थोल. थिरुमावलवन

भारतीय राजनीतिज्ञ

तिरुमावलवन या तोल. तिरुमावलवन (तमिल: தொல்.திருமாவளவன், जन्म 17 अगस्त 1962), एक दलित कार्यकर्ता, 15वीं लोकसभा में संसद सदस्य और भारत के तमिलनाडु राज्य की एक दलित राजनीतिक पार्टी, विड़ूदलाई चिरुतैगल कच्ची (लिबरेशन पैंथर्स पार्टी) के मौजूदा अध्यक्ष हैं। वे 1990 के दशक में एक दलित नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए और 1999 में उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। उनका राजनीतिक आधार, दलितों के जाति आधारित उत्पीड़न को रोकने पर केन्द्रित है, जो उनके हिसाब से तमिल राष्ट्रवाद को पुनर्जीवित और पुनर्निर्देशित करने के माध्यम से ही हासिल किया जा सकता है। उन्होंने श्रीलंका सहित अन्य स्थानों में तमिल राष्ट्रवादी आंदोलनों और समूहों के लिए समर्थन भी व्यक्त किया है।

Thol.Thirumavalavan

Member of Parliament
चुनाव-क्षेत्रChidambaram

जन्म17 अगस्त 1962 (1962-08-17) (आयु 61)
Anganur, तमिलनाडु, भारत
राजनीतिक दलVCK
निवासChennai

प्रारम्भिक जीवन

तिरुमावलवन, तोल्काप्पियन (रामासामी) और पेरियामल की दूसरी संतान थे और इनका जन्म तमिलनाडु, भारत के अरियालुर जिले में अन्गनुर गाँव में हुआ था। उनके पिता ने आठवीं कक्षा तक अध्ययन किया था, जबकि उनकी माँ अशिक्षित रही। उनकी एक बहन और तीन भाई हैं, लेकिन अपने परिवार के वे ही ऐसे एकमात्र सदस्य थे जिसने स्कूल के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने शुरू में रसायन विज्ञान का अध्ययन किया और बाद में अपराध विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने मद्रास लॉ कॉलेज से विधि का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने सहायक वैज्ञानिक के रूप में सरकारी फोरेंसिक विभाग में काम करना शुरू किया।[1]

श्रीलंका में तमिलों पर श्रीलंकाई सेना के अत्याचारों की शरणार्थियों द्वारा मिली खबर की प्रतिक्रिया स्वरूप राजनीति में उनकी रूचि 1982 में बढ़ने लगी जब वे अभी छात्र ही थे। श्रीलंका के मुद्दे को समर्थन देने के लिए उन्होंने रैलियां, बहिष्कार और सम्मेलनों को आयोजित करना शुरू किया। उन्होंने मद्रास लॉ कॉलेज का चक्कर लगाया, लेकिन असफल रहे। उन्होंने कहा कि ऐसा, कथित तौर पर उनके दलित होने के कारण था। इस घटना के बाद उनकी मुलाक़ात तमिलनाडु की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के पार्टी नेताओं से हुई। [1]

दलित आन्दोलन

1988 में, दक्षिणी शहर मदुरै में सरकारी फोरेंसिक विभाग में काम करते हुए, उनकी मुलाकात दलित पैंथर्स ऑफ इंडिया (डीपीआई), दलितों के अधिकार के लिए लड़ने वाला एक संगठन के तमिलनाडु राज्य संयोजक मलैचामी से हुई। अगले साल मलैचामी की मृत्यु के बाद, थिरुमावलवन को डीपीआई का नेता चुना गया। उन्होंने 1990 में संगठन के लिए एक नया झंडा बनाया। अपने काम के हिस्से के रूप में, उन्होंने मदुरै क्षेत्र के दलित गाँवों का दौरा शुरू किया और दलितों को पेश आ रही समस्याओं को समझना शुरू किया। 1992 में दो दलितों की हत्या ने, वे कहते हैं, उन्हें और अधिक उग्रवादी बना दिया। [1] बढ़ती दलित मुखरता की पृष्ठभूमि पर, वे तमिलनाडु में दो प्रमुख दलित नेताओं में से एक के रूप में उभरे, जिसके पास निचले स्तर के समर्थन का विशाल आधार था, विशेष रूप से तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों में.[2]

राजनीतिक कार्यालय

डीपीआई ने 1999 के आम चुनावों तक चुनाव का बहिष्कार किया। थिरुमावलवन ने जी.के. मूपनार की 'तमिल मानिला कांग्रेस' के साथ गठबंधन किया और तीसरे मोर्चे का प्रतिनिधित्व किया। पार्टी ने चिदम्बरम और पेरम्बलुर संसदीय क्षेत्रों से चुनाव लड़ा. थिरुमावलवन ने चिदम्बरम में चुनाव लड़ा और अपने प्रथम चुनाव में 2.25 लाख वोट पाने में सफल रहे। [3]

2001 राज्य चुनावों में विदुथालाई चिरुथैगल ने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के साथ हाथ मिलाया और 8 सीटों पर चुनाव लड़ा. [उद्धरण चाहिए] थिरुमा को राज्य विधानसभा के लिए मंगलौर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित किया गया।[4] थिरुमावलवन ने 2004 के आम चुनाव में एक बार फिर चिदंबरम से चुनाव लड़ा और इस बार जनता दल (यूनाईटेड) से और उन्हें कुल 2.57 लाख वोट हासिल हुए मगर वे न्यून अंतर से हार गए।[5]

वे तमिलनाडु विधानसभा के लिए हुए 2006 चुनाव में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) गठबंधन में शामिल हो गए। उनकी पार्टी को 2 मार्च 2006 को भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा एक पंजीकृत राजनैतिक दल के रूप में मान्यता दी गई। विदुथालाई चिरुथैगल कच्ची ने तमिलनाडु में 9 सीटों और पुडुचेरी में 2 सीटों पर चुनाव लड़ा. पार्टी ने उनमें से दो में जीत हासिल की: दुरई रविकुमार ने कट्टुमन्नारकोइल से जीत हासिल की और सेल्वापेरुन्थागाई ने मंगलौर निर्वाचन क्षेत्र से.[6]. 2009 के आम चुनाव में, थिरुमावलवन को चिदंबरम लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से संसद के लिए निर्वाचित किया गया।

राजनीतिक दृष्टिकोण

थिरुमावलवन की राजनीति तमिल राष्ट्रवाद को पुनर्परिभाषित करने पर आधारित है, जो इसे जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिए एक बल के रूप में परिवर्तित करना चाहती है।[7] वे कहते हैं कि दलितों का उत्पीड़न, भारत में संस्थागत है, जिसमें तमिलनाडु भी शामिल है। हालांकि द्रविड़ पार्टियां जो तमिलनाडु की राजनीति पर हावी हैं, वे जाती व्यवस्था के उन्मूलन के लिए वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध हैं, थिरुमावलवन का तर्क है कि वे लोग व्यवहार में द्रविड़ आंदोलन के मूल आदर्शों से दूर हो गए हैं। वे कहते हैं कि उनकी नीतियों ने मुख्य रूप से मध्य जातियों को ही लाभान्वित किया है और वास्तव में दलितों के उत्पीड़न में वृद्धि की है जहां अत्याचारी रूप में ब्राह्मणों की जगह मध्य जातियों ने ली है। दलित, द्रविड़ पार्टियों से ज्यादा मदद की उम्मीद नहीं कर सकते और उन्हें करना भी नहीं चाहिए। [2]

थिरुमावलवन के अनुसार, समाधान तमिल राष्ट्रवाद में है। वे कहते हैं कि जाति उत्पीड़न को सिर्फ निचले स्तर से प्रतिरोध खड़ा कर के, तमिल भावनाओं को जगा कर समाप्त किया जा सकता है, जैसा कि पेरियार ई.वी. रामासामी के दिशानिर्देश में द्रविड़ आंदोलन के शुरूआती दिनों में हुआ था।[2] अगर तमिलनाडु में एक सही सरकार गठित होती है, तो जाति उत्पीड़न तुरन्त गायब हो जाएगा.[7]

थिरुमावलवन, हिन्दू राष्ट्रवाद के भी कट्टर आलोचक हैं, विशेष रूप से हिंदुत्व के. थिरुमावलवन के अनुसार, हिंदुत्व, दमनकारी भारतीय राज्य का सार है।[7] उनका तर्क है कि हिंदुत्व ने धर्म के माध्यम से तमिल समाज को उत्तरी भारत के साथ मिश्रित करने का काम किया है। इससे, वे कहते हैं, कि तमिल लोगों ने अपनी पहचान खोई है।[2] उनकी दृष्टि में, जातीय तमिल राष्ट्रवाद, हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए आवश्यक है।[7]

तमिल पहचान के महत्व पर थिरुमावलवन के विचार ने उन्हें श्रीलंका में तमिल अलगाववादी समूहों का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया है, जिसमें शामिल है लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम, जो एक जंगी अलगाववादी समूह है जिन्हें औपचारिक रूप से एक आतंकवादी संगठन के रूप में भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया है।[1] उन्होंने 2008 और 2009 में लिट्टे के ख़िलाफ़ श्रीलंकाई सैन्य अभियानों में श्रीलंकाई सेना की सहायता करने के लिए भारत की आलोचना की और तमिलनाडु सरकार से श्रीलंका के तमिलों की रक्षा के निमित्त कदम उठाने के लिए आग्रह किया।[8] 15 जनवरी 2009 को उन्होंने श्रीलंका के तमिल हितों को लेकर चेन्नई (मरैमलई अडिगल नगर) के पास भूख-हड़ताल शुरू की। [9] चार दिनों के बाद, 19 जनवरी को उन्होंने अपना उपवास बंद कर दिया और यह कहा कि इससे भारतीय सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और इसकी जगह उन्होंने हड़ताल करने की बात कही.[10]

पुस्तकें

तमिल में उनकी पुस्तकों में शामिल हैं 'अथ्थुमीरूम' (ट्रांग्रेस), 'तमिलअर्गल हिन्दुक्कड़ा?' (क्या तमिल हिन्दू हैं?), 'ईलम एनराल पुलिगल, पुलिगल एनराल ईलम' (ईलम का अर्थ है शेर, शेर का अर्थ है ईलम), 'हिंदुत्ववत्तई वेरारुपोम' (हमें हिंदुत्व को उखाड़ फेंकना चाहिए), 'साडिय सन्दर्पवाद अनियई वीलतुवोम' (हमें अवसरवादी जातिवादी गठबंधन को परास्त करना होगा).

उनकी दो किताबें स्त्री साम्य बुक्स, कोलकाता द्वारा अंग्रेज़़ी में प्रकाशित की गई हैं; तलिस्मा: एक्सट्रीम इमोशंस ऑफ़ दलित लिबरेशन (इंडिया टुडे पत्रिका के तमिल संस्करण के लिए 34 सप्ताह तक लिखे गए राजनीतिक निबंध)[2] और अपरूट हिंदुत्व: द फायरी वौइस ऑफ़ द लिबरेशन पैंथर्स (उनके 12 भाषण समाहित).[7]

वे जाफना, श्रीलंका में मानुदत्तिन तमिल कोडल (मानवता की तमिल बैठक) के अतिथि थे, जिसे कला और साहित्य संघ के अलावा अन्य संगठनों जैसे नीदरसनम द्वारा आयोजित किया गया था।[11]

फ़िल्में

एल.जी. रविचन्द्रन द्वारा निर्देशित अपनी पहली फिल्म 'अन्बू तोलि' (लेडी लव)[12] में थिरुमावलवन की श्रीलंका के तमिल उग्रवादी नेता के रूप में एक लघु भूमिका थी।[1] इसके बाद थिरुमावलवन को 'कलहम' (विद्रोह) नामक फिल्म में प्रमुख भूमिका में पेश किया गया है। उन्होंने लॉ कॉलेज के प्रोफेसर, बालासिंघम का चरित्र निभाया है, जिसका निर्देशन मु कलंचियम द्वारा किया गया है। यह इनकी दूसरी फिल्म होगी। [1] उन्होंने मंसूर अली खान की 'एन्ने पार योगम वरुम' में एक अतिथि भूमिका भी की है।

सन्दर्भ

अतिरिक्त पठन

बाहरी कड़ियाँ

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