कोयना वन्यजीव अभयारण्य

भारत के महाराष्ट्र राज्य के सातारा जिले में स्थित है। अभयारण्य पश्चिमी घाटों में है।

कोयना वन्यजीव अभयारण्य एक वन्यजीव अभ्यारण्य एवं विश्व के प्राकृतिक धरोहर स्थल में से एक है।

भारत के महाराष्ट्र राज्य के सातारा जिले में स्थित यह अभयारण्य पश्चिमी घाट में स्थित है, यह लगभग 423.55 वर्ग किमी (163.53 वर्ग मील) में फैला हुआ हैं एवं इसकी ऊंचाई 600 से 1,100 मीटर (2,000 से 3,600 फीट) तक की है। इसे 1985 में महाराष्ट्र में वन्यजीव अभ्यारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया था।

यह सह्याद्री टाइगर रिजर्व के उत्तरी भाग का निर्माण करता है एवं चंदोली राष्ट्रीय उद्यान इसके दक्षिणी भाग के चारदीवारी का निर्माण करता है।

इतिहास

वासोटा किला यहाँ के घने जंगलों में स्थित है और समुद्र तल से 1,120 मीटर (3,670 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। किंवदंती हैं कि इस किले का निर्माण माल्वा राजा राजा भोज ने 1170 में किया था।

भूगोल

कोयना, कांदती, और सोलिशिमा नदी अभयारण्य में बहती हैं। यह कोयना नदी के लिए जलग्रहण क्षेत्र भी बनाता है, और कोयना बांध द्वारा निर्मित शिवसागर जलाशय भी यही पर हैं। पार्क के दक्षिण में चंडोली राष्ट्रीय उद्यान है।[1]

अभयारण्य अच्छी तरह से शिवसगढ़ जलाशय और पश्चिमी घाट के ढलान दोनों तरफ से काफी हद तक संरक्षित है। यह संरक्षित क्षेत्र जंगली वन्यजीव गलियारे से दक्षिण में चांदली राष्ट्रीय उद्यान और राधानगरी वन्यजीव अभ्यारण्य से जुड़ा हुआ है।

फ्लोरा

इस अभयारण्य में काफी घने जंगल हैं एवं वे तीन प्रमुख खंड, वासोटा, महारखोर और इंदलली मेट में बटे हुए हैं। इनकी सीमओं की सुरक्षा प्राकृतिक रूप से होती हैं। जिसमे एक तरफ शिवसागर झील और दोनों ओर पश्चिमी घाटों के ढलान हैं। इन भौगोलिक बाधाओं ने अभयारण्य में वनस्पतियों और जीवों की एक विस्तृत विविधता और उच्च जैव विविधता के उद्भव को जन्म किया है।

इस अभयारण्य में ऊंचाइयों की विविध श्रेणी के कारण इस अभयारण्य के प्राकृतिक क्षेत्रों में उत्तरी पश्चिमी घाटों के मोनटेने वर्षा वनों में 1,000 मी (3,300 फीट) और उत्तर पश्चिमी घाट के नीचे नम पेड़दार वन हैं। यहाँ उगने वाली वनस्पतियों की कुछ प्रमुख प्रजातियां हैं अंजनी, जंबुल, हदी, अबाला, पीसा, ऐन, किंजल, अम्बा, कुंभ, भोम, चंदला, कटक, नाना, उंबर, जंभा, गेल और बिब्बा हैं। यहाँ के लगभग सभी क्षेत्र में करवी पाए जाते हैं। [2]

झाड़ियां और औषधीय पौधों जैसे करवंड, योगी, रानीमिरी, तामलपती, ताराण, ढायती, कडीपट्ट, नारक और मुरुडेंग और इनके साथ थोड़ी मात्रा में बांस भी पाए जाते हैं।

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अभयारण्य में विभिन्न प्रकार के स्तनपायी प्रजातियां शामिल हैं जिनमें बंगाल टाइगर्स (> 6) शामिल हैं। इसके अलावा, भारतीय तेंदुए (14), भारतीय बीज़न (220-250), स्लॉथ भालू (70-80), सांबर हिरण (160-175), बार्किंग हिरण (180-200) और माउस हिरण, भूरे लंगूर, एवं भारतीय विशाल गिलहरी शामिल हैं।

चिड़ियों की कई प्रजातियां इस अभयारण्य में पाए जाती हैं जिनमें दिल के पास धब्बे वाली कठफोड़वा, जंगली कठफोड़वा, और भूरे सर वाला कठफोड़वा, एशियाई परी ब्लूबर्ड, शामिल हैं।बड़े भारतीय अजगर और किंग कोबरा राजा भी यहां पाए जाते हैं। केवल इसी संरक्षित क्षेत्र में पाया जाने वाला मेंढक बुफ़ो कोयायनसिस का भी यह निवास स्थान है। [2]

खतरे

इस अभयारण्य में अब 215 पवन ऊर्जा और 10 पर्यटक रिसोर्ट हैं। एक मिट्टी की बांध भी निर्माणाधीन हैं एवं इसके चलते कई पेड़ गिर गए हैं। अभयारण्य के अंदर की भूमि भी बेची गई है। 1985 से 900 से अधिक भूमि सौदों को अंतिम रूप दिया गया है।[3]

गेलरी

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

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