बदायूँ
बदायूँ (Budaun) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बदायूँ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और एक लोकसभा निर्वाचनक्षेत्र है। बदायूँ गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। [1][2]जनपद बदायूँ के छोटे से ग्राम कोट मे अभी गौतम बुद्ध की प्रतिमा निकलीइसे बौद्ध की नगरी कहा जाता है जिससे इसका पुराना नाम वेदामऊ भी पड़ा ! जिसका सबसे बड़ा आकर्षण केंद्र भिलोलिया है
बदायूँ Budaun | |
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![]() जामा मस्जिद शम्सी, बदायूँ | |
निर्देशांक: 28°03′N 79°07′E / 28.05°N 79.12°E 79°07′E / 28.05°N 79.12°E | |
ज़िला | बदायूँ ज़िला |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
देश | ![]() |
ऊँचाई | 164 मी (538 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 3,69,221 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 243601 |
दूरभाष कोड | 05832 |
वाहन पंजीकरण | UP-24 |
लिंगानुपात | 907 स्त्री/1000 पुरुष |
साक्षरता दर | 73.00% |
वेबसाइट | http://www.budaun.nic.in/ |
इतिहास व स्थापना
11वीं शती के एक अभिलेख में, जो बदायूँ से प्राप्त हुआ है, इस नगर का तत्कालीन नाम वेदामऊ कहा गया है। इस लेख से ज्ञात होता है कि उस समय बदायूँ में पांचाल देश की राजधानी थी। बर्तमान में बदायूँ जिला , रूहेलखण्ड में आता है, रूहेलखण्ड में बरेली , बदायूँ, पीलीभीत, शाहजहाँपुर, मुरादाबाद,सम्भल,अमरोहा,रामपुर,बिजनौर जिले सामिल है।
यह जान पड़ता है कि अहिच्छत्रा नगरी, जो अति प्राचीन काल से उत्तर पांचाल की राजधानी चली आई थी, इस समय तक अपना पूर्व गौरव गँवा बैठी थी। एक किंवदन्ती में यह भी कहा गया है कि, इस नगर को अहीर सरदार राजा बुद्ध ने 10वीं शती में बसाया था जो वैदिक सभ्यता के पालन करने वाले थे।।[3] 13 वीं शताब्दी में यह दिल्ली के मुस्लिम राज्य की एक महत्त्वपूर्ण सीमावर्ती चौकी था और 1657 में बरेली द्वारा इसका स्थान लिए जाने तक प्रांतीय सूबेदार यहीं रहता था। 1838 में यह ज़िला मुख्यालय बना। कुछ लोगों का यह मत है कि बदायूँ की नींव अजयपाल ने 1175 ई. में डाली थी। राजा लखनपाल को भी नगर के बसाने का श्रेय दिया जाता है।
गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भगीरथ ने कहाँ तपस्या की थी। कन्नौज के कछवाहा वंश के राजाओं का राज्य होने के कारण गंगा घाट को कछला घाट नाम दिया गया तथा इसके कुछ ही दूर पर बूढ़ी गंगा के किनारे एक प्राचीन टीले पर अनूठी गुफा है। कपिल मुनि आश्रम के बगल स्थित इस गुफा को भगीरथ गुफा के नाम से जानते हैं। पहले यहाँ राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की भी मूर्तियाँ थी, जो कुछ साल पहले चोरी चली गईं। करीब ही राजा भगीरथ का एक अति जीर्ण-शीर्ण मंदिर है, जहाँ अब सिर्फ चरण पादुका बची हैं।अध्यात्मिक दृष्टि से सूकरखेत (बाराह क्षेत्र) का वैसे भी बहुत महत्व है। बदायूँ के कछला गंगा घाट से करीब पाँच कोस की दूरी पर कासगंज की ओर बढ़कर एक बोर्ड दिखाई पड़ता है, जिस पर लिखा है भगीरथ गुफा। एक गाँव है होडलपुर। थोड़ी दूर जंगल के बीच एक प्राचीन टीला दिखाई पड़ता है। बरगद का विशालकाय वृक्ष और अन्य पेड़ों के झुरमुटों बीच मठिया है। इसी टीले पर स्थित है कपिल मुनि आश्रम और भगीरथ गुफा। लाखोरी ईंटें से बनी एक मठिया के द्वार पर हनुमानजी की विशालकाय मूर्ति लगी है। भीतर प्रवेश करने पर एक मूर्ति और दिखाई पड़ती है, इसे स्थानीय लोग कपिल मुनि की मूर्ति बताते हैं। मूर्ति के बगल से ही सुरंगनुमा रास्ता अंदर को जाता है, जिसमें से एक व्यक्ति ही एक बार में प्रवेश कर सकता है। पाँच मीटर भीतर तक ही सुरंग की दीवारों पर लाखोरी ईटें दिखाई पड़ती हैं। इसके बाद शुरू हो जाती है कच्ची अंधेरी गुफा। सुरंगनुमा रास्ते से भीतर जाने के बाद एक बड़ी कोठरी मिलती है, जहाँ एक शिवलिंग भी कोने में है। कोठरी के बाद फिर सुरंग और फिर कोठरी। पहले गंगा इसी टीले के बगल से होकर बहती थीं। अभी भी गंगा की एक धारा समीप से होकर बहती है, जिसे बूढ़ी गंगा कहते हैं। टीले के नीचे स्थित मंदिर से दुर्लभ मुखार बिंदु शिवलिंग भी चोरी चला गया था। बाद में पुलिस ने पाली (अलीगढ़) के एक तालाब से शिवलिंग तो बरामद कर लिया, लेकिन सगर पुत्रों की मूर्तियों का अभी भी कोई पता नहीं है। इसी टीले पर तीन समाधि भी हैं, इनमें से एक को गोस्वामी तुलसीदास के गुरु नरहरिदास की समाधि कहते हैं।
नीलकंठ महादेव का प्रसिद्ध मन्दिर, शायद लखनपाल का बनवाया हुआ था। ताजुलमासिर के लेखक ने बदायूँ पर कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमण का वर्णन करते हुए इस नगर को हिन्द के प्रमुख नगरों में माना है। बदायूँ के स्मारकों में जामा मस्जिद भारत की मध्य युगीन इमारतों में शायद सबसे विशाल है इसका निर्माता इल्तुतमिश था, जिसने इसे गद्दी पर बैठने के बारह वर्ष पश्चात अर्थात 1222 ई. में बनवाया था।
आबादी
2011 की जनगणना के अनुसार, बदायूं शहर की आबादी 369,221 (188,475 पुरुष 180,746 महिला = 1000/907), 39,613 (12.3%) थी, जिनकी उम्र 0 से 6 वर्ष थी। वयस्क साक्षरता दर 73.% थी। शहर में व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा हिंदी और उर्दू है जिसमें अंग्रेजी का उपयोग बहुत कम किया जाता है, और शहर में पंजाबी भी एक महत्वपूर्ण भाषा है।[4]
रचना-सौंदर्य
यहाँ की जामा मस्जिद प्रायः समान्तर चतुर्भुज के आकार की है, किन्तु पूर्व की ओर अधिक चौड़ी है। भीतरी प्रागंण के पूर्वी कोण पर मुख्य मस्जिद है, जो तीन भागों में विभाजित है। बीच के प्रकोष्ठ पर गुम्बद है। बाहर से देखने पर यह मस्जिद साधारण सी दिखती है, किन्तु इसके चारों कोनों की बुर्जियों पर सुन्दर नक़्क़ाशी और शिल्प प्रदर्शित है। बदायूँ में सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलज़ी के परिवार के बनवाए हुए कई मक़बरे हैं।
प्राचीन इमारतों
अलाउद्दीन ने अपने जीवन के अन्तिम वर्ष बदायूँ में ही बिताए थे। अकबर के दरबार का इतिहास लेखक अब्दुलक़ादिर बदायूँनी यहाँ अनेक वर्षों तक रहे थे और बदायूँनी ने इसे अपनी आँखों से देखा। बदायूँनी का मक़बरा बदायूँ का प्रसिद्ध स्मारक है। इसके अतिरिक्त इमादुल्मुल्क की दरगाह (पिसनहारी का गुम्बद) भी यहाँ की प्राचीन इमारतों में उल्लेखनीय है।
कृषि व उद्योग
बदायूँ में आसपास के क्षेत्रों में चावल, गेंहूं, जौ, बाजरा और सफ़ेद चने की उपज होती है। यहाँ लघु उद्योग भी हैं।बदायूँ मैन्था के लिए मशहूर है देश का लगभग ४०% फ़ीसद मैन्था यहीं होता है इसलिए इसे भारत का मैन्था शहर भी कहते हैं
राजनीति
आदित्य यादव , बदायूं निर्वाचन क्षेत्र के सांसद हैं और शिवपाल यादव के बेटा हैं।[6]
शिक्षा
यहां पे चार डिग्री कॉलेज हैं जैसे अगर हम डिग्री कॉलेज पर नजर डालें तो नेहरु मेमोरियल शिवनारायण दास डिग्री कॉलेज , राजकीय डिग्री कॉलेज , राजकीय महिला डिग्री कॉलेज और आसिम मेमोरीयल डिग्री कॉलेज हैं ओर भी यहां कई कॉलेज हैं लेकिन सरकार ने बदायूं को एक मेडिकल कॉलेज भी दिया यहां एक मेडिकल कॉलेज भी है। यहाँ हाफ़िज मुहम्मद सिद्दीकी इसलामिया इंटर कॉलेज है।