कोनिग्ज़बर्ग के सात पुल

कोनिग्ज़बर्ग के सात पुल (Seven Bridges of Königsberg) गणित की एक ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध पहेली है। सन् १७३६ में लियोनार्ड ओइलर ने दिखाया कि इसका कोई हल नहीं है और साथ-सी-साथ संस्थिति (टोपोलॉजी) और ग्राफ़ सिद्धान्त के क्षेत्रों की नीव रखी।[1]

कोनिग्ज़बर्ग के सात पुल (हरे रंग में)

पहेली

प्रूशिया के राज्य में प्रेगेल नदी के दोनों किनारों पर बसा कोनिग्ज़बर्ग नाम का एक शहर था। नदी के बीच में दो द्वीप थे जो एक-दूसरे से और मुख्यभूमि से सात पुलों के द्वारा जुड़े हुए थे। पहेली यह थी: क्या कोई ऐसा मार्ग ढूँढा जा सकता है जिसमें हर पुल पर से एक और केवल एक, बार गुज़रा जाए? पहेली में पुल ही नदी को पार करने का एकमात्र तरीक़ा थे और किसी भी पुल पर आधे रास्ते जाकर लौटना मना था। न ही किसी पुल पर दो बार जाने की अनुमति थी। ओइलर ने दिखाया कि इस पहेली का कोई हल नहीं है, यानि ऐसा कोई मार्ग नहीं है जो हर पुल पर एक और सिर्फ़ एक, ही बार ले जाए।[1]

ओइलर का विश्लेषण

ओइलर ने सबसे पहले तो यह कहा कि इस पहेली में केवल पुलों का ही महत्व है। उनके अलावा शहर में और किन मार्गों पर निकला जाता है, इसकी कोई अहमियत नहीं। इस से वह शहर के उलझे हुए नक़्शे की बजाय एक सरल लकीरों वाला ग्राफ़ प्रयोग कर पाया। इस ग्राफ़ ने पहेली का सार स्पष्ट कर दिया।

इसकी लकीरें पुल थीं और इसके बिंदु शहर के अन्य हिस्से। अब प्रशन सीधा था: क्या किसी भी एक बिंदु से शुरू होकर कोई ऐसा मार्ग लिया जा सकता है जो हर लकीर पर केवल एक ही बार गुज़रता हो? ओइलर ने देखा कि किसी भी मार्ग के शुरू और अंत के बिन्दुओं को छोड़कर, हर बीच के बिंदु में एक लकीर से प्रवेश और दूसरी लकीर से निकास करना होगा। यानि अगर हर पुल (लकीर) पर एक ही बार जाने की अनुमति है तो किसी भी बिंदु पर शून्य, दो या दो के गुणज (मल्टिपल) की संख्या के पुल होने चाहियें। परन्तु देखा जा सकता है कि पहेली के हर बिंदु पर विषम संख्या के पुल हैं (कहीं ३ और कहीं ५)। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि यह पहेली जिस प्रकार का मार्ग मांग रही है ऐसा कोई मार्ग बन ही नहीं सकता।

ऐतिहासिक महत्व

ओइलर की इस पहेली को समझने की विधि बहुत प्रभावशाली रही। यह स्पष्ट हो गया कि गणित और ज्यामिति के प्रश्नों की एक श्रेणी है जिसमें आकारों को बिना कोई परिवर्तन किये समझना आवश्यक नहीं है। इनमें केवल कुछ गुणों को अलग करके उन्हें एक सरल ग्राफ़ जैसे ढाँचे में लगाकर उनका उत्तर निकाला जा सकता है। यही आगे चलकर संस्थिति (टोपोलॉजी) के क्षेत्र का बुनियादी सिद्धांत बना। गणित की इस शाखा को कभी-कभी मज़ाक से 'रबड़ की चादर वाली ज्यामिति' भी कहते हैं क्योंकि अगर यही बिंदु और लकीरें किसी रबड़ की चादर पर बनाकर उसे (बिना फाड़े) कितना ही खीचकर कितना ही टेढ़ा-मेढ़ा किया जाए, उसमें समझें जाने वाले मूल गुणों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।[2]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

🔥 Top keywords: क्लियोपाट्रा ७ईद अल-अज़हानिर्जला एकादशीमुखपृष्ठविशेष:खोजभारत के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेशभारत का केन्द्रीय मंत्रिमण्डलभारत के प्रधान मंत्रियों की सूचीकबीरॐ नमः शिवायप्रेमचंदतुलसीदासमौसमचिराग पासवानमहादेवी वर्मासुभाष चन्द्र बोसलोकसभा अध्यक्षखाटूश्यामजीभारतीय आम चुनाव, 2019हिन्दी की गिनतीनरेन्द्र मोदीभारत का संविधानइंस्टाग्राममुर्लिकांत पेटकररासायनिक तत्वों की सूचीसूरदासश्री संकटनाशनं गणेश स्तोत्रप्रेमानंद महाराजभारतीय आम चुनाव, 2024महात्मा गांधीभारतहनुमान चालीसाश्रीमद्भगवद्गीताभारतीय राज्यों के वर्तमान मुख्यमंत्रियों की सूचीभीमराव आम्बेडकररानी लक्ष्मीबाईसंज्ञा और उसके भेदउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की सूचीगायत्री मन्त्र