नीरो

रोमन सम्राट

नीरो (लैटिन : Nero Claudius Caesar Augustus Germanicus; 15 दिसम्बर 37 – 9 जून 68) रोम का सम्राट् था।[2] उसकी माता ऐग्रिप्पिना, जो रोम के प्रथम सम्राट् आगस्टस की प्रपौत्री थी, बड़ी ही महत्वाकांक्षिणी थी। उसने बाद में अपने मामा नि:परवाह सम्राट् क्लाडिअस प्रथम से विवाह कर लिया और अपने नए पति को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह नीरो को अपना दत्तक पुत्र मान ले और उसे ही राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दे। नीरो को शीघ्र ही गद्दी पर बैठाने के लिए ऐग्रिप्पिना उतावली हो उठी और उसने जहर दिलाकर क्लाडिअस की हत्या करा दी गई।

नीरो
Male bust facing right
Bust, Musei Capitolini, Rome
Roman emperor
शासनावधि13 October 54 – 9 June 68 AD
पूर्ववर्तीClaudius
उत्तरवर्तीGalba
जन्म15 December 37 AD
Antium, Italy
निधन9 June 68 AD (aged 30)
Outside रोम, Italy
समाधि
Mausoleum of the Domitii Ahenobarbi, Pincian Hill, Rome
जीवनसंगी
  • Claudia Octavia
  • Poppaea Sabina
  • Statilia Messalina
  • Sporus
  • Pythagoras (freedman)
संतानClaudia Augusta
पूरा नाम
Lucius Domitius Ahenobarbus (birth)
Nero Claudius Caesar Drusus Germanicus (AD 50)[1]
शासनावधि नाम
Nero Claudius Caesar Augustus Germanicus
राजवंशJulio-Claudian
पिता
  • Gnaeus Domitius Ahenobarbus
  • Claudius (adoptive)
माताAgrippina the Younger
नीरो ग्लिप्टोतेक म्यूनिख ३२१

रोम निवसियों ने पहले तो नीरो का स्वागत और समर्थन किया क्योंकि वह पितृ परंपरा से ही नहीं मातृ परंपरा से भी सम्राट् आगस्टस का वंशज था। शुरु में उसने अपने गुरु सेनेका से प्रभावित होकर राज्य का शासन भी अच्छी तरह से किया किंतु शीघ्र ही उसके दुर्गुण प्रकट होने लगे। सन्‌ 55 में उसने अपने प्रतिद्वंद्वी ब्रिटेनिकस को, जो क्लाडिअस का अपना पुत्र होने के कारण, राज्य का वास्तविक दावेदार था, जहर देकर मरवा डाला और चार वर्ष बाद खुद अपनी माता की भी हत्या करा दी। फिर उसने अपनी पत्नी आक्टेविया को भी मरवा डाला और अपनी दूसरी स्त्री पापीया को क्रोधाविष्ट होकर मार डाला। उसने एक तीसरी स्त्री से विवाह करना चाहा पर उसने इनकार कर दिया और उसे भी मौत के घाट उतार दिया गया। इसके बाद नीरो ने एक और स्त्री के पति को मरवा डाला ताकि वह उसे अपनी पत्नी बना सके। धीरे धीरे उसके प्रति असंतोष बढ़ने लगा। एक षड़यंत्र का सुराग पाकर उसने अपने गुरु सेनेका को आत्महत्या करने का आदेश दिया। इसके सिवा और भी कई प्रसिद्ध पुरुषों को मृत्युदंड दे दिया गया।

सन्‌ 64 में रोम नगर में अत्यंत रहस्यमय ढंग से आग की लपटें भड़क उठीं जिससे आधे से अधिक नगर जलकर खाक हो गया। जब आग धूधू कर के जल रही थी नीरो एक स्थान पर खड़े होकर उसकी विनाशलीला देख रहा था और सारंगी बजा रहा था। यद्यपि कुछ लोगों का ख्याल है कि आग स्वयं नीरो ने लगवाई थी पर ऐसा समझने के लिए वस्तुत: कोई आधार नहीं है। आग बुझ जाने के बाद नीरो ने नगर के पुनर्निमणि का कार्य आरंभ किया और अपने लिए 'स्वर्ण मंदिर' नामक एक भव्य प्रासाद बनवाया। असह्य करभार, शासन संबंधी बुराइयों तथा अनेक क्रूरताओं के कारण उसके विरुद्ध विद्रोह की भावना बढ़ती गई। स्पेन के रोमन गवर्नर ने अपनी फौजों के साथ रोम पर हमला बोल दिया जिसमें स्वयं नीरो को अंगरक्षक सेना भी शामिल हो गई। नीरो को राज्य से पलायन करना पड़ा। इसी बीच सिनेट ने उसे फाँसी पर चढ़ा देने का निर्णय किया। गिरफ्तारी से बचने के लिए उसने आत्महत्या कर ली।

संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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