कोशिका चक्र
कोशिका विभाजन सभी जीवों हेतु एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें डीएनए प्रतिकृति और कोशिका वृद्धि जैसे प्रक्रियाएँ परस्पर के साथ समायोजित होकर इस प्रकार सम्पन्न होती हैं कि कोशिका विभाजन सही होता है व सन्तति कोशिकाओं में इनकी पैतृक कोशिकाओं वाला जीनोम होता है। घटनाओं का यह अनुक्रम जिसमें कोशिका अपने जीनोम का द्विगुणन व अन्य संघटकों का संश्लेषण और तत्पश्चात् विभाजित होकर दो नूतन सन्तति कोशिकाओं का निर्माण करती हैं, इसे कोशिका चक्र कहते हैं। यद्यपि कोशिका वृद्धि (कोशिकाद्रव्यीय वृद्धि के सन्दर्भ में) एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें डीएनए संश्लेषण कोशिका चक्र की किसी एक विशिष्टावस्था में होता है। कोशिका विभाजन के दौरान, प्रतिकृत गुणसूत्र जटिल घटनाक्रम के द्वारा सन्तति केन्द्रकों में वितरित हो जाते हैं। ये समस्त घटनाएँ आनुवंशिक नियन्त्रण के अन्तर्गत होती हैं।
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/a/a4/Normal_Cell_Life_Cycle.png/220px-Normal_Cell_Life_Cycle.png)
अवस्थाएँ
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/e/e0/Cell_Cycle_2-2.svg/300px-Cell_Cycle_2-2.svg.png)
एक सुकेन्द्रक कोशिका चक्र का उदाहरण मानव कोशिका के संवर्द्धन में होता है, जो लगभग प्रत्येक चौबीस घण्टे में विभाजित होती है। कोशिका विभाजन लगभग एक घण्टे में पूर्ण होती है, जिसमें कोशिका चक्र की कुल अवधि की 95 प्रतिशत से अधिक की अवधि अन्तरवस्था में ही व्यतीत होती है। यद्यपि कोशिका चक्र की यह अवधि एक जीव से दूसरे जीव एवं एक कोशिका से दूसरी कोशिका प्रारूप हेतु बदल सकती है, उदाहरणार्थ खमीर के कोशिका चक्र के पूर्ण होने में लगभग नब्बे मिनट लगते है।
कोशिका चक्र की दो मूलावस्थाएँ होती हैं;
- समसूत्रणावस्था: यह उस अवस्था को व्यक्त करता है, जिसमें वास्तविक कोशिका विभाजन (समसूत्रण) होता है। इसका आरम्भ केन्द्रक विभाजन से होता है, जो कि सन्तति गुणसूत्रों के पृथक्करण के समतुल्य होता है और इसका अन्त कोशिकाद्रव्य विभाजन के साथ होता है।
- अन्तरवस्था: यह दो क्रमिक समसूत्रणावस्थाओं के मध्य की अवस्था को व्यक्त करता है। इसे विश्रामावस्था भी कहते हैं जिसमें कोशिका विभाजन हेतु प्रस्तुत होती है तथा इस दौरान क्रमबद्ध तरीके से कोशिका वृद्धि व डीएनए प्रतिकृति दोनों होते हैं। इसे तीन प्रावस्थाओं में विभाजित किया गया:
- पश्चान्तराल
- संश्लेषण
- पूर्वान्तराल
पश्चान्तराल प्रावस्था समसूत्रण एवं डीएनए प्रतिकृति के मध्यान्तराल को प्रदर्शित करता है। इसमें कोशिका चयापचयी रूप सक्रिय होती हैं एवं निरन्तर वृद्धि करती हैं, किन्तु इसका डीएनए प्रतिकृति नहीं करता। संश्लेषण प्रावस्था के दौरान डीएनए का निर्माण एवं प्रतिकृति होती है। इस दौरान डीएनए की मात्रा द्विगुणित होता है। यदि डीएनए की प्रारम्भिक मात्र को 2C से चिह्नित किया जाए तो यह बढ़कर 4C हो जाती है, यद्यपि गणसूत्र की संख्या में कोई वृद्धि नहीं होती। यदि प्रावस्था में कोशिका द्विगुणित है या 2n गुणसूत्र है तो 5 प्रावस्था के बाद भी इसकी संख्या वही रहती है, जो पश्चान्तराल में थी अर्थात 2n होगी।
प्राणी कोशिका में संश्लेषण प्रावस्था के दौरान केन्द्रक में डीएनए का जैसे ही प्रतिकृति प्रारम्भ होता है वैसे ही तारक केन्द्र के कोशिकाद्रव्य में प्रतिकृति होने लगता है। कोशिका वृद्धि के साथ समसूत्रण हेतु पूर्वान्तराल प्रावस्था के दौरान प्रोटीन का निर्माण होता है।
प्रौढ़ प्राणियों में कुछ कोशिकाएँ विभाजित नहीं होती (जैसे हृत्कोशिका) और अनेक दूसरी कोशिकाएँ यदा-कदा विभाजित होती है; ऐसा तब ही होता है जब क्षतिग्रस्त या मृत कोशिकाओं को बदलने की आवश्यकता होती है। ये कोशिकाएँ जो आगे विभाजित नहीं होती है, पश्चान्तराल से निकलकर निष्क्रियावस्था में पहुँचती हैं, जिसे कोशिका चक्र को शान्तावस्था कहते हैं। इस अवस्था को कोशिका चयापचयी रूप से सक्रिय होती है किन्तु यह विभाजित नहीं होती। इनका विभाजन जीव की आवश्यकतानुसार होता है।
प्राणियों में समसूत्रण केवल द्विगुणित कायिक कोशिकाओं में ही दिखाता है। यद्यपि, इसमें कुछ अपवाद हैं जहाँ अगुणित कोशिकाएँ समसूत्रण द्वारा विभाजित होती हैं, उदाहरणार्थ, नर मधुमक्षियाँ। इसके विपरीत पादपों में समसूत्रण अगुणित एवं द्विगुणित दोनों कोशिकाओं में दिखाता है।