प्रियंका गांधी

भारतीय राजनितिज्ञ

प्रियंका गांधी वाड्रा या प्रियंका गांधी वढेरा[उद्धरण चाहिए] (जन्म: जनवरी 12,1972, दिल्ली) एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। वे वर्तमान में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय महासचिव तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं। वे गांधी-नेहरू परिवार से है और फिरोज़ गाँधी तथा इंदिरा गाँधी की पोती हैं।

प्रियंका गांधी वाड्रा

राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी
(पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए)
पदस्थ
कार्यालय ग्रहण 
7 फरवरी 2019

जन्म12 जनवरी 1972 (1972-01-12) (आयु 52)
दिल्ली, भारत
राजनीतिक दलभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जीवन संगीरॉबर्ट वाड्रा
संबंधनेहरू–गांधी परिवार
बच्चेरेहान वाड्रा
मिराया वाड्रा
निवासदिल्ली
शैक्षिक सम्बद्धतादिल्ली विश्वविद्यालय
हस्ताक्षर

प्रारम्भिक जीवन

प्रियंका वाड्रा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की मुखिया सोनिया गाँधी की दूसरी संतान है।[उद्धरण चाहिए] उनकी दादी इंदिरा गाँधी और नाना जवाहर लाल नेहरू भी भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं। उनके दादा फिरोज़ गाँधी एक जाने-माने संसद सदस्य थे और उनके परनाना, मोतीलाल नेहरु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण नेता थे।[उद्धरण चाहिए]

इन्होंने अपनी शिक्षा माडर्न स्कूल[1], कॉन्वेंट ऑफ़ जीसस एण्ड मैरी, नई दिल्ली से प्राप्त की और वह दिल्ली विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान विषय की स्नातक हैं। वह एक शौकिया रेडियो संचालक है, जिनके पास VU2PGY कालसाइन है।

राजनीतिक जीवन

प्रियंका वाड्रा की भूमिका को राजनीति में विरोधाभास के तौर पर देखा जाता है[उद्धरण चाहिए], हालाँकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के लिए लगातार चुनाव प्रचार के दौरान इन्होने राजनीति में कम रूचि लेने की बात कही।

1999 के चुनाव अभियान के दौरान, बीबीसी के लिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा: मेरे दिमाग में यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि राजनीति शक्तिशाली नहीं है, बल्कि जनता अधिक महत्वपूर्ण है और मैं उनकी सेवा राजनीति से बाहर रहकर भी कर सकती हूँ।[2] तथापि उनके औपचारिक राजनीति में जाने का प्रश्न परेशानीयुक्त लगता है: "मैं यह बात हजारों बार दोहरा चुकी हूँ, कि मैं राजनीति[3] में जाने की इच्छुक नहीं हूँ..."।

हालांकि, उन्होंने अपनी माँ और भाई के निर्वाचन क्षेत्रों रायबरेली और अमेठी में नियमित रूप से दौरा किया और जहां उन्होंने लोगों से सीधा संवाद ही स्थापित नहीं किया वरण इसका आनंद भी लिया। वह निर्वाचन क्षेत्र में एक लोकप्रिय व्यक्तित्व है, अपनी चारो तरफ अपार जनता को आकर्षित करने में सफल भी हैं; अमेठी में प्रत्येक चुनाव के समय एक लोकप्रिय नारा है अमेठी का डंका, बिटिया प्रियंका, (इसका मतलब है कि लोग कहते हैं कि अमेठी प्रियंका का है [चुनाव में खड़े होने के लिए])[4]। इनकी गणना अच्छे, सुलझी और सफल आयोजको में की जाती है और उन्हें अपनी माँ की "मुख्य राजनीतिक सलाहकार"[4] माना जाता है।

2004 के भारतीय आम चुनाव में, वह अपनी माँ की चुनाव अभियान प्रबंधक थी और अपने भाई राहुल गाँधी के चुनाव प्रबंधन में मदद की। एक प्रेस वार्ता में इन्ही चुनावों के दौरान उन्होंने कहा कि "राजनीति का मतलब जनता की सेवा करना है और मैं वह पहले से ही कर रही हूँ। मैं इसे पांच और अधिक सालों के लिए जारी रख सकती हूँ।"[5] इस बात से यह अटकलें तेज हो गई कि वह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के लिए कोई जिम्मेदारी वहन कर सकती हैं। बीबीसी हिन्दी रेडियो सेवा के एक साक्षात्कार में श्रीलंका में युद्ध का उल्लेख किया और टिप्पणी की "तुम्हारे आतंकवादी बनने में केवल तुम जिम्मेदार नहीं हो बल्कि तुम्हारी पद्धति जिम्मेदार है जो तुम्हे एक आतंकवादी बनाती है।"

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2007

2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में, जहाँ राहुल गाँधी ने राज्यव्यापी अभियान का प्रबंधन किया, वही वह अमेठी रायबरेली क्षेत्र के दस सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही थी, वहां दो सप्ताह बिता कर उन्होनें पार्टी कार्यकर्ताओं में मध्य सीटों के आवंटन को लेकर हुई[6] अंदरूनी कलह को सुलझाने की कोशिश की। कुल मिलाकर, कांग्रेस पार्टी राज्य में हासिये पर चली गई, उसे 402 में से मात्र 22 सीटों[7] पर ही जीत हासिल हुई, जो की इन दशकों में न्यूनतम है। लेकिन, इसमें व्यापक रूप से प्रियंका गाँधी के अन्तर संगठनात्मक गुण और वोट खींचने की क्षमता का पता चलता है, जिस कांग्रेस को 2002 के विधानसभा में सिर्फ दो (दस में से) सीटें हासिल हुई थी, उसने सात सीटें हथिया ली, इन सभी सीटों पर महत्वपूर्ण बढ़त प्राप्त हुई, जो कि कार्यकर्ताओं में पार्टी अंतर्कलह के बावजूद संभव हुआ। रायबरेली और अमेठी क्षेत्र के प्रत्येक पांच सीटों का ब्यौरा इस प्रकार है:

सं.निर्वाचन क्षेत्रपार्टीनिर्वाचित प्रतिनिधिआधिकारिक परिणामकांग्रेस का प्रतिशत 2007 (2002)
0.91बछरावांकांग्रेसराजा रामपरिणाम: 91 33.19 (9.95)
093रायबरेलीनिर्दलीयअखिलेश कुमार सिंहपरिणाम: 93 20.25 (74.18)
094सतावोंकांग्रेसशिव गणेशपरिणाम: 94 49.13 (6.69)
095सरेनीकांग्रेसअशोक कुमार सिंहपरिणाम: 95 43.53 (20.86)
096दलमौऊकांग्रेसअजय पाल सिंहपरिणाम: 96 36.38 (9.23)
092तिलोईसमाजवादी पार्टीमयंकेश्वर शरण सिंहपरिणाम: 92 31.34 (24.02)
097सालोंनकांग्रेसशिव बालक पासीपरिणाम: 97 37.14 (25.17)
105अमेठीकांग्रेसअमिता सिंहपरिणाम: 105 40.59 (28.06)
106गौरीगंजबसपाचंद्र प्रकाशपरिणाम: 106 24.55 (22.71)
107जगदीशपुरकांग्रेसराम सेवकपरिणाम: 107 37.6 (33.04)

ध्यान दें कि रायबरेली से, पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी, जो 1993 से कांग्रेस से ही जीतते थे, असन्तुष्ट हो कर कोंग्रेस से अलग हो कर, एक निर्दलीय के रूप में खड़े होकर जीत गए। हालाँकि इस क्षेत्र के अन्य सभी चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस को महत्वपूर्ण बढ़त हासिल हुई।

व्यक्तिगत जीवन

उनकी शादी रॉबर्ट वाड्रा से हुई, जिनसे उनकी मुलाकात संभवतः उनके पारिवारिक मित्र ओत्तावियो क्वात्रोची के घर[8] पर हुई। उनके रेहान और मिराया नामक दो बच्चे हैं।

मास्सिमो क्वात्रोची से संबंध के आरोप

जब ६ फरवरी २००७ को बोफोर्स घोटाले में दागी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोची अर्जेंटीना में गिरफ्तार हुआ था और भारत सरकार की टीम को उसका प्रत्यर्पण कर भारत लाने में असफल रहने पर इंडियन एक्सप्रेस ने ओत्तावियो के पुत्र मास्सिमो क्वात्रोची पर आरोप लगाया था जो कि राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी के साथ लगभग दो दशको तक (1974-1993, शुरुआत में जब दोनों की प्रवासी माताएं भारत में नई थी), साथ में पले बढ़े थे, शायद 17 फरवरी[9] की एक पार्टी में में इन लोगों की मुलाकात हुई हो। परन्तु इस आरोप का कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह द्वारा दृढ़ता से इनकार किया गया था, जिन्होंने एक साक्षात्कार में कहा: "मैं यह बात दावे से कह रहा हूँ कि सरकार ने क्वात्रोची की जांच में कभी दखल नहीं दिया है और जहाँ तक राहुल गाँधी और प्रियंका गांधी का संबंध है, उनका इस मामले से कोई लेना देना नहीं है।"[10]. बहरहाल, इस मामले में मास्सिमो के उस समय भारत में रहने और सीबीआई द्वारा आश्चर्यजनक रूप से क्वात्रोकी की गिरफ्तारी[11] की स्वीकृति में देरी की वजह से अटकलें जारी है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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