसकी आवृत्ति प्रतिक्रिया श्रेणी बहुत सीमित होती है, लेकिन वे बहुत शक्तिशाली उपकरण होते हैं। कार्बन की गेंदों का प्रयोग करनेवाला 1880 का बॉडेट माइक्रोफोन कणिका कार्बन बटन माइक्रोफोन जैसा ही एक आविष्कार था।[6]

माइक्रोफोनों के अन्य प्रकारों के विपरीत, ऊर्जा की थोड़ी मात्रा का उपयोग करके कार्बन माइक्रोफोन का प्रयोग बड़ी मात्रा में विद्युतीय ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये प्रवर्धक के एक प्रकार के रूप में भी किया जा सकता है। कार्बन माइक्रोफोनों के उपयोग के उदाहरण प्रारंभिक टेलीफोन पुनरावर्तकों में भी मिलते हैं, जिनके कारण निर्वात नलिकाओं के युग से पहले भी टेलीफोन पर लंबी दूरी की बात-चीत कर पाना संभव हो सका. ये पुनरावर्तक एक चुंबकीय टेलीफोन रिसीवर को एक कार्बन माइक्रोफोन के साथ यांत्रिक रूप से युग्मित करके कार्य करते थे: रिसीवर से प्राप्त क्षीण संकेत को माइक्रोफोन पर स्थानांतरित किया जाता था और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न शक्तिशाली विद्युतीय संकेत निचली पंक्ति में आगे बढ़ाया जाता था। इस प्रवर्धन प्रभाव का एक उदाहरण फीडबैक से उत्पन्न दोलन था, जिसका परिणाम, यदि पुराने "मोमबत्ती-दान" टेलीफोन के आकर्णक को यदि कार्बन माइक्रोफोन के पास रखा गया हो तो, एक श्रवणीय ध्वनि के रूप में मिलता था। कार्बन की गेंदों का प्रयोग करनेवाला 1881 का बॉडेट माइक्रोफोन चूर्ण-युक्त कार्बन बटन माइक्रोफोन का अनुवर्ती था।

पाइज़ोइलेक्ट्रिक माइक्रोफोन

एक क्रिस्टल माइक्रोस्कोप या पाइज़ो माइक्रोस्कोप कम्पनों को एक विद्युत संकेत में बदलने के लिये पाइज़ोइलेक्ट्रिसिटी- दबाव की स्थिति में एक वोल्टेज उत्पन्न करने की कुछ पदार्थों की क्षमता- की अवधारणा का प्रयोग करता है। रोशेल लवण (Rochelle Salt) (पोटेशियम सोडियम टार्ट्रेट) इसका एक उदाहरण है, जो एक पाइज़ोइलेक्ट्रिक क्रिस्टल है, जो एक माइक्रोफोन और एक पतले लाउडस्पीकर दोनों के रूप में एक ट्रांस्ड्यूसर के रूप में कार्य करता है। किसी समय क्रिस्टल माइक्रोस्कोप की आपूर्ति आमतौर पर निर्वात नलिकाओं (वाल्व) उपकरण, जैसे घरेलू टेप रिकॉर्डर, के साथ की जाती थी। उनकी उच्च आउटपुट प्रतिबाधा की तुलना निर्वात नलिकाओं की उच्च इनपुट प्रतिबाधा (विशिष्टतः 10 मेगओह्म (megohms)) से की जा सकती थी। शुरेुआती ट्रांज़िस्टर उपकरणों से उनकी तुलना कर पाना कठिन था और एक समय ऐसा आया, जब बहुत शीघ्र उनका स्थान गतिज माइक्रोफोनों ने और बाद में इलेक्ट्रेट संघनित्र उपकरणों ने ले लिया। क्रिस्टल माइक्रोफोन की उच्च प्रतिबाधा ने इसे स्वतः माइक्रोफोन से और इससे जुड़ी तार से उत्पन्न होने वाले संचालन शोर के प्रति अतिसंवेदनशील बना दिया.

अक्सर पाइज़ोइलेक्ट्रिक ट्रांस्ड्यूसरों का प्रयोग ध्वनिक वाद्य-यंत्रों से प्राप्त ध्वनि को प्रवर्धित करने, ड्रम की चोटों को पहचानने के लिये, विद्युतीय नमूनों को शुरेु करने और चुनौतीपूर्ण वातावरणों, जैसे उच्च-दाब के अंतर्गत जल के नीचे, ध्वनि रिकॉर्ड करने के लिये संपर्क माइक्रोफोनों के रूप में किया जाता है। ध्वनिक गिटारों के जीन-आरोहित पिक-अप सामान्यतः पाइज़ोइलेक्ट्रिक उपकरण होते हैं, जो जीन के ऊपर से गुज़रने वाली तारों से संपर्क करते हैं। इस प्रकार का माइक्रोफोन किसी विशिष्ट विद्युतीय गिटार पर आमतौर पर दिखाई देने वाले चुंबकीय कॉइल पिक-अप, जो कंपन को पकड़ने के लिये यांत्रिक युग्मन के बजाय चुंबकीय प्रवर्तन का प्रयोग करते हैं, से भिन्न होता है।

फाइबर ऑप्टिक माइक्रोफोन

ऑप्टोएकाउस्टिक्स 1140 फाइबर ऑप्टिक माइक्रोफोन

पारंपरिक माइक्रोफोनों के समान धारिता या चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन की पहचान करने के बजाय एक फाइबर ऑप्टिक माइक्रोस्कोप प्रकाश की तीव्रता में हुए परिवर्तन की पहचान के द्वारा ध्वनिक तरंगों को विद्युतीय संकेतों में रूपांतरित करता है।[7][8]

इस कार्य के दौरान, एक लेज़र स्रोत से प्राप्त प्रकाश एक फाइबर ऑप्टिक से होकर गुज़रते समय छोटे, ध्वनि-संवेदी परावर्तक मध्यपट को प्रकाशित करता है। ध्वनि मध्यपट में कंपन उत्पन्न करती है, जिससे इसके द्वारा परावर्तित किये जा रहे प्रकाश की तीव्रता में सूक्ष्म परिवर्तन होता है। इसके बाद यह आपरिवर्तित प्रकाश दूसरे ऑप्टिकल फाइबर से होकर एक प्रकाश संसूचक तक संचारित किया जाता है, जो संचारण या रिकॉर्डिंग के लिये तीव्रता-आपरिवर्तित प्रकाश को एनालॉग से डिजिटल ध्वनि में रूपांतरित करता है। फाइबर ऑप्टिक माइक्रोफोनों में उच्च गतिज और आवृत्ति सीमा पुनरोत्पत्ति की उच्च-अचूकता वाले सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक माइक्रोफोनों के समान होती है।

फाइबर ऑप्टिक माइक्रोफोन किसी भी विद्युतीय, चुंबकीय, विद्युत्स्थैतिक या रेडियोधर्मी क्षेत्रों के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं देते या उसे प्रभावित नहीं करते (इसे EMI/RFI प्रतिरोध-क्षमता कहते हैं). अतः फाइबर ऑप्टिक डिज़ाइन ऐसे क्षेत्रों में प्रयोग के लिये आदर्श होता है, जहां पारंपरिक माइक्रोफोन का प्रयोग अप्रभावी या खतरनाक हो सकता है, जैसे औद्योगिक टर्बाइन या [[चुंबकीय अनुकंपन चित्रण (Magnetic Resonance Imaging [MRI])]] उपकरण वातावरणों के भीतर.

फाइबर ऑप्टिक माइक्रोस्कोप सख़्त, उष्मा और नमी में वातावरणीय परिवर्तनों के प्रति प्रतिरोधी होते हैं और उन्हें किसी भी दिशात्मकता या प्रतिबाधा मिलान के लिये प्रयोग किया जा सकता है। किसी भी प्रवर्धक तथा/या अन्य विद्युतीय उपकरण की आवश्यकता के बिना माइक्रोफोन के प्रकाश स्रोत और इसके प्रकाश संसूचक के बीच कई किलोमीटर तक का अंतर हो सकता है, जिसके कारण फाइबर ऑप्टिक माइक्रोफोन औद्योगिक और निगरानी ध्वनिक निरीक्षण के लिये उपयुक्त होते हैं।

फाइबर ऑप्टिक माइक्रोफोनों का प्रयोग बहुत विशिष्ट अनुप्रयोग क्षेत्रों, जैसे इन्फ्रासाउंड निरीक्षण और शोर-निरस्तीकरण में किया जाता है। वे चिकीत्सीय अनुप्रयोगों में विशेष रूप से सफल साबित हुए हैं, जैसे वे रेडियोलॉजिस्ट, कर्मचारियों और मरीजों को शक्तिशाली और शोरपूर्ण चुंबकीय क्षेत्र के अंतर्गत MRI सूट और साथ ही साथ दूरस्थ नियंत्रण कक्षों के भीतर सामान्य रूप से वार्तालाप करने की अनुमति देते हैं।[9] अन्य प्रयोगों में औद्योगिक उपकरण निरीक्षण और पहचान, ध्वनिक अंशशोधन और मापन, पुनरोत्पत्ति की उच्च-अचूकता वाली रिकॉर्डिंग और फाइबर ऑप्टिक माइक्रोफोनों का प्रयोग बहुत विशिष्ट अनुप्रयोग क्षेत्रों, जैसे इन्फ्रासाउंड निरीक्षण और शोर-निरस्तीकरण में किया जाता है। वे चिकीत्सीय अनुप्रयोगों में विशेष रूप से सफल साबित हुए हैं, जैसे वे रेडियोलॉजिस्ट, कर्मचारियों और मरीजों को शक्तिशाली और शोरपूर्ण चुंबकीय क्षेत्र के अंतर्गत MRI सूट और साथ ही साथ दूरस्थ नियंत्रण कक्षों के भीतर सामान्य रूप से वार्तालाप करने की अनुमति देते हैं।[10] अन्य प्रयोगों में औद्योगिक उपकरण निरीक्षण और पहचान, ध्वनिक अंशशोधन और मापन, पुनरोत्पत्ति की उच्च-अचूकता वाली रिकॉर्डिंग और क़ानून प्रवर्तन शामिल हैं।

लेज़र माइक्रोफोन

लेज़र माइक्रोफोन अक्सर फिल्मों में जासूसी उपकरणों के रूप में प्रदर्शित किये जाते हैं। किसी खिड़की की सतह या ध्वनि से प्रभावित होने वाली किसी अन्य समतल सतह पर एक लेज़र किरण लक्ष्यित की जाती है। इस सतह के हल्के कंपन प्रत्यावर्तित किरण को विस्थापित करते हैं, जिससे यह ध्वनि तरंग को अनुरेखित करती है। कंपित होते हुए लेज़र बिंदु को अब पुनः ध्वनि में रूपांतरित किया जाता है। एक अधिक सख़्त और महंगे क्रियान्वयन में, प्रत्यावर्तित प्रकाश को विभाजित करके एक इन्टरफेरोमीटर (Interferometer) में भेजा जाता है, जो डॉप्लर प्रभाव के कारण आवृत्ति में होने वाले परिवर्तनों की पहचान करता है। पूर्व क्रियान्वयन एक टेबल पर रखा जाने वाला प्रयोग था; बाद वाले के लिये अत्यधिक स्थिर लेज़र और सूक्ष्म प्रकाश-विज्ञान की आवश्यकता होती है।

एक नए प्रकार का लेज़र माइक्रोफोन एक ऐसा उपकरण होता है, जो मुक्त हवा में ध्वनि कंपनों की पहचान करने के लिये एक लेज़र किरणों और धुएं या भाप का प्रयोग करता है। 25 अगस्त 2009 को, एक लेज़र-फोटोसेल (Laser-Photocell) जोड़े के साथ लेज़र के मार्ग में धुएं या भाप की एक गतिमान धारा पर आधारित पर्टिक्युलेट फ्लो डिटेक्शन माइक्रोफोन (Particulate Flow Detection Microphone) के लिये अमरीकी पेटेंट 7,580,533 जारी हुआ। ध्वनि दाब तरंगें धुएं में व्यवधान उत्पन्न करती हैं, जो प्रकाश संसूचक तक पहुंचने वाले लेज़र प्रकाश की मात्रा में कंपन उत्पन्न करता है। इस उपकरण का एक प्रतिमान 9 से 12 अक्टूबर 2009 तक न्यूयॉर्क सिटी में आयोजित ऑडियो इंजीनियरिंग सोसाइटी के 127वें सम्मेलन में प्रदर्शित किया गया।

तरल माइक्रोफोन

एक परिवर्तनीय प्रतिरोधी माइक्रोफोन/ट्रांसमीटर को शामिल करके एलेक्ज़ेंडर ग्राहम बेल (Alexander Graham Bell) द्वारा प्रारंभिक माइक्रोफोनों में सुधार किये जाने तक वे सुस्पष्ट स्वर उत्पन्न नहीं करते थे। बेल का तरल ट्रांसमीटर एक धातु के कप से मिलकर बना था, जिसे पानी से भरकर उसमें सल्फ्यूरिक अम्ल की थोड़ी मात्रा मिलाई गई थी। एक ध्वनि तरंग मध्य-पट को हिलाती थी और सुई को पानी में ऊपर और नीचे जाने पर बाध्य करती थी। तार और कप के बीच इसके बाद उत्पन्न विद्युतीय प्रतिरोध जलमग्न सुई के आसपास पानी के नवचंद्रक के आकार के प्रतिलोम समानुपाती होता है। सुई के स्थान पर पीतल की एक छड़ का प्रयोग करते हुए एलिशा ग्रे (Elisha Gray) ने इसके लिये एक आपत्ति-सूचना दाखिल की. मैजोराना, चेम्बर्स, वैनी, साइक्स और एलिशा ग्रे द्वारा अन्य छोटे परिवर्तन और सुधार किये गये और 1903 में रेजिनाल्ड फेसेंडेन ने एक संस्करण का पेटेंट हासिल किया। वे पहले कार्यशील माइक्रोफोन थे, लेकिन वे वाणिज्यिक अनुप्रयोग के लिये व्यावहारिक नहीं थे। बेल और वॉटसन के बीच हुआ प्रसिद्ध पहला टेलीफोन वार्तालाप एक तरल माइक्रोफोन की सहायता से हुआ था।

MEMS माइक्रोफोन

MEMS (माइक्रोइलेक्ट्रिकल-मैकेनिकल सिस्टम) (MicroElectrical-Mechanical System) माइक्रोफोन को एक माइक्रोफोन चिप या सिलिकॉन माइक्रोफोन भी कहा जाता है। MEMS तकनीकों के द्वारा एक दाब-संवेदी मध्यपट को सीधे एक सिलिकॉन चिप पर उकेरा जाता है और सामान्यतः इसके साथ एक एकीकृत पूर्व-प्रवर्धक भी जुड़ा होता है। अधिकांश MEMS माइक्रोफोन संघनित्र माइक्रोफोन डिज़ाइन के विभिन्न प्रकार होते हैं। अक्सर MEMS माइक्रोफोनों में एक अंतर्निर्मित एनालॉग-से-डिजिटल रूपांतरक (Analog-to-Digital Converter [ADC]) परिपथ समान CMOS चिप पर लगा हुआ होता है, जिससे वह चिप एक डिजिटल माइक्रोफोन बन जाती है और इसलिये इसे आधुनिक डिजिटल उत्पादों के साथ बेहतर तरीके से एकीकृत किया जा सकता है। MEMS सिलिकॉन माइक्रोफोनों का उत्पादन करने वाले प्रमुख उत्पादक वॉल्फसन माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स (Wolfson Microelectronics) (WM7xxx), एनालॉग डिवाइसेस (Analog Devices), एकुस्टिका (Akustica) (AKU200x), इन्फीनियॉन (Infoneon) (SMM310 उत्पाद), नोलेस इलेक्ट्रॉनिक्स (Knowles electronics), मेम्सटेक (Memstech) (MSMx), NXP सेमीकण्डक्टर्स (NXP Semiconductors), सॉनियन MEMS (Sonion MEMS), AAC एकॉस्टिक टेक्नोलॉजीज़ (AAC Acoustic Technologies)[11] और ऑमरोन (Omron) हैं।[12]

माइक्रोफोन के रूप में लाउडस्पीकर

एक लाउडस्पीकर, विद्युतीय संकेत को ध्वनि तरंगों में बदलने वाला एक ट्रांसड्यूसर, कार्यात्मक रूप से माइक्रोफोन के विपरीत होता है। चूंकि एक पारंपरिक स्पीकर का निर्माण (एक मध्यपट, कॉइल और चुंबक के साथ) लगभग एक गतिज माइक्रोफोन के समान ही किया जाता है, अतः स्पीकर्स वस्तुतः "पीछे की ओर से" माइक्रोफोन के रूप में कार्य कर सकते हैं। हालांकि, इसका परिणाम कम गुणवत्ता, सीमित आवृत्ति प्रतिक्रिया (विशिष्टतः उच्च श्रेणी में) और कम संवेदनशीलता वाले माइक्रोफोन के रूप में मिलता है। व्यावहारिक प्रयोग में, कभी-कभी स्पीकर का प्रयोग ऐसे अनुप्रयोगों में माइक्रोफोन के रूप में किया जाता है, जिनमें उच्च गुणवत्ता और संवेदनशीलता की आवश्यकता न हो, जैसे इन्टरकॉम, वॉकी-टॉकी या वीडियो गेम वॉइस चैट उपकरण या जब पारंपरिक माइक्रोफोन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न हों.

हालांकि, इस सिद्धांत का कम से कम एक और व्यावहारिक अनुप्रयोग भी है: एक ड्रम-सेट में "किक" (मंद्र स्वर वाले ड्रम) के सामने रखे एक मध्यम-आकार वाले वूफर का प्रयोग माइक्रोफोन के रूप में करना. निम्न आवृत्ति वाले ध्वनि-स्रोतों को ट्रांसड्यूस करने के लिये अपेक्षाकृत बड़े स्पीकर्स का प्रयोग करना, विशेषतः संगीत रचना में, बहुत आम बनता जा रहा है। यामाहा सबकिक (Yamaha Subkick), किक ड्रम के सामने प्रयुक्त एक वूफर, इस प्रकार के उपकरण का एक उत्पाद उदाहरण है।12-इंच (300 मि॰मी॰) चूंकि एक अ

कैप्सूल डिजाइन और अनुर्दिशत्व

किसी माइक्रोफोन के भीतरी तत्व इसके अनुर्दिशत्व में अंतरों के प्राथमिक स्रोत होते हैं। एक दाब माइक्रोफोन वायु और वातावरण की निश्चित आंतरिक मात्रा के बीच एक मध्यपट का प्रयोग करता है और सभी दिशाओं से आने वाले दाब के प्रति समान रूप से प्रत्युत्तर देता है, अतः इसे सर्वदिशात्मक कहा जाता है। एक दाब-प्रवणता माइक्रोफोन एक ऐसे मध्यपट का प्रयोग करता है, जो दोनों ओर से कम से कम आंशिक रूप से खु्ला हो. दोनों ओर के दाब में अंतर इसकी दिशात्मक विशेषताएं निर्मित करता है। माइक्रोफोन की बाहरी बनावट जैसे अन्य तत्व और हस्तक्षेप नलिकाओं जैसे बाह्य उपकरण भी माइक्रोफोन की दिशात्मक प्रतिक्रिया को परिवर्तित कर सकते हैं। एक शुद्ध दाब-प्रवणता माइक्रोफोन सामने या पीछे की ओर से आने वाली ध्वनि के प्रति समान रूप से संवेदनशील होता है, लेकिन यह बगल से आने वाली ध्वनि के प्रति असंवेदनशील होता है क्योंकि एक ही समय पर सामने से या पीछे से आने वाली ध्वनि उन दोनों के बीच कोई प्रवणता उत्पन्न नहीं करती. एक शुद्ध दाब-प्रवणता माइक्रोफोन का गुणधर्म दिशात्मक पैटर्न आकार-8 के समान होता है। अन्य ध्रुवीय पैटर्न एक कैप्सूल के निर्माण द्वारा व्युत्पन्न किये जाते हैं, जो इन दो प्रभावों को विभिन्न तरीकों से संयोजित करती है। उदाहरणार्थ, कारडायोड एक आंशिक रूप से बंद पिछले भाग को प्रदर्शित करता है, अतः इसकी प्रतिक्रिया दाब और दाब-प्रवणता विशेषताओं का एक संयोजन होता है।[13]

माइक्रोफोन ध्रुवीय पैटर्न

(चित्र में माइक्रोफोन पृष्ठ के शी्र्ष की ओर उन्मुख, पृष्ठ के समानांतर):

किसी माइक्रोफोन की दिशात्मकता या ध्रुवीय पैटर्न यह सूचित करता है कि वह अपने केंद्रीय अक्ष के आस-पास विभिन्न कोणों पर आने वाली ध्वनि के प्रति कितना संवेदनशील है। ऊपर प्रदर्शित ध्रुवीय पैटर्न उन बिंदुओं के बिंदु-पथ का प्रतिनिधित्व करता है, जो उस बिंदु से कोई निर्धारित ध्वनि दाब स्तर निर्मित किये जाने पर माइक्रोफोन में समान संकेत स्तर आउटपुट उत्पन्न करते हैं। माइक्रोफोन का भौतिक-ढांचा चित्रों के सापेक्ष किस प्रकार स्थित होगा, यह माइक्रोफोन की रचना पर निर्भर होता है। बड़े पर्दे वाले माइक्रोफोनों, जैसे ओक्टावा (Oktava) (ऊपर चित्रित), के लिये ध्रुवीय चित्र में ऊपर की दिशा सामान्यतः माइक्रोफोन के ढांचे के लंबवत् होती है, जिसे अक्सर "साइड फायर" या "साइड एड्रेस" कहा जाता है। छोटे माइक्रोफोनों, जैसे शुरे (Shure) (वह भी ऊपर प्रदर्शित है), के लिये यह सामान्यतः माइक्रोफोन के अक्ष से विस्तारित होती है, जिसे अक्सर "एण्ड फायर" या "टॉप/एण्ड एड्रेस" कहते हैं।

वांछित ध्रुवीय पैटर्न का निर्माण करने के लिये कुछ माइक्रोफोन डिज़ाइन विभिन्न सिद्धांतों को संयोजित करते हैं। यह स्वयं ढांचे के द्वारा रक्षण (जिसका अर्थ विवर्तन/क्षय/अवशोषण होता है) से लेकर दोहरे पर्दों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से संयोजित करने तक हो सकता है।

सर्वदिशात्मक

एक सर्वदिशात्मक (या अदिशात्मक) माइक्रोफोन की प्रतिक्रिया को सामान्यतः तीन आयामों में सटीक वृत्त में स्थित माना जाता है। वास्तविक विश्व में, यह सत्य नहीं है। दिशात्मक माइक्रोफोनों की ही तरह, किसी "सर्वदिशात्मक" माइक्रोफोन के लिये भी ध्रुवीय पैटर्न आवृत्ति का ही एक कार्य होता है। माइक्रोफोन का ढांचा असीमित रूप से छोटा नहीं होता और इसके परिणामस्वरूप, जब ध्वनि पीछे से आ रही हो, तो यह स्वयं ही अपने मार्ग के बीच आ जाता है, जिससे ध्रुवीय प्रतिक्रिया में कुछ फैलाव आ जाता है। जब माइक्रोफोन का व्यास (यह मानते हुए कि यह बेलनाकार है) विचारित आवृत्ति के तरंग-दैर्ध्य तक पहुंचने लगता है, तो यह फैलाव बढ़ता जाता है। अतः सबसे छोटे व्यास वाला माइक्रोफोन उच्च आवृत्तियों पर सर्वश्रेष्ठ सर्वदिशात्मक विशेषताएं प्रदान करता है।

10 kHz पर ध्वनि का तरंग-दैर्ध्य एक इंच (3.4 सेमी) से थोड़ा अधिक होता है, अतः सबसे छोटे आकार वाले माइक्रोफोनों का व्यास अक्सर 1/4" (6 मिमी) होता है, जो उच्चतम आवृत्तियों पर भी दिशात्मकता को व्यावहारिक रूप से हटा देता है। कारडायोड्स के विपरीत, सर्वदिशात्मक माइक्रोफोन, विलंबों के रूप में गुंजायमान छिद्रों का प्रयोग नहीं करते, अतः निम्न रंजन के सन्दर्भ में उन्हें "सबसे शुद्ध" माइक्रोफोन माना जा सकता है; वे मूल ध्वनि में बहुत थोड़ा शोर मिलाते हैं। दाब-संवेदी होने के कारण, उनमें 20 Hz या उससे नीचे तक की बहुत सपाट निम्न-आवृत्ति प्रतिक्रिया हो भी सकती है। दिशात्मक (गति-संवेदी) माइक्रोफोनों की तुलना में दाब-संवेदी माइक्रोफोन हवा से होने वाले शोर के प्रति बहुत कम प्रतिक्रिया देते हैं।

गैर-दिशात्मक माइक्रोफोन का एक उदाहरण वृत्ताकार एट बॉल (Eight Ball) है।[14]

एकदिशात्मक

एक एकदिशात्मक माइक्रोफोन केवल एक दिशा से आने वाली ध्वनि के प्रति संवेदनशील होता है। ऊपर प्रदर्शित चित्र इनमें से अनेक पैटर्न दर्शाता है। प्रत्येक चित्र में माइक्रोफोन का मुंह ऊपर की ओर है। किसी विशेष आवृत्ति के लिये ध्वनि की तीव्रता 0 से 360° तक कोणों के लिये अर्धव्यास के रूप में खींची गई है। (व्यावसायिक चित्र इन मापनों को प्रदर्शित करते हैं और उनमें विभिन्न आवृत्तियों पर अनेक रूप-रेखाएं शामिल होती हैं। यहां प्रस्तुत चित्र विशिष्ट पैटर्न आकृतियों और उनके नामों का केवल एक परिचय प्रदान करते हैं।)

कारडायोड

US664A यूनिवर्सिटी साउंड डाइनामिक सुपरकारडायोड माइक्रोफोन

सबसे आम एकदिशात्मक माइक्रोफोन कारडायोड (Cardioid) माइक्रोफोन है, जिसका यह नाम इसलिये पड़ा है क्योंकि इसका संवेदना पैटर्न दिल के आकार का होता है। एक हाइपर-कारडायोड (Hyper-Cardiode) माइक्रोफोन भी इसी के समान होता है, लेकिन उसमें सामने की ओर संवेदनशीलता का एक अधिक संकुचित क्षेत्र और पार्श्व-संवेदनशीलता का एक छोटा भाग होता है। एक सुपर-कारडायोड माइक्रोफोन भी हाइपर-कारडायोड के समान ही होता है, अंतर केवल इतना है कि इसमें सामने का पिक-अप अधिक और पिछला पिक-अप कम होता है। आमतौर पर इन तीन प्रकारों का प्रयोग वाचिक या भाषण के लिये प्रयुक्त माइक्रोफोनों के रूप में किया जाता है क्योंकि वे अन्य दिशाओं से आने वाली ध्वनियों को उपेक्षित कर पाने में बहुत अच्छी तरह सक्षम होते हैं।

एक कारडायोड माइक्रोफोन किसी सर्वदिशात्मक और आकार-8 माइक्रोफोन का एक प्रभावी उच्चरूप होता है; पीछे से आने वाली ध्वनि तरंगों के लिये, आकार-8 का ऋणात्मक संकेत सर्वदिशात्मक तत्व के धनात्मक संकेत को निरस्त कर देता है, जबकि सामने की ओर से आ रही ध्वनि तरंगों के लिये, ये दोनों एक दूसरे में जुड़ जाते हैं। एक हाइपरकारडायोड माइक्रोफोन भी ऐसा ही होता है, लेकिन इसमें योगदान आकार-8 की तुलना में कुछ बड़ा होता है। चूंकि दाब प्रवणता ट्रांसड्यूसर माइक्रोफोन दिशात्मक होते हैं, अतः उन्हें ध्वनि स्रोत के बहुत निकट (कुछ ही सेंटीमीटरों की दूरी पर) रखने का परिणाम मंद्र-स्वर में वृद्धि के रूप में मिलता है। इसे निकटता प्रभाव (Proximity effect) कहते हैं।[15]

द्वि-दिशात्मक

"आकार-8" या द्वि-दिशात्मक माइक्रोफोन किसी तत्व के सामने और पीछे, दोनों ओर से ध्वनि प्राप्त करते हैं। अधिकांश रिबन माइक्रोफोन इसी प्रकार के होते हैं।

शॉटगन

एक ऑडियो-टेक्निका शॉटगन माइक्रोफोन

शॉटगन माइक्रोफोन (Shotgun microphones) सर्वाधिक उच्च रूप से दिशात्मक होते हैं। उनमें बाईं ओर, दाहिनी ओर तथा पीछे की ओर संवेदनशीलता के छोटे क्षेत्र होते हैं, लेकिन दिशात्मक माइक्रोफोनों की तुलना में वे बगल और पीछे की ओर से लक्षणीय रूप से कम संवेदनशील होते हैं। यह तत्व को नलिका कें अंतिम छोर पर रखने और बगल से काटे जाने वाले खांचों के कारण होता है; तरंग निरस्तीकरण अक्ष के दूर से आने वाली अधिकांश ध्वनि को हटा देता है। उनके संवेदनशीलता क्षेत्र के संकरेपन के कारण, शॉटगन माइक्रोफोनों का प्रयोग आमतौर पर टेलीविजन और फिल्म सेटों पर, खेल के मैदानों में और वन्य-जीवन की क्षेत्र रिकॉर्डिंग के लिये किया जाता है।

सीमा या "PZM"

आदर्श-से-कम ध्वनिक स्थानों, जो अक्सर उस स्थान का निर्माण करने वाली एक या अधिक सतहों (सीमाओं) से आने वाले अत्यधिक परावर्तनों से ग्रस्त होते हैं, में माइक्रोफोनों का प्रयोग प्रभावी रूप से करने की विभिन्न विधियां विकसित की गईं हैं। यदि माइक्रोफोन को इनमें से किसी सीमा के भीतर, या उसके बहुत निकट, रखा गया हो, तो उस सतह से आने वाले ये परावर्तन माइक्रोफोन द्वारा पहचाने नहीं जाते. प्रारंभ में, यह कार्य एक सामान्य माइक्रोफोन को सतह के साथ, कभी-कभी ध्वनिक रूप से पारदर्शी फोम के एक खण्ड में, रखकर किया जाता था। ध्वनि अभियंताओं एड लॉन्ग (Ed Long) तथा रॉन विकर्शैम (Ron Wickersham) ने मध्यपट को सीमा के समानांतर उसकी ओर मुंह करके रखने की संकल्पना विकसित की.[16] हालांकि इनका पेटेंट समाप्त हो चुका है, लेकिन "प्रेशर ज़ोन माइक्रोफोन (Pressure Zone Microphone)" तथा "PZM" अभी भी क्राउन इन्टरनैशनल (Crown International) के सक्रिय ट्रेडमार्क बने हुए हैं और सामान्य शब्दावली "बाउंड्री माइक्रोफोन" के प्रयोग को ही प्राथमिकता दी जाती है। यद्यपि एक बाउंड्री माइक्रोफोन को प्रारंभ में एक सर्वदिशात्मक तत्व की सहायता से क्रियान्वित किया जाता था, लेकिन किसी दिशात्मक माइक्रोफोन को सतह के पर्याप्त निकट रखकर उस तत्व की दिशात्मक विशेषताओं को बनाए रखते हुए इस तकनीक के कुछ लाभ हासिल कर पाना भी संभव है। इस विधि के लिये क्राउन का ट्रेडमार्क "फेस कोहैरेंट कारडायोड (Phase Coherent Cardioid)" या "PCC" है, लेकिन कुछ अन्य निर्माता भी इस तकनीक का प्रयोग करते हैं।

अनुप्रयोग-विशिष्ट डिज़ाइन

एक लैवेलियर माइक्रोफोन हस्त-मुक्त (Hands-free) संचालन के लिये बनाया जाता है। ये छोटे माइक्रोफोन शरीर पर पहने जाते हैं। मूलतः उन्हें एक स्थान पर रखने के लिये गरदन के चारों ओर बंधी एक डोरी के साथ पहना जाता था, लेकिन उन्हें अक्सर किसी क्लिप, पिन, टेप या चुंबक की सहायता से कपड़ों के साथ चिपकाया जाता है। लैवेलियर डोरी को कपड़ों के द्वारा छिपाया जा सकता है और वह जेब में रखे या (गतिशील प्रयोग के लिये) किसी बेल्ट में फंसे RF ट्रांसमीटर तक हो सकती है अथवा (स्थिर अनुप्रयोगों के लिये) सीधे ही मिश्रक तक जा सकती है।

एक बेतार माइक्रोफोन किसी तार के माध्यम से भेजने के बजाय ध्वनि को रेडियो या प्रकाशीय संकेत के रूप में प्रसारित करता है। सामान्यतः यह एक छोटे FM रेडियो ट्रांसमीटर का प्रयोग करके ध्वनि तंत्र से जुड़े निकटवर्ती रिसीवर तक अपने संकेत भेजता है, लेकिन इसका यदि ट्रांसमीटर और रिसीवर एक दूसरे की दृष्टि-सीमा के भीतर हों, तो यह इन्फ्रारेड प्रकाश का प्रयोग भी कर सकता है।

हवा के माध्यम से संचारित होने वाले ध्वनि कम्पनों के विपरीत एक संपर्क माइक्रोफोन सीधे किसी ठोस सतह या किसी पदार्थ से कंपन ग्रहण करता है। बहुत निम्न-स्तर की ध्वनियों, जैसे किसी छोटे पदार्थ या किसी कीड़े से आने वाली ध्वनि, की पहचान करना इसका एक उपयोग है। सामान्यतः यह माइक्रोफोन एक चुम्बकीय (घूमती हुई कुण्डली) ट्रांसड्यूसर, संपर्क प्लेट और संपर्क पिन से मिलकर बनता है। संपर्क प्लेट को उस पदार्थ के सामने रखा जाता है, जिससे निकलने वाले कम्पनों को ग्रहण करना हो; संपर्क पिन इन कम्पनों को ट्रांसड्यूसर की कुण्डली की ओर स्थानांतरित करती है। संपर्क माइक्रोफोन का प्रयोग घोंघे के दिल की धड़कन और चींटियों के पैरों की आवाज़ को ग्रहण करने के लिये किया जाता रहा है। हाल ही में, इस माइक्रोफोन का एक सुवाह्य संस्करण विकसित किया गया है। संपर्क माइक्रोफोन का एक अन्य प्रकार एक कण्ठ माइक्रोफोन है, जो सीधे उस कण्ठ से भाषण ग्रहण कर लेता है, जिस पर उसे जोड़ा गया हो. यह इस उपकरण को परिवेशी ध्वनियों वाले क्षेत्रों मे प्रयोग करने की अनुमति देता है, जहां अन्यथा वक्ता को सुन पाना संभव न हो.

एक परवलयिक माइक्रोफोन ध्वनि तरंगों को माइक्रोफोन पर एकत्रित एवं केंद्रित करने के लिये परवलयिक परावर्तक का प्रयोग करता है, जैसा कि एक परवलयिक एंटीना (उदा. उपग्रह तश्तरी) द्वारा रेडियो तरंगों के साथ किया जाता है। इस माइक्रोफोन, जिसमें असामान्य रूप से केंद्रित अग्र संवेदनशीलता होती है तथा जो अनेक मीटर की दूरी से भी ध्वनि को ग्रहण कर सकता है, के विशिष्ट उपयोगों में प्रकृति रिकॉर्डिंग, बाहरी खेल आयोजन, प्रच्छन्न श्रवण, न्याय प्रवर्तन और यहां तक कि जासूसी भी शामिल हैं। परवलयिक माइक्रोफोनों का प्रयोग विशिषटतः मानक रिकॉर्डिंग अनुप्रयोगों के लिये नहीं किया जाता क्योंकि वे निम्न-आवृत्ति के प्रति कमज़ोर प्रतिक्रिया देते हैं, जो कि उनके डिज़ाइन का एक दुष्प्रभाव है।

एक स्टीरियो माइक्रोफोन दो माइक्रोफोनों को एक इकाई में एकीकृत करता है, ताकि एक स्टीरियोफोनिक संकेत उत्पन्न किया जा सके. एक स्टीरियो माइक्रोफोन का प्रयोग अक्सर प्रसारण अनुप्रयोगों या क्षेत्र रिकॉर्डिंग के लिये तब किया जाता है, जब स्टीरियोफोनिक रिकॉर्डिंग के लिये पारंपरिक X-Y संरूपण (माइक्रोफोन पद्धति देखें) में दो पृथक संघनित्रों को संरूपित करना अव्यावहारिक हो. ऐसे कुछ माइक्रोफोनों में दो चैनलों के बीच कार्यक्षेत्र व्याप्ति का समायोज्य कोण होता है।

एक शोर निरस्तीकरण माइक्रोफोन एक अत्यधिक दिशात्मक डिज़ाइन होता है, जिसकी रचना शोरपूर्ण वातावरणों के लिये की गई है। ऐसा एक प्रयोग वायुयानों के कॉकपिट में होता है, जहां वे सामान्यतः हेडसेटों पर बूम माइक्रोफोनों के रूप में संस्थापित किये जाते हैं। इनका एक अन्य प्रयोग उच्च-स्वर वाले संगीत समारोह के मंचों पर गायकों के लिये किया जाता है। अनेक शोर निरस्तीकरण माइक्रोफोन विपरीत विद्युतीय ध्रुवण में स्थित या विद्युतीय रूप से प्रसंस्कृत दो मध्यपटों से प्राप्त संकेतों को संयोजित करते हैं। दोहरे मध्यपट वाले डिज़ाइन में, मुख्य मध्यपट अभीष्ट स्रोत से निकटतम दूरी पर संस्थापित किया जाता है और दूसरे को स्रोत से बहुत दूर रखा जाता है, ताकि वह उस वातावरणीय ध्वनि को ग्रहण कर सके, जिसे मुख्य मध्यपट के संकेत से घटाना है। दो संकेतों को संयोजित कर दिये जाने पर, अभीष्ट स्रोत के अलावा अन्य स्रोतों से आने वाली ध्वनियां बहुत कम हो जाती हैं, जिससे उसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। अन्य शोर-निरस्तीकरण डिज़ाइन एक ही मध्यपट का प्रयोग करते हैं, जो माइक्रोफोन की बगल में और पीछे खुलने वाले पोर्ट से प्रभावित होता है, जिनका योगफल दूर से आने वाली ध्वनियों के 16 dB निरस्तीकरण के रूप में मिलता है। एक एकल मध्यपट का प्रयोग करके एक शोर-निरस्तीकरण हेडसेट डिज़ाइन का उपयोग मुख्यतः गायक कलाकारों, जैसे गार्थ ब्रूक्स (Garth Brooks) और जैनेट जैक्सन (Janet Jackson), द्वारा किया जाता रहा है।[17] कुछ शोर-निरस्तीकरण माइक्रोफोन कंठ माइक्रोफोन होते हैं।

संयोजित्र

एक माइक्रोफोन का इलेक्ट्रॉनिक प्रतीक

माइक्रोफोनों द्वारा प्रयुक्त सबसे आम संयोजित्र निम्नलिखित हैं:

  • व्यावसायिक माइक्रोफोनों पर नर XLR संयोजित्र
  • कम महंगे उपभोक्ता माइक्रोफोनों पर ¼ इंच (कभी-कभी 6.5 मिमी के रूप में उल्लिखित) जैक प्लग, जिसे 1/4 इंच TRS संयोजित्र के रूप में भी जाना जाता है। अनेक उपभोक्ता माइक्रोफोन एक असंतुलित 1/4 इंच फोन जैक का प्रयोग करते हैं। आमतौर पर हारमोनिका माइक्रोफोन गिटार प्रवर्धकों पर एक उच्च प्रतिबाधा वाले 1/4 इंच TS संयोजित्र का प्रयोग करते हैं।
  • बहुत सस्ते और कम्प्यूटर माइक्रोफोनों पर 3.5 मिमी (जिसका उल्लेख कभी-कभी 1/8 इंच मिनी के रूप में किया जाता है) स्टीरियो (मोनो के रूप में तार-युक्त) मिनी फोन प्लग

कुछ माइक्रोफोन सुवाह्य उपकरण पर संयोजन के लिये अन्य संयोजित्रों, जैसे एक 5-पिन XLR या मिनी XLR, का प्रयोग करते हैं। कुछ लैवेलियर (या जिन दिनों में माइक्रोफोन को समाचार संवाददाताओं के सूट के लैपेल में जोड़ा जाता था, तब से 'लैपेल (Lapel)') माइक्रोफोन एक बेतार ट्रांसमीटर से संयोजन के लिये एक मालिकाना संयोजित्र का प्रयोग करते हैं। 2005 से, USB संयोजनों से युक्त व्यावसायिक-गुणवत्ता वाले माइक्रोफोनों का उदय होना प्रारंभ हुआ है, जिन्हें कम्प्यूटर-आधारित सॉफ्टवेयर में प्रत्यक्ष रिकॉर्डिंग के लिये बनाया गया है।

प्रतिबाधा-मिलान

माइक्रोफोनों में प्रतिबाधा नामक एक विद्युतीय विशेषता होती है, जिसे ओह्म (Ohm) (Ω) में मापा जाता है और जो डिज़ाइन पर निर्भर होती है। विशिष्टतः, मूल्यांकित प्रतिबाधा बताई जाती है।[18] 600 Ω से कम प्रतिबाधा को निम्न प्रतिबाधा माना जाता है। 600 Ω तथा 10 kΩ के बीच मध्य प्रतिबाधा मानी जाती है। 10 kΩ से ऊपर उच्च प्रतिबाधा होती है। संघनित्र माइक्रोफोन (अंतर्निर्मित पूर्व-प्रवर्धक (Preamp) के नाम पर) में विशिष्ट रूप से 50 और 200 ओह्म के बीच की आउटपुट प्रतिबाधा होती है।[19]

प्रतिबाधा निम्न या उच्च होने पर भी किसी माइक्रोफोन का आउटपुट समान शक्ति प्रस्तुत करता है। यदि एक माइक्रोफोन को उच्च और निम्न प्रतिबाधा वाले संस्करणों में बनाया गया है, तो किसी विशिष्ट ध्वनि दाब इनपुट के लिये उच्च प्रतिबाधा वाले संस्करण में एक उच्चतर आउटपुट वोल्टेज होता है और यह निर्वात-नलिका गिटार प्रवर्धकों, उदाहरणार्थ, जिनमें एक उच्च इनपुट प्रतिबाधा होती है और जिनमें नलिका में अंतर्निहित शोर को दबाने के लिये एक अपेक्षाकृत उच्च संकेत इनपुट वोल्टेज की आवश्यकता होती है, के साथ प्रयोग के लिये उपयुक्त होता है। अधिकांश व्यावसायिक माइक्रोफोनों में निम्न प्रतिबाधा, लगभग 200 Ω या कम, होती है। व्यावसायिक निर्वात-नलिका ध्वनि उपकरणों में एक ट्रांसफॉर्मर सम्मिलित होता है, जो माइक्रोफोन परिपथ की प्रतिबाधा को इनपुट नलिका के संचालन के लिये आवश्यक उच्च प्रतिबाधा और वोल्टेज तक बढ़ाता है। बाहरी मिलान ट्रांसफॉर्मर भी उपलब्ध हैं, जिनका प्रयोग एक निम्न प्रतिबाधा वाले माइक्रोफोन और एक उच्च प्रतिबाधा वाले इनपुट के बीच एक सीध में किया जा सकता है।

निम्न प्रतिबाधा वाले माइक्रोफोनों को उच्च प्रतिबाधा वाले माइक्रोफोनों की तुलना में दो कारणों से प्राथमिकता दी जाती है: पहला यह है कि लंबे तार वाले एक उच्च-प्रतिबाधा माइक्रोफोन का परिणाम तार की धारिता के कारण उच्च-आवृत्ति संकेत हानि के रूप में मिलता है, जो माइक्रोफोन आउटपुट प्रतिबाधा के साथ एक निम्न-पार फिल्टर का निर्माण करती है। दूसरा कारण यह है कि उच्च-प्रतिबाधा वाले लंबे तार अधिक भिनभिनाहट (और संभवतः रेडियो-आवृत्ति हस्तक्षेप (Radio-frequency interference) (RFI)) भी) ग्रहण करते हैं। यदि माइक्रोफोन और अन्य उपकरण के बीच प्रतिबाधा का मिलान गलत हो जाए, तो कोई हानि नहीं होती; सबसे बुरा परिणाम संकेत में कमी या आवृत्ति प्रतिक्रिया में परिवर्तन के रूप में मिलता है।

अधिकांश माइक्रोफोन इस प्रकार डिज़ाइन किये जाते हैं कि उनकी प्रतिबाधा का मिलान उस भार के साथ हो सके, जिससे वे जुड़े हुए हैं।[20] ऐसा करने से उनकी आवृत्ति प्रतिक्रिया परिवर्तित हो सकती है, जिससे विरूपण, विशेषतः उच्च ध्वनि दाब स्तरों पर, उत्पन्न हो सकता है। कुछ रिबन और गतिज माइक्रोफोन इसका अपवाद होते हैं, क्योंकि उनके डिज़ाइनरों का मानना है कि एक विशिष्ट भार प्रतिबाधा माइक्रोफोन की आंतरिक विद्युत-ध्वनिक अवमन्दन परिपथ का ही भाग होती है।[21][संदिग्ध]

डिजिटल माइक्रोफोन इंटरफेस

ऑडियो इंजीनियरिंग सोसाइटी (Audio Engineering Society) द्वारा प्रकाशित AES 42 मानक माइक्रोफोनों के लिये एक डिजिटल इंटरफेस को परिभाषित करता है। इस मानक का पालन करने वाले माइक्रोफोन एक एनालॉग आउटपुट उत्पन्न करने के बजाय एक XLR नर संयोजित्र के माध्यम से सीधे डिजिटल ऑडियो धारा उत्पन्न करते हैं। डिजिटल माइक्रोफोनों का प्रयोग AES 42 मानक का पालन करने वाले उपयुक्त इनपुट संयोजनों से युक्त नए उपकरणों के साथ अथवा एक उपयुक्त इंटरफेस बॉक्स के माध्यम से किया जा सकता है। AES 42 मानक के अनुसार कार्य करने वाले स्टूडियो गुणवत्ता वाले माइक्रोफोन अब अनेक माइक्रोफोन उत्पादकों से उपलब्ध हैं।

मापन और विनिर्देश

ओक्टावा 319 और शुरे SM58 के सुदूर क्षेत्रीय अक्षीय आवृत्ति प्रतिक्रिया की एक तुलना

माइक्रोफोनों की रचना में अंतरों के कारण, उनमें ध्वनि के प्रति स्वयं की विशिष्ट प्रतिक्रियाएं होती हैं। प्रतिक्रिया में यह अंतर असमान चरण और आवृत्ति प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करता है। इसके अतिरिक्त, माइक्रोफोन ध्वनि दाब के प्रति भी समान रूप से संवेदनशील नहीं होते और विरूपण के बिना भिन्न-भिन्न स्तर स्वीकार कर सकते हैं। हालांकि वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के लिये अधिक समानता वाले माइक्रोफोन वांछनीय होते हैं, लेकिन अक्सर संगीत रिकॉर्डिंग के लिये यह बात लागू नहीं होती क्योंकि माइक्रोफोन की असमान प्रतिक्रिया ध्वनि का वांछनीय रंजन उत्पन्न कर सकती है। माइक्रोफोन विनिर्देशों का एक अंतर्राष्ट्रीय मानक भी है,[18] लेकिन बहुत कम निर्माता ही उसका पालन करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, विभिन्न निर्माताओं द्वारा प्रकाशित डेटा की तुलना करना कठिन होता है क्योंकि वे भिन्न-भिन्न मापन तकनीकों का प्रयोग करते हैं। माइक्रोफोन डेटा वेबसाइट ने वर्तमान में सूचीबद्ध प्रत्येक माइक्रोफोन और यहां तक कि कुछ अप्रचलित मॉडलों के लिये भी माइक्रोफोन निर्माताओं से चित्रों, प्रतिक्रिया वक्रों और तकनीकी डेटा से परिपूर्ण तकनीकी विनिर्देश एकत्रित किये हैं और तुलना में सरलता के उद्देश्य से उन सभी के बारे में डेटा एक सामान्य प्रारूप में प्रदर्शित किया गया है।[3]. हालांकि, इस या किसी भी अन्य प्रकाशित डेटा से कोई पक्का निष्कर्ष निकालते समय सावधानी बरतनी चाहिये, जब तक कि यह ज्ञात न हो कि उत्पादक ने ये विनिर्देश IEC 60268-4 के अनुरूप प्रदान किये हैं।

एक आवृत्ति प्रतिक्रिया आरेख माइक्रोफोन संवेदनशीलता को आवृत्तियों की एक श्रेणी (विशिष्टतः 0-20 kHz) में, सामान्यतः सटीक रूप से अक्ष-पर स्थित ध्वनि (कैप्सूल के 0° पर आने वाली ध्वनि) के लिये डेसीबेल में रखता है। आवृत्ति प्रतिक्रिया कम सूचनात्मक तौर पर पाठ्य-सामग्री के रूप में इस प्रकार प्रस्तुत की जा सकती है: "30 Hz-16 kHz ±3 dB". इसकी व्याख्या वर्णित आवृत्तियों के बीच एक लगभग समतल, रेखीय, प्लॉट के रूप में की जाती है, जिसमें आयाम में न्यूनाधिक अंतर 3 dB से अधिक नहीं है। हालांकि, हम इस सूचना के आधार पर यह निर्धारित नहीं कर सकते कि ये अंतर कितने निर्बाध हैं, न ही ये कि वे वर्णक्रम के किस भाग में घटित होते हैं। ध्यान दें कि आमतौर पर बनाए जाने वाले कथन, जैसे "20 Hz–20 kHz", सहनशीलता के एक डेसीबेल मापन के बिना अर्थहीन होते हैं। दिशात्मक माइक्रोफोनों की आवृत्ति प्रतिक्रिया ध्वनि स्रोत से अंतर और ध्वनि स्रोत की ज्यामिती के साथ बहुत अधिक बदलती जाती है। IEC 60268-4 के अनुसार आवृत्ति प्रतिक्रिया सपाट प्रगतिशील तरंग (Plane progressive wave) स्थितियों (स्रोत से बहुत अधिक दूर) में मापी जानी चाहिए, लेकिन यह कभी-कभी ही व्यावहारिक होता है। बंद वार्ता माइक्रोफोनों को विभिन्न ध्वनि स्रोतों और दूरियों के साथ मापा जा सकता है, लेकिन इसका कोई मानक नहीं है और इसलिये यदि मापन तकनीक वर्णित न की गई हो, तो विभिन्न मॉडलों से प्राप्त डेटा की तुलना कर पाने का कोई तरीका नहीं है।

स्व-शोर या समकक्ष शोर स्तर ध्वनि का वह स्तर है, जो उतना ही आउटपुट वोल्टेज उत्पन्न करता है, जितना माइक्रोफोन द्वारा ध्वनि की अनुपस्थिति में उत्पन्न किया जाता है। यह माइक्रोफोन की गतिज श्रेणी के निम्नतम बिंदु का प्रतिनिधित्व करता है और विशिष्ट रूप से तब महत्वपूर्ण होता है, जब आप शांत ध्वनियों को रिकॉर्ड करना चाहते हों. यह माप अक्सर dB(A) में वर्णित किया जाता है, जो कि एक डेसीबेल मापन आवृत्ति पर शोर की समकक्ष प्रबलता होती है- जो कि इसके लिये भारित होती है कि कान किस प्रकार सुनते हैं, उदाहरण के लिये: "15 dBA SPL" (SPL का अर्थ होता है 20 माइक्रोपास्कल के सापेक्ष ध्वनि दाब स्तर). यह मान जितना कम हो, उतना बेहतर है। कुछ माइक्रोफोन निर्माता ITU-R 468 शोर भारण का प्रयोग करके शोर स्तर का वर्णन करते हैं, जो कि अधिक सटीक रूप से यह व्यक्त करता है कि हम ध्वनि को किस प्रकार सुनते हैं, लेकिन यह एक 11-14 dB उच्चतर मान प्रदान करता है। एक अचल माइक्रोफोन विशिष्टतः 20 dBA SPL या 32 dB SPL 468-भारण को मापता है। विशेष अनुप्रयोगों के लिये बहुत शांत माइक्रोफोन भी अनेक वर्षों से उपलब्ध रहे हैं, जैसे ब्रुल एण्ड जेएर 4179 (Brüel & Kjaer 4179), जिनका शोर स्तर 0 dB SPL के आस-पास होता है। हाल ही में, निम्न शोर विनिर्देश वाले कुछ माइक्रोफोन स्टूडियो/मनोरंजन बाज़ार में प्रस्तुत किये गये हैं, जैसे न्यूमैन (Neumann) और रोड (Røde) के मॉडल, जो अपने विज्ञापन में 5-7 dBA के बीच शोर स्तरों का दावा करते हैं। विशिष्ट रूप से यह कैप्सूल और इलेक्ट्रॉनिक्स की आवृत्ति प्रतिक्रिया में परिवर्तन के द्वारा हासिल किया जाता है, जिसका परिणाम A-भारण वक्र के भीतर निम्न शोर के रूप में मिलता है, जबकि ब्रॉडबैण्ड शोर को बढ़ाया जा सकता है।

माइक्रोफोन द्वारा स्वीकार किया जा सकने वाला अधिकतम SPL (ध्वनि दाब स्तर) (Sound Pressure Level) कुल अनुकंपी विरूपण (Total Harmonic Distortion) (THD) के विशिष्ट मानों, विशिष्टत: 0.5%, के लिये मापा जाता है। विरूपण की यह मात्रा सामान्यतः अश्राव्य होती है, अतः कोई व्यक्ति रिकॉर्डिंग को हानि पहुंचाए बिना इस SPL पर माइक्रोफोन का प्रयोग कर सकता है। उदाहरण: "142 dB SPL उच्च (0.5% THD पर)". यह मान जितना अधिक हो, उतना बेहतर होता है, हालांकि बहुत उच्च SPL वाले माइक्रोफोनों में स्व-शोर भी उच्चतर होता है।

संभवतः कतरन स्तर अधिकतम प्रयोज्य स्तर का एक बेहतर सूचक होता है,[उद्धरण चाहिए] क्योंकि सामान्यतः अधिकतम SPL के अंतर्गत बताया जाने वाला 1% THD मान वस्तुतः विरूपण क एक बहुत हल्का स्तर है, जो कि, विशेष तौर पर संक्षिप्त उच्च स्तरों पर, काफी अश्राव्य होता है। माइक्रोफोनों से अनुकंपी विरूपण सामान्यतः निम्न-श्रेणी (अधिकांशतः तृतीय अनुकंपी) प्रकार का होता है और अतः, यहां तक कि 3-5% पर भी, यह बहुत अधिक श्राव्य नहीं होता. दूसरी ओर, कतरन, जो कि मध्यपट अपनी पूर्ण विस्थापन सीमा तक पहुंच जाने पर (या पूर्व-प्रवर्धक के द्वारा) उत्पन्न होती है, अपने उच्च-स्तरों पर एक कर्कश ध्वनि उत्पन्न करती है और जहां तक संभव हो, इससे बचना चाहिए. कुछ माइक्रोफोनों के लिये कतरन स्तर अधिकतम SPL से बहुत अधिक हो सकता है।

शोर धरातल और अधिकतम SPL के बीच SPL में अंतर को किसी माइक्रोफोन की गतिज सीमा कहा जाता है। यदि स्वयं इसके द्वारा वर्णित की जाए, उदाहरणार्थ "120 dB", तो यह स्व-शोर और अधिकतम SPL आंकड़ों को स्वतंत्र रूप से वर्णित किये जाने की तुलना में लक्षणीय रूप से कम जानकारी प्रदान करती है।

संवेदनशीलता इस बात को सूचित करती है कि एक माइक्रोफोन ध्वनिक दाब को कितनी अच्छी तरह आउटपुट वोल्टेज में रूपांतरित करता है। एक उच्च संवेदनशीलता माइक्रोफोन अधिक वोल्टेज निर्मित करता है और इसलिये इसमें मिश्रक या रिकॉर्डिंग उपकरण पर कम प्रवर्धन की आवश्यकता होती है। यह व्यावहारिक रूप से चिंता का विषय है लेकिन यह माइक की गुणवत्ता का प्रत्यक्ष संकेत नहीं है और वस्तुतः संवेदनशीलता शब्द कुछ अनुपयुक्त नाम है, "पुनः ट्रांसडक्शन" (या केवल "आउटपुट स्तर") संभवतः अधिक अर्थपूर्ण है क्योंकि शुद्ध संवेदनशीलता सामान्यतः शोर धरातल द्वारा निर्धारित की जाती है और आउटपुट स्तर के सन्दर्भ में बहुत अधिक "संवेदनशीलता" कतरन स्तर से समझौता करती है। इसके दो आम मापन हैं। अंतर्राष्ट्रीय मानक (अधिमान्य) 1 kHz पर प्रति पास्कल मिलीवोल्ट्स में बना होता है। एक उच्च मान उच्चतर संवेदनशीलता को सूचित करता है। पुरानी अमरीकी विधि एक 1 v/Pa मानक का उल्लेख करती है और उसे सपाट डेसीबेल्स में मापा जाता है, जिसका परिणाम एक ऋणात्मक मान के रूप में मिलता है। पुनः एक उच्चतर मान उच्चतर संवेदनशीलता को सूचित करता है, अतः -60 dB की संवेदनशीलता -70 dB से अधिक होती है।

मापन माइक्रोफोन

कुछ माइक्रोफोनों का उद्देश्य केवल स्पीकरों का परीक्षण करना, शोर स्तरों को मापना और अन्यथा एक ध्वनिक अनुभव को परिणामित करना होता है। वे अंशशोधित ट्रांसड्यूसर होते हैं और इनकी आपूर्ति सामान्यतः एक अंशशोधन प्रमाणपत्र के साथ की जाती है, जो आवृत्ति के मुक़ाबले इनकी पूर्ण संवेदनशीलता को वर्णित करते हैं। मापन माइक्रोफोनों की गुणवत्ता का उल्लेख अक्सर "श्रेणी 1", "प्रकार 2" इत्यादि जैसे पदनामों के प्रयोग द्वारा किया जाता है, जो कि माइक्रोफोन के विनिर्देशों को नहीं, बल्कि ध्वनि स्तर मीटरों को उल्लिखित करते हैं।[22] मापन माइक्रोफोन प्रदर्शन का वर्णन करने के लिये एक अधिक व्यापक मानक[23] हाल ही में अपनाया गया था।

मापन माइक्रोफोन सामान्यतः दाब के अदिश संवेदक होते हैं; वे एक सर्वदिशात्मक प्रतिक्रिया को प्रदर्शित करते हैं, जो केवल उनके भौतिक आयामों की बिखरी हुई रूपरेखा द्वारा सीमित होते हैं। ध्वनि की तीव्रता या ध्वनि शक्ति मापनों के लिये दाब-प्रवणता मापनों की आवश्यकता होती है, जो विशिष्टतः कम से कम दो माइक्रोफोनों की श्रेणी का प्रयोग करके या उष्ण-तार वायुवेगमापकों के साथ बनाए जाते हैं।

माइक्रोफोन अंशशोधन तकनीकें

एक माइक्रोफोन की सहायता से कोई वैज्ञानिक मापन लेने के लिये, इसकी स्पष्ट संवेदनशीलता (वोल्ट्स प्रति पास्कल में) ज्ञात होना अनिवार्य होता है। चूंकि यह उपकरण के जीवन-काल के दौरान बदल सकती है, अतः मापन माइक्रोफोनों को नियमित रूप से अंशशोधित करना अनिवार्य होता है। कुछ माइक्रोफोन उत्पादकों द्वारा और स्वतंत्र प्रमाणित परीक्षण प्रयोगशालाओं द्वारा यह सेवा प्रदान की जाती है। सभी माइक्रोफोन अंशशोधन किसी राष्ट्रीय मापन संस्थान, जैसे UK में NPL, जर्मनी में PTB और USA में NIST, में अंततः प्राथमिक मानकों द्वारा ज्ञात किये जा सकने योग्य होते हैं, जो सबसे आम तौर पर पारस्परिकता प्राथमिक मानक का प्रयोग करके अंशशोधित किये जाते हैं। इस विधि का प्रयोग करके अंशशोधित किये गये मापन माइक्रोफोनों का प्रयोग इसके बाद तुलना अंशशोधन तकनीकों का प्रयोग करके अन्य माइक्रोफोनों को अंशशोधित करने के लिये किया जा सकता है।

अनुप्रयोग के आधार पर, मापन माइक्रोफोनों का परीक्षण नियतकालिक रूप से (विशिष्टतः प्रति वर्ष या कुछ महीनों में) और किसी भी संभावित क्षति घटना, जैसे गिराये जाने (इस जोखिम को कम करने के लिये ऐसे अधिकांश माइक फोम-पैड आवरण में आते हैं) के बाद या स्वीकार्य स्तर से आगे की ध्वनियों से सामना होने पर अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिये.

पिस्टनफोन उपकरण

एक पिस्टनफोन किसी बंद युग्मक का प्रयोग करके माइक्रोफोन के अंशशोधन के लिये एक स्पष्ट ध्वनि दाब को उत्पन्न करने हेतु एक ध्वनिक अंशशोधक (ध्वनि स्रोत) होता है। यह सिद्धांत यांत्रिकीय रूप से संचालित पिस्टन को एक विशिष्ट चक्रीय दर पर, हवा के एक निश्चित आयतन को धकेलने पर आश्रित होता है, जिस पर जांचा जा रहा माइक्रोफोन उजागर किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हवा स्थिरोष्म रूप से संपीड़ित होती है और चेंबर में ध्वनि दाब स्तर की गणना उपकरण के आंतरिक भौतिक आयाम और स्थिरोष्म गैस नियम, जिसके लिये आवश्यक होता है कि एक स्थिरांक हो, जहां P चैम्बर में दाब है, V चैम्बर में आयतन है और \gamma स्थिर आयतन पर इसकी विशिष्ट उष्मा के प्रति स्थिर दाब पर हवा की विशिष्ट उष्मा है, के द्वारा की जा सकती है।पिस्टनफोन विधि केवल निम्न आवृत्तियों पर ही कार्य करती है, लेकिन यह अचूक हो सकती है और सरलतापूर्वक निरूपित किया जा सकने वाला एक ध्वनि दाब स्तर प्रदान करती है। सामान्यतः मानक परीक्षण आवृत्ति लगभग 250 Hz होती है।

पारस्परिक विधि

यह विधि अंशशोधित किये जाने वाले 3 माइक्रोफोनों के समूह में से एक या अधिक माइक्रोफोनों की पारस्परिकता पर निर्भर होती है। इसे एक बंद युग्मक अथवा मुक्त क्षेत्र में पूर्ण किया जा सकता है। इनमें से केवल एक ही माइक्रोफोन का पारस्परिक (एक माइक्रोफोन या एक लाउडस्पीकर किसी भी रूप में प्रयोग किये जाने पर एक समान प्रतिक्रिया उत्पन्न करनेवाला) होना आवश्यक होता है।

माइक्रोफोन श्रेणी और श्रेणी माइक्रोफोन

एक माइक्रोफोन श्रेणी एक क्रम में संचालित हो रहे माइक्रोफोनों की कोई भी संख्या हो सकती है। ऐसे अनेक अनुप्रयोग हैं:

  • परिवेशी शोर से स्वर इनपुट को निकालने के लिये प्रणाली (उल्लेखनीय रूप से टेलीफोन, स्वर पहचान तंत्र, श्रवण-सहायता यंत्र)
  • सराउण्ड साउण्ड और संबंधित प्रौद्योगिकियां
  • ध्वनि के द्वारा पदार्थों की स्थिति ज्ञात करना: ध्वनिक स्रोत स्थानीयकरण, उदाहरणार्थ, पैदल-सेना की गोलीबारी के स्रोत (तों) की स्थिति का पता लगाने के लिये सैन्य प्रयोग. वायुयान की स्थिति और खोज.
  • उच्च-अचूकता वाली मूल रिकॉर्डिंग
  • निम्न ध्वनियों की परिसीमित ध्वनिक पहचान के लिये 3D आकाशीय बीमनिर्माण

विशिष्टतः एक श्रेणी किसी स्थान की परिधि आस-पास वितरित कई सर्वदिशात्मक माइक्रोफोनों से मिलकर बनती है, जो एक कम्प्यूटर से जुड़े होते हैं, जो परिणामों को रिकॉर्ड करता है और एक रूप में उनकी व्याख्या करता है।

माइक्रोफोन वायुरोधी शीशा

वायुरोधी शीशों का प्रयोग उन माइक्रोफोनों की रक्षा करने के लिये किया जाता है, जो अन्यथा "P", "B" आदि जैसे व्यंजनों से उत्पन्न हवा या वाचिक स्पर्शों के द्वारा क्षतिग्रस्त हो जाएंगे. अधिकांश माइक्रोफोनों में एक पूर्ण वायुरोधी शीशा लगा होता है, जिसे माइक्रोफोन के मध्यपट के आस-पास लगाया जाता है। प्लास्टिक, तार की जाली या धातु के पिंजरे की एक स्क्रीन माइक्रोफोन के मध्यपट की रक्षा करने के लिये इससे कुछ दूरी पर लगाई जाती है। यह पिंजरा पदार्थों या वायु के यांत्रिकीय प्रभावों के विरुद्ध प्रतिरक्षा की पहली पंक्ति प्रदान करता है। कुछ माइक्रोफोन, जैसे शुरे SM58 (Shure SM58) में इस पिंजरे के भीतर से फोम की एक अतिरिक्त परत हो सकती है, ताकि ढाल की रक्षात्मक विशेषताओं को और अधिक बढ़ाया जा सके. पूर्ण माइक्रोफोन वायुरोधी शीशों के अलावा, मोटे तौर पर अतिरिक्त वायु-रक्षा की तीन श्रेणियां होती हैं।

वायुरोधी शीशे की एक कमी यह है कि माइक्रोफोन की उच्च आवृत्ति प्रतिक्रिया का कुछ मात्रा में क्षीणन हो जाता है, जो कि रक्षात्मक परत के घनत्व पर निर्भर होता है।

माइक्रोफोन वायुरोधी शीशों के कुछ प्रकारों को कभी-कभी "वायु प्रतिबंध (Wind Gag)" या अशिष्ट भाषा में "मृत बिल्ली (Dead Cat)[4] कहा जाता है।

माइक्रोफोन आवरण

माइक्रोफोन के आवरण अक्सर नर्म खु्ले-छिद्रों वाले पॉलीएस्टर (Polyester) या पॉलीयूरीथेन (Polyurethane) फोम से बने होते हैं क्योंकि फोम सस्ता और निर्वर्त्य (Disposable) स्वरूप वाला होता है। वैकल्पिक वायुरोधी शीशे अक्सर उत्पादक और अन्य पक्षों से उपलब्ध होते हैं। एक वैकल्पिक सहायक वायुरोधी शीशे का एक अत्यंत आम उदाहरण शुरे (Shure) द्वारा निर्मित A2WS है, जिनमें से एक को संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति के पाठ-मंच पर प्रयुक्त दो शुरे SM57 (Shure SM57) माइक्रोफोनों में से प्रत्येक पर पहनाया जाता है।[24] पॉलीयूरीथेन फोम माइक्रोफोन आवरणों की एक कमी यह है कि वे समय बीतने के साथ खराब होते जाते हैं। वायुरोधी शीशे भी अपने खुले छिद्रों में धूल और नमी एकत्र कर लेते हैं और माइक्रोफोन का प्रयोग कर रहे व्यक्ति को उच्च आवृत्ति हानि, बुरी गंध और अस्वास्थ्यकर स्थितियों से बचाने के लिये उन्हें अनिवार्य रूप से साफ किया जाना चाहिए. दूसरी ओर, एक समारोह गायक वायुरोधी शीशे का मुख्य लाभ यह है कि इसमें प्रयोक्ताओं के बीच एक स्वच्छ वायुरोधी शीशा शीघ्रतापूर्वक बदला जा सकता है, जिससे कीटाणुओं के प्रसार की संभावना कम हो जाती है। एक व्यस्त, सक्रिय मंच पर एक माइक्रोफोन को दूसरे से अलग पहचानने के लिये विभिन्न रंगों के वायुरोधी शीशों का प्रयोग किया जा सकता है।

पॉप फिल्टर

पॉप फिल्टरों या पॉप पर्दों का प्रयोग नियंत्रित स्टूडियो वातावरणों में रिकॉर्डिंग को दौरान स्वर-स्पर्श को न्यूनतम करने के लिये किया जाता है। एक विशिष्ट पॉप फिल्टर ध्वनिक रूप से पारदर्शी रेशमी वस्त्र-जैसे किसी पदार्थ, उदा. एक वृत्तालार फ्रेम पर फैला बुना हुआ नाइलोन, की एक या अधिक परतों और एक कीलक तथा माइक्रोफोन स्टैण्ड को जोड़ने के लिये एक लचीले आरोहण कोष्ठक से मिलकर बना होता है। पॉप ढाल गायक और माइक्रोफोन के बीच रखी जाती है। गायक अपने होंठ माइक्रोफोन के जितने अधिक पास लाता है, एक पॉप फिल्टर की आवश्यकता उतनी ही अधिक बढ़ जाती है। अपने स्वर-स्पर्शों को मुलायम बनाने या उनके वायु झोकों को माइक्रोफोन से दूर निर्देशित करने के लिये गायकों को प्रशिक्षित किया जा सकता है और इन दोनों ही स्थितियों में उन्हें एक पॉप फिल्टर की आवश्यकता नहीं होती.

पॉप फिल्टर थूक को माइक्रोफोन से दूर रखते हैं। अधिकांश संघनित्र माइक्रोफोन थूक के कारण क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।

ब्लिंप

चित्र:Ecoacoustics.JPG
दो रिकॉर्डिंग की जा रही है - बायीं तरफ के माइक्रोफोन में दायीं तरफ के एक ब्लिम्प का इस्तेमाल हो रहा है, जो कि एक मुक्त-प्रकोष्ठ फोम विंडस्क्रीन है।

ब्लिंप (Blimps) (जिन्हें ज़ैपेलिन्स (Zeppelins) के नाम से भी जाना जाता है) बड़े, पोले वायुरोधी शीशे होते हैं, जिनका प्रयोग बाह्य स्थल स्वर, जैसे प्रकृति रिकॉर्डिंग, इलेक्ट्रॉनिक समाचार संग्रहण और फिल्म तथा वीडियो फिल्मांकनों में माइक्रोफोनों को ढंकने के लिये किया जाता है। वे वायु के शोर में, विशिष्टतः निम्न-आवृत्ति वाले शोर के लिये, 25 dB तक की कटौती कर सकते हैं। आवश्यक रूप से ब्लिंप एक पोला पिंजरा या टोकरी होती है, जिसकी बाहरी फ्रेम पर कोई ध्वनिक-रूप से पारदर्शी पदार्थ फैला हुआ होता है। ब्लिंप माइक्रोफोन के चारों ओर स्थिर वायु के एक आयतन का निर्माण करके कार्य करता है। अक्सर इसके आगे टोकरी के भीतर एक लचीले स्प्रिंग के द्वारा माइक्रोफोन को ब्लिंप से अलग किया जाता है। यह वायु कम्पनों और पिंजरे से प्रसारित संचालन शोर को कम करता है। जिन वायु गति स्थितियों में ब्लिंप प्रभावी बना रहता है, उनकी सीमा को विस्तारित करने के लिये, इनमें से अनेक में बाहरी आवरण के भीतर एक द्वितीयक आवरण का विकल्प होता है। आमतौर पर यह एक ध्वनिक-रूप से पारदर्शी, लंबे मुलायम बालों से युक्त कृत्रिम फर वाला पदार्थ होता है (जिसे अक्सर "मृत-बिल्ली (Deadcat)" या "वायु-दस्ताना (Windmuff)" कहा जाता है). इसके बाल ब्लिंप से टकराने वाले किसी भी वायु विक्षिभ के लिये आघात अवशोषक का कार्य करते हैं। एक कृत्रिम फर आवरण वायु शोर में अतिरिक्त 10 dB की कमी कर सकता है।[25]

इन्हें भी देखें

Electronics प्रवेशद्वार
  • लाउडस्पीकर (एक माइक्रोफोन का व्युत्क्रम)
  • हाइड्रोफोन (पानी के नीचे प्रयोग के लिए माइक्रोफ़ोन)
  • जियोफोन (पृथ्वी के भीतर उपयोग करने के लिए माइक्रोफोन)
  • आयनोफोन (प्लाज्मा-आधारित माइक्रोफोन)
  • माइक्रोफ़ोन कनेक्टर
  • माइक्रोफोन अभ्यास
  • माइक्रोफोन प्रिएम्प्लिफ़ाइयर
  • A-भार
  • बटन माइक्रोफोन
  • ITU-R 468 शोर भार
  • नाममात्र प्रतिबाधा - ऑडियो घटकों के लिए प्रतिबाधा मिलान के बारे में जानकारी
  • ध्वनि दबाव स्तर
  • वायरलेस माइक्रोफोन
  • XLR कनेक्टर - माइक्रोफोन को जोड़ने के लिए प्रयोग किया जाने वाला 3-पिन प्रकार
  • शॉक माउंट - एक माइक्रोफोन माउंट जिसमें माइक्रोफोन को इलास्टिक द्वारा लटकाया जाता है

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

🔥 Top keywords: क्लियोपाट्रा ७ईद अल-अज़हानिर्जला एकादशीमुखपृष्ठविशेष:खोजभारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेशभारत का केन्द्रीय मंत्रिमण्डलभारत के प्रधान मंत्रियों की सूचीकबीरॐ नमः शिवायप्रेमचंदतुलसीदासमौसमचिराग पासवानमहादेवी वर्मासुभाष चन्द्र बोसलोकसभा अध्यक्षखाटूश्यामजीभारतीय आम चुनाव, 2019हिन्दी की गिनतीनरेन्द्र मोदीभारत का संविधानइंस्टाग्राममुर्लिकांत पेटकररासायनिक तत्वों की सूचीसूरदासश्री संकटनाशनं गणेश स्तोत्रप्रेमानंद महाराजभारतीय आम चुनाव, 2024महात्मा गांधीभारतहनुमान चालीसाश्रीमद्भगवद्गीताभारतीय राज्यों के वर्तमान मुख्यमंत्रियों की सूचीभीमराव आम्बेडकररानी लक्ष्मीबाईसंज्ञा और उसके भेदउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की सूचीगायत्री मन्त्र