कारगिलभारत के लद्दाख़ केन्द्रशासित प्रदेश के करगिल ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। यह सुरु नदी की घाटी के मध्य में बसा हुआ है।[1][2][3]
विवरण
कारगिल लद्दाख़ का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। वैसे यह स्थान मुख्य से बौद्ध पर्यटन केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। यहां बौद्धों के कई प्रसिद्ध मठ स्थित है। मठों के अतिरिक्त यहां कई अन्य चीजें भी घूमने लायक है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। ट्रैकिंग का शौक़ रखने वालों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। कारगिल जिला कश्मीर घाटी के उत्तर-पूर्व पर स्थित है। यह स्थान श्रीनगर से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कारगिल 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध से चर्चा में आया था।
मुख्य आकर्षण
मुलबेख गोम्पा
मुलबेख गोम्पा एक मठ है। यह मठ कारगिल ज़िले के मुलबेख में स्थित है। मुलबेख कारगिल से लगभग 45 किलोमीटर और लेह से 190 किलोमीटर की दूरी पर है। मठ तक पहुँचने के लिए खडी चट्टान और घाटी से होकर गुज़रना पड़ता है। यह मठ समुद्र तल से 200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ स्थित भित्तिचित्र, मूर्तियाँ और स्मृतिचिन्ह इस मठ की शोभा को और अधिक बढ़ाते हैं। मुलबेख गोम्पा से आस-पास की ख़ूबसूरत घाटियों का नज़ारा देखा जा सकता है।
शरगोल मठ
शरगोल मठ कारगिल ज़िले से दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुलबेस में है। इस पुरानी गी-लुग पा बौद्ध मठ में कई बेहतरीन भित्तिचित्र देखे जा सकते हैं। मठ के एक मंदिर है जिसमें अवलिकेतेश्वर की ग्यारह हाथों वाली प्रतिमा स्थित है। इसके अलावा लकड़ी से बनी देवी तारा की प्रतिमा है। इस ख़ूबसूरत प्रतिमा को तिब्बितयन कलाकारों ने बनाया था।
स्टोंगदे मठ
स्टोंगदे मठ पदुम के समीप स्टोंगदे में स्थित है। स्टोंगदे दूसरा बड़ा मठ है। यह काफ़ी पुराना मठ है। इस मठ की नींव तिब्बतन योगी मारपा ने रखी थी। इस मठ में काफ़ी संख्या में मंदिर बने हुए है। यह मठ पदुम से अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
नुन-कुन गिरीपिण्ड
नुन-कुम मासिफ विशाल हिमालय पंक्ति है। यह लद्दाख़ का सबसे ऊँचा शिखर है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग 7,077 मीटर है। कारगिल के दक्षिण से इस जगह की दूरी 70 किलोमीटर है। इस गिरीपिण्ड में दो प्रमुख पर्वत जिसमें पहला नुन (7,357 मीटर) और दूसरा कुन (7,087 मीटर) है। इस पर्वतों पर सुरू घाटी द्वारा पहुँचा जा सकता है।
कनिक स्तूप
कनिक स्तूप कारगिल ज़िले के सनी पर स्थित है। इस स्तूप का सम्बन्ध प्रसिद्ध भारतीय योगी नारूपा से है। ऐसा माना जाता है कि इन संत ने इस स्तूप के भीतर रहकर कुछ समय तक ध्यानसाधना की थी। यहाँ एक छोटा सा कमरा है जिसमें योगी की कंसे की मूर्ति स्थापित है। इस आकृति को वर्ष में केवल एक बार जुलाई माह के अंत में देखा जा सकता है। इस अवसर के दौरान एक त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार दो दिनों तक चलता है। काफ़ी संख्या में लोग इस अवसर पर सम्मिलित होते हैं। इसके अलावा, बरदान मठ के मठवासियों द्वारा नकाब नृत्य प्रस्तुत किया जाता है।
आवागमन
वायु मार्ग
सबसे निकटतम हवाईअड्डा लेह है। दिल्ली, चंडीगढ़, श्रीनगर और जम्मू से लेह के लिए नियमित रूप से उड़ानें भरी जाती है।
रेल मार्ग
सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन जम्मू तवी है।
सड़क मार्ग
राष्ट्रीय राजमार्ग १ द्वारा कारगिल में लेह व श्रीनगर से पहुँचा जा सकता है। यह मार्ग जून के मध्य से नवम्बर तक खुला रहता है। जम्मू व कश्मीर राज्य परिवहन निगम की सामान्य व डिलक्स बसें नियमित रूप से इस मार्ग पर चलती है। इसके अलावा श्रीनगर से टैक्सी द्वारा भी कारगिल पहुँचा जा सकता है।