नीलगिरि तहर
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नीलगिरि तहर | |
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वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | रज्जुकी |
वर्ग: | स्तनधारी |
गण: | आर्टिओडैक्टिला |
कुल: | बोविडी |
उपकुल: | कैप्रिनी |
वंश: | नीलगिरिट्रैगस रोपिके तथा हसनिन, २००५ |
जाति: | ऍन. हायलोक्रिअस |
द्विपद नाम | |
नीलगिरिट्रैगस हायलोक्रिअस (ओगिल्बी, १८३८) | |
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नीलगिरि तहर का आवास क्षेत्र | |
पर्यायवाची | |
हॅमिट्रैगस हायलोक्रिअस |
नीलगिरि तहर (Nilgiritragus hylocrius) भारत के तमिल नाडु और केरल राज्यों में नीलगिरि पर्वत और पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग में रहने वाला जंगली प्राणी है जिसके निकट सम्बन्धी जंगली बकरी और भेड़ हैं। इसे स्थानीय बोल-चाल में नीलगिरि साकिन (ibex) या केवल साकिन के नाम से भी जाना जाता है। IUCN के अनुसार लुप्तप्राय जाति है। 1972 में अनुसूची: 1[1]
इसका निवास स्थान दक्षिणी पश्चिमी घाट के पर्वतीय वर्षा वनों के खुले पर्वतीय चारागाह हैं। ये चारागाह कम ऊंचाई पर घने जंगलों से घिरे रहते हैं। यह पहले बड़े झुण्डों में इन घास के मैदानों में चरते थे लेकिन उन्नीसवीं सदी में इनके आखेट और अवैध शिकार की वजह से बीसवीं सदी की शुरुआत में इसकी संख्या महज़ १०० रह गई थी जो अब बढ़कर २००० हो गई है और इसी कारण से यह जाति आई यू सी एन द्वारा संकटग्रस्त घोषित करी गई है। इनका आवास क्षेत्र उत्तर से दक्षिण में ४०० किलोमीटर में फैला हुआ है और एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान इसकी सबसे बड़ी आबादी का घर है।
तमिल भाषा में इसके नाम का अर्थ है खाई की बकरी जबकि हाल के अनुसंधानों से यह पता चला है कि यह बकरी से अधिक भेड़ का सम्बन्धी है। सन् २००५ तक इसे अन्य तहर की श्रेणी हॅमिट्रैगस के साथ रखा गया था लेकिन अब इसकी प्रजाति को एक नया नाम नीलगिरिट्रैगस दे दिया गया है।
यह एक गठीले बदन का प्राणी है जिसके खाल के बाल छोटे और रूखे होते हैं और चुभने वाली अयाल होती है। नर मादा से बड़ा होता है और परिपक्व होने पर इसका रंग और गाढ़ा हो जाता है। दोनों लिंगों के सींग होते हैं जो घुमावदार होते हैं नरों में यह ४० सेंटीमीटर तक पहुँच सकते हैं जबकि मादाओं में यह थोड़ा छोटे होते हैं और ३० सेंटीमीटर तक ही लंबे होते हैं। वयस्क नर का वज़न ८० से १०० किलोग्राम तथा कंधे तक लंबाई १०० सेंटीमीटर तक होती है। वयस्क नरों की पीठ हल्के सलेटी रंग की हो जाती है जिससे इनको आसानी से पहचाना जा सकता है।