तिब्बत का पठार

मध्य, दक्षिण और पूर्वी एशिया में पठार

तिब्बत का पठार (तिब्बती: བོད་ས་མཐོ།, बोड सा म्थो) मध्य एशिया में स्थित एक ऊँचाई वाला विशाल पठार है।[1][2][3][4] यह दक्षिण में हिमालय पर्वत शृंखला से लेकर उत्तर में टकलामकान रेगिस्तान तक विस्तृत है। इसमें चीन द्वारा नियंत्रित बोड स्वायत्त क्षेत्र, चिंग हई, पश्चिमी सीश्वान, दक्षिण-पश्चिमी गांसू और उत्तरी यून्नान क्षेत्रों के साथ-साथ भारत का लद्दाख़ इलाक़ा आता है। उत्तर-से-दक्षिण तक यह पठार १,००० किलोमीटर लम्बा और पूर्व-से-पश्चिम तक २,५०० किलोमीटर चौड़ा है। यहाँ की औसत ऊँचाई समुद्र से ४,५०० मीटर (यानी १४,८०० फ़ुट) है और विशव के ८,००० मीटर (२६,००० फ़ुट) से ऊँचे सभी १४ पर्वत इसी क्षेत्र में या इसे इर्द-गिर्द पाए जाते हैं। इस इलाक़े को कभी-कभी "दुनिया की छत" कहा जाता है। तिब्बत के पठार का कुल क्षेत्रफल २५ लाख वर्ग किमी है, यानी भारत के क्षेत्रफल का ७५% और फ़्रांस के समूचे देश का चौगुना।[5]

तिब्बत का पठार हिमालय पर्वत शृंखला से लेकर उत्तर में टकलामकान रेगिस्तान तक फैला हुआ है
तिब्बत का बहुत सा इलाक़ा शुष्क है

भूगोल

तिब्बत का पठार महान पर्वत शृंखलाओं से घिरा हुआ है। उत्तर में कुनलुन पर्वत शृंखला है जो इस पठार के और तारिम द्रोणी के बीच है। पूर्वोत्तर में चिलियन पर्वतमाला इसे गोबी रेगिस्तान से विभाजित करती है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व में खुले पठार की बजाए जंगलों से ढकी घाटियाँ हैं जहाँ से एशिया की बहुत सी प्रमुख नदियाँ शुरू होती हैं, जैसे की सालवीन नदी, मीकांग नदी और यांग्त्सीक्यांग। भारत की महत्वपूर्ण ब्रह्मपुत्र नदी भी दक्षिण तिब्बत से शुरू होती है। पश्चिम की ओर इस पठार और उत्तरी कश्मीर के बीच विशाल काराकोरम पर्वत आते हैं। ध्यान दीजिये कि भारत का लद्दाख़ क्षेत्र भी इसी पठार पर स्थित है और जब कोई दिल्ली से लद्दाख़ जाता है तो वास्तव में वह पूरी हिमालय पर्वत शृंखला को पार कर के तिब्बत के पठार पर पहुँच जाता है। उत्तर में तिब्बती पठार की सीमा पर अचानक ऊँचाई कम हो जाती है। इस कगार पर १५० किमी के फ़ासले के भीतर ऊँचाई ५,००० मीटर से १,५०० मीटर गिर जाती है।

मौसम

पठार का वातावरण एक ऊंची और शुष्क स्तेपी का है जिसमें बीच-बीच में ऊँचे पहाड़ और खारे सरोवर हैं। यहाँ वर्षा कम बरसती है और हर साल १०० से ३०० मिलीमीटर तक जमा हुआ ज़्यादातर पानी ओलों के रूप में गिरता है। पठार के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में घास के मैदान हैं जहाँ मवेशी-पालन से ख़ानाबदोश लोग जीवन बसर करते हैं। बहुत से क्षेत्रों में इतनी सर्दी होती है कि ज़मीन हमेशा के लिए सख़्ती से जमी होती है। पठार के पश्चिमोत्तरी भाग में ५,००० मीटर से अधिक ऊँचाई वाला चान्गतंग इलाक़ा है जो भारत के दक्षिणपूर्वी लद्दाख़ क्षेत्र तक फैला हुआ है। यहाँ सर्दियों में तापमान −४० °सेंटीग्रेड तक गिर जाता है। इन भयंकर परिस्थितियों की वजह से यहाँ बहुत कम आबादी है। अंटार्कटिका और उत्तरी ग्रीनलैण्ड के सदैव बर्फ़ग्रस्त क्षेत्रों के बाद चान्गतंग दुनिया का तीसरा सब से कम घनी आबादी वाला इलाक़ा है। तिब्बत के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ लोगों ने कभी पेड़ ही नहीं देखा।[6][7]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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