किसी भौतिक वस्तु के विनिमय के बिना ही संदेश को दूर तक संप्रेषित करना टेलीग्राफी (Telegraphy) कहलाता है। विद्युत् धारा की सहायता से, पूर्व निर्धारित संकेतों द्वारा, संवाद एवं समाचारों को एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजनेवाला तथा प्राप्त करनेवाला यंत्र तारयंत्र (telegraph) कहलाता है। वर्तमान में यह प्रौद्योगिकी अप्रचलित (obsolete/आब्सोलीट) हो गयी है।
परिचय
सैमुएल मोर्स के मस्तिष्क में यह विचार आया कि विद्युत् की शक्ति से भी समाचार भेजे जा सकते हैं। इस दिशा में सर्वप्रथम प्रयोग स्कॉटलैंड भी समाचार भेजे जा सकते हैं। इस दिशा में सर्वप्रथम प्रयोग स्कॉटलैंड के वैज्ञानिक डॉ॰ माडीसन से सन् 1753 में किया। इसको मूर्त रूप देने में ब्रिटिश वैज्ञानिक रोनाल्ड का हाथ था, जिन्होने सन् 1838 में तार द्वारा खबरें भेजने की व्यावहारिकता का प्रतिपादन सार्वजनिक रूप से किया। यद्यपि रोनाल्ड ने तार से खबरें भेजना संभव कर दिखाया, किन्तु आजकल के तारयंत्र के आविष्कार का अधिकाश श्रेय अमरीकी वैज्ञानिक, सैमुएल एफ॰ बी॰ मॉर्स, को है, जिन्होने सन् 1844 में वाशिंगटन और बॉल्टिमोर के बीच तार द्वारा खबरें भेजकर इसका सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन किया।
टेलिग्राफ युनानी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है दूर से लिखना। आजकल विद्युतद्वारा संदेश भेजने की इस पद्धति को तार प्रणाली तथा इस प्रकार समाचार भेजने को तार (telegram) करना या भेजना कहते है।
साधारणतया यह सभी को ज्ञात है कि सूचनाओं या संदेशों को विविध शब्दों द्वारा व्यक्त किया जाता है। ये शब्द स्वयं विभिन्न अक्षरों या वर्णो से बनते हैं। तार प्रणाली में इन विभिन्न अक्षरों या वर्णो को हम संकेतों (signal elements) के नाना प्रकार के संयोजनों से प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार अक्षरों का संकेतों द्वारा निरूपण तारकूट (telegraph code) कहा जाता है। समाचार भेजने के स्थान से तारकूट की सहायता से संदेश के विभिन्न शब्दों के अक्षरों को संकेत में परिवर्तित कर लिया जाता है। इस प्रकार विद्युत धारा के अंशों (current elements) को, जिनका निर्माण संकेतों पर आधृत रहता है, तार की लाइनों (lines) में भेजा जाता है। जिन स्थानों पर समाचार भेजना होता है उन स्थानों पर इस धारा के अंशों को पुन: संकेतों में बदल लिया जाता है। इन संकेतों को तारकूट की सहायता से अक्षरों में परिवर्तित कर पूरा समाचार प्राप्त कर लिया जाता है। इस प्रकार समाचार भेजने में तारकूट व्यवस्था अपना विशिष्ट स्थान रखती है। मूलत: तार प्रणाली में एक प्रेषित्र (Transmitter), एक ग्राही यंत्र (Receiver or Sounder), विद्युद्वारा के लिये एक बैटरी तथा तार की एक लाइन की आवश्यकता होती है। तार की लाइन या तो ऊपर हवा में रहती है, या धरती के अंदर है। इसी का मूल तार परिपथ (basic telegraph circuit) सामने के चित्र में दिया गया है। तार की पद्धति में कई सुधार भी किए गए हैं, जिससे अब एक साथ ही अनेक समाचार दोनों दिशाओं में भेजे जाते हैं।
हस्तचालित तार पद्धति (manual telegraphy) में हाथ से ही तार कुंजी (telegraph key) चलाकर, एक प्रेषित्र की सहायता से विद्युद्वारा के उन अंशों को, जो विभिन्न अक्षरों को व्यक्त करते हैं, उत्पन्न किया जाता है। किंतु उच्च गति तारप्रणाली (high speed telegraphy) में पहले तारकूट के अनुसार, संदेश के छिद्रण (perforations) एक कागज के फीते पर लिए जाते हैं। तदनंतर यही फीता प्रेषित्र की सहायता से संकेत धाराओं (signal currents) को उत्पन्न करने के लिये प्रयोग में लाया जाता है। प्राप्त धाराओं (received currents) को ध्वनि संकेत (sound signals) अक्षरों के व्यक्त करते हैं, अथवा इन्हीं प्राप्त धाराओं को कागज में प्रयुक्त किया जा सकता है। मुख्यतया तार प्रणाली की निम्नलिखित दो शाखाएँ :
1. लाइन तारप्रणाली (Line telegraphy),
2. समुद्री तार प्रणाली (Submarine telegraphy)
टेलीग्राफी के विकास के पहले लन्दन से भेजे गये पत्र को विभिन्न स्थानों पर पहुँचने में लगा समय