कानजी

कांजी (जापानी: 漢字; जापानी उच्चारण: [kaɲdʑi] सुनो ), जापान द्वारा अपनाए गए शब्द-चिह्निक चीनी अक्षरों (हान्ज़ी)[1] जिन्हें आधुनिक जापानी लेखन पद्धति में हिरागाना और काताकाना के साथ उपयोग किया जाता है। जापानी शब्द कान्जी के चीनी अक्षरों का शाब्दिक अर्थ है "हान अक्षर"[2] और चीनी शब्द हान्ज़ी के समान अक्षरों से लिखा जाता है।[3]

कांजि

इतिहास

निहोन शोकी (720 ईसवी) को इतिहासकारों और पुरातत्त्वज्ञों द्वारा प्राचीन जापान का सबसे पूर्ण ऐतिहासिक अभिलेख माना जाता है, और इसे पूरा कानजी में लिखा गया था।

चीनी अक्षर जापान में सबसे पहले आधिकारिक मुहरों, पत्रों, तलवारों, सिक्कों, आइनों और चीन से आयात की गई सजावटी चीज़ों के ज़रिए पहुँची। इसका सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है ना राजा के सोने की मुहर जिसे हान सम्राट गुआंगवू ने एक यामातो दूत को दी थी।[4] प्रथम शताब्दी ईसवी के चीनी सिक्कों को यायोई काल के पुरातात्त्विक स्थलों से पाया गया है।[5] लेकिन उस काल के जापानियों को चीनी लिपि का कोई ज्ञान नहीं था और पाँचवी सदी तक वैसे ही रहेने वाले थे।[5] निहोन शोकी और कोजिकी के अनुसार वानी नामक एक पंडित को बेकजे के राज्य से पाँचवी सदी में सम्राट ओजिन के शासनकाल में जापान भेजा गया था, जो अपने साथ कुन्फ़्युशीयसी धर्म और चीनी अक्षर लाया।[6]

सबसे पहले जापानी दस्तावेज़ों को शायद यामातो दरबार के सेवा में द्विभाषी चीनी या कोरियाई अधिकारियों ने लिखा था।[5][6]

चीनी अक्षरों से परिचय के समय जापानी भाषा का कोई लिखित रूप नहीं था, और पाठों को केवल चीनी में ही पढ़ा और लिखा जाता था। हेइआन काल (७९४-११८५) के दौरान, कानबुन नामक पद्धति की शुरुआत हुई, जिसमें चीनी पाठ को विशेषक चिह्नों के साथ लिखा जाता था, जो जापानी व्याकरण के अनुसार शब्दों का क्रम और क्रिया विकार बदलते थे।

चीनी अक्षरों को जापानी शब्दों को लिखने के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा, जिससे आधुनिक काना शब्दांशमालाओं को जन्म हुआ।सन ६५० में मानयोगाना (मानयोशू नामक काव्य संकलन के उपयुक्त) विकसित की गई जिसमें चीनी अक्षरों के अर्थ के बजाय उनके ध्वनि के लिए इस्तेमाल किया जाता था। मानयोगाना को घसीट शैली में लिखने से हिरागाना, या ओननादे (महिला का हाथ)[7] का विकास हुआ - एक लेखन पद्धति जो महिलाओं के लिए सुलभ थी (वे उच्च शिक्षा से वंचित थे।). महिलाओं द्वारा रची गई हेइआन काल के साहित्य के प्रमुख कृतियाँ हिरागाना में हैं। काताकना का विकास एक वैसे ही हुआ: मठ के छात्रों ने मानयोगाना अक्षरों को केवल एक घटक तत्त्व में सरलीकृत की।इस तरह, हिरागाना और काताकाना, जिन्हें एक साथ काना कहते हैं, कानजी के उपज हैं।

आधुनिक जापानी में, कानजी को विषय शब्दों जैसे संज्ञा, विशेषण मूल और क्रिया मूल के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जबकि हिरागाना का उपयोग होता है क्रिया विभक्ति और विशेषण के अंत में और स्पष्ट पठन के लिए ध्वन्यात्मक पूरक (ओकुरिगाना), कणों, और विविध शब्दों के लिए जिनके कोई कानजी नहीं हैं या जिनके कानजी पुराने या कठिन हैं। काताकाना का उपयोग अर्थानुरणन, ग़ैर-जापानी शब्दों (प्राचीन चीनी के शब्दों के अलावा), पौधों और जानवरों के नाम (अपवाद हैं), और किसी शब्द पर ज़ोर देने के लिए।

लेखनवर्तनी सुधार और कानजी की सूचियाँ

कांजी अभ्यास करती युवा महिला। योशू चिकानोबु द्वारा उकियोए लकड़खंड छपाई, १८९७

१९४६ में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मित्र देशों के जापान पर आधिपत्य के तहत, मित्र शक्तियों के उच्चतम सेनाध्यक्ष के निर्देशों के अनुसार लेखनवर्तनी में सुधार किए। इसका लक्ष्य था बच्चों के सीखने को आसान बनाना और साहित्य और पत्रिकाओं के लिए कांजी उपयोग को सरल करना। उपयोग में अक्षरों की संख्या को कम किया गया और हर कक्षा में सीखने के लिए अक्षरों की औपचारिक सूची तैयार की गई। कुछ अक्षरों को सरलीकृत रूप दिए गए, जिन्हें शिंजिताई (新字体) कहते हैं। अक्षरों के भिन्न रूपों और सामान्य अक्षरों के विकल्पों को आधिकारिक तौर पर हतोत्साहित किया गया।

ये केवल दिशा निर्देश हैं, इसलिए इस मानक के बाहर भी कई अक्षरों का विस्तृत उपयोग होता है; इन्हें ह्योगाइजी(表外字?) कहते हैं।

क्योइकु कांजी

क्योइकु कानजी (教育漢字, अर्थात "शिक्षा कांजी") १,००६ अक्षरों को कहते हैं जो जापानी बच्चे प्राथमिक विद्यालय में सीखते हैं। इस सूची में पहले ८८१ अक्षर थे, जिसे १९७७ में बढ़ाकर ९९६ अक्षर किया गया, और १९८२ में १,००६ अक्षरों तक बढ़ाया गया।

जोयो कांजी

जोयो कानजी (常用漢字, नियमित-उपयोग कानजी) में २,१३६ अक्षर हैं, जिनमें सारे क्योइकु कानजी और १,१३० अतिरिक्त कानजी हैं जिन्हें उच्च विद्यालयों में सिखाया जाता है। प्रकाशन में इन सूची के बाहर के कान्जियों को अक्सर फ़ुरिगाना दिया जाता है। जोयो कान्जी को १९८१ में शुरू किया गया था, तोयो कांजी (当用漢字, साधारण-उपयोग कान्जी) नामक सूची के बदले में। पहले इस सूची में १,९४५ अक्षर थे, २०१० में इसे बढ़ाकर २,१३६ कर दिया गया।

जिनमेइयो कान्जी

२७ सितंबर २००४ से जिनमेइयो कान्जी (人名用漢字, व्यक्तिगत नाम में उपयोग के लिए कानजी) में ३,११९ अक्षर हैं, जिनमें जोयो कान्जी के साथ और ९८३ कानजी हैं।

ह्योगाई कान्जी

ह्योगाई कानजी (表外漢字, असूचीगत कानजी) ऐसे किसी भी कानजी को कहते हैं जो जोयो कानजी या जिनमेइयो कानजी की सूची में नहीं हैं। इन्हें आम तौर पर पारंपरिक अक्षरों से लिखा जाता है, पर इनके अतिरिक्त शिंजिताई रूप मौजूद हैं।

सबसे पहले जापानी दस्तावेज़ों को शायद यामातो दरबार के सेवा में द्विभाषी चीनी या कोरियाई अधिकारियों ने लिखा था।[5][6]

कानजी की कुल संख्या

कानजी अक्षरों के की कोई निश्चित गिनती नहीं है, जैसा कि चीनी अक्षरों का भी नहीं है। दाई कानवा जितेन में लगभग ५०,००० अक्षर हैं, जिसे जापान में व्यापक माना जाता है। १९९४ में चीन में प्रकाशित झ़ोंगहुआ ज़िहाई में लगभग ८५,००० अक्षर हैं।[8][9][10] लेकिन इनमें से अधिकतर अक्षर किसी भी देश में उपयोग में नहीं हैं, और कई वैकल्पिक या प्राचीन रूप हैं।

लेखनवर्तनी सुधार और कानजी की सूचियाँ

उधार लेने के typology हान वर्ण
अर्थउच्चारण
क्) शब्दार्थिक ओनL1L1
ख) शब्दार्थिक कुनL1L2
ग) ध्वन्यात्मक ओनL1
घ्) ध्वन्यात्मक कुनL2
*L1 है स्रोत भाषा (चीनी) और L2 है अंतिम भाषा (जापानी).[11]

जापानी में कानजी को जिस तरह अपनाया गया है, उससे एक कानजी से कई शब्द या रूपिम लिखे जा सकते हैं और इसलिए एक अक्षर के अलग-अलग उच्चारण हो सकते हैं। पाठक के दृष्टिकोण से कानजी के एक या अधिक "पठन" होते हैं। भले ही दिमाग़ में एकाधिक पठन आएँ,[12] सही पठन का चयन शब्द को पहचानना पर निर्भर है, जिसे संदर्भ, अर्थ, और कानजी यौगिक शब्द का भाग है या नहीं, और कभी-कभी वाक्य में स्थान से जाना जा सकता है। उदाहरण के लिए, 今日

को "क्यो" पढ़ा जाता है (अर्थात "आज"), पर औपचारिक लेखन में "कोननिची" पढ़ा जाता है, अर्थात "आजकल"; इसे संदर्भ से समझा जाता है। फिर भी, कुछ मामले अस्पष्ट होते हैं और उन्हें फ़ुरिगाना की आवश्यकता होती है।

कानजी पठनों को ओनयोमी ("ध्वनि पठन", चीनी से) या कुनयोमी ("अर्थ पठन", जापानी मूल) और सभी अक्षरों के कम से कम दो पठन होते हैं, प्रत्येक से एक। कुछ के केवल पठन हैं, जैसे किकु (?, "गुलदाउदी", ओन-पठन)

या इवाशि (鰯, "सारडीन", कुन-पठन); केवल कुन-पठन जापान में बने कानजी (कोकुजी) के लिए सामन्य हैं। कुछ सामान्य कानजिओं के दस से अधिक पठन हैं; सबसे जटिल उदाहरण है 生, जिसे सेइ, शो, नामा, कि, ओ-उ, इ-किरु, इ-कासु, इ-केरु, उ-मु, उ-मारेरु, हा-एरु, और हा-यासु, कुल ८ मूलभूत पठन (पहले २ ओन हैं, बाकी कुन)।

अक्सर एक अक्षर को ध्वनि और अर्थ दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, और केवल शब्द के आधार पर सही पठन चुनना पड़ता है। अन्य मामलों में , एक अक्षर को केवल अपने ध्वनि के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसे आतेजी कहते हैं।

ओनयोमी (चीनी-जापानी पठन)

ओनयोमी (音読み, अर्थात "ध्वनि(-आधारित) पठन") एक अक्षर के चीनी उच्चारण के जापानी अनुमान का आधुनिक वंशज है। इसे पहले अनुवाद पठन भी कहा जाता था। पुराने जापानी लेखनों में कहा गया है कि ओनयोमी पठन किसी अक्षर के जापान पहुँचने पर बनाए जाते थे और कभी-कभी चीनी भी उन्हें अपनाते थे। ऐसे भी कानजी हैं जिन्हें जापान में बनाया गया और चीन में न बनने के बावजूद उन्हें ओनयोमी दी गई। कुछ कानजी को चीन के अलग-अलग हिस्सों से अलग-अलग समय पर लिया गया, इसलिए उनके अनेक ओनयोमी और अक्सर अनेक अर्थ हैं। जापान में बने कानजी के आम तौर पर ओनयोमी नहीं होते, पर अपवाद हैं, जैसे 

"काम करना", जिसका कुनयोमी है "हाताराकु" और ओनयोमी है "दो" और 

"ग्रंथि", जिसका केवल ओनयोमी "सेन" है। दोनों मामलों में उनके ओनयोमी उनके ध्वन्यात्मक घटक के आए हैं - 

"दो" और

"सेन"।

ओनयोमी को उनके उत्पत्ति के समय और स्थान के अनुसार चार प्रकारों में बाँटा जाता है:

उदाहरण (कोष्ठकों में दुर्लभ उच्चारण)
कानजीअर्थगो-ओनकान-ओनतो-ओनकानयो-ओन
उज्ज्वलम्योमेइ(मिन)
जानाग्यो

गो

को

को

(आन)
अत्यंत गोकुक्योकु
मोतीशुशुजु(ज़ु)
स्तरदो(तो)
परिवहन(शु)(शु)यु
पौरुषयू
भालूयू
बच्चाशिशिशु
स्पष्टशोसेइ(शिन)
राजधानीक्योकेइ(किन)
सैनिकह्योहेइ
शक्तिशालीगोक्यो

कान-ओन पठन सबसे आम पठन हैं और किसी शब्द में ग़ैर-कान-ओन पठन के होने से ही अक्सर कठिनाइयाँ होती हैं, जैसे गे-दोकु (解毒, विषरोधी, विषहरण) जो एक गो-ओन पठन है, जहाँ 解 को आम तौर पर काइ पढ़ा जाता है। बौद्ध शब्दावली में गो-ओन ज़्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं, जैसे गोकुराकु (極楽, जन्नत)। कुछ नए शब्दों में तो-ओन पाए जाते हैं, जैसे इसु (椅子, कुर्सी) और फ़ुतोन (布団, गद्दा)। गो-ओन, कान-ओन, और तो-ओन पठन आम तौर पर सजातीय हैं, जिनकी उत्पत्ति पुरानी चीनी भाषा से हुई।

ओनयोमी आम तौर पर बहु-कानजी शब्दों (熟語, जुकुगो) में पाए जाते हैं, जो उनके कानजी के साथ जापानी में अपना लिए गए हैं, अक्सर ऐसे विचारों और चीज़ों के लिए जिनका जापानी में कोई शब्द नहीं था।


मौलिक पठन (कुनयोमी)

कुनयोमी (訓読み, अर्थात "अर्थ पठन") पठन किसी शब्द का मौलिक पठन है, जो उस शब्द के जापानी उच्चारण, या यामातो कोतोबा पर आधारित है। ओनयोमी की तरह, किसी कानजी के एक से अधिक कुनयोमी हो सकते हैं, और कुछ कानजी के कुनयोमी नहीं हैं।


उदाहरण के लिए, "पूर्व" का कानजी है , जिसका ओनयोमी है तो, जो मध्य चीनी तुंग से आया है। लेकिन जापानी में पहले से पूर्व के लिए दो शब्द हैं - हिगाशि और आज़ुमा। इसलिए, हिगाशि और आज़ुमा 東 के कुनयोमी पठन हैं। इसके विपरीत, 寸, माप की एक चीनी इकाई है (लगभग ३० मिमी), और इसका कोई जापानी शब्द नहीं है, इसलिए इसका केवल एक ओनयोमी है, सुन। अधिकतर कोकुजी, जो जापान में बने कानजी हैं, के केवल कुनयोमी पठन हैं।




कुनयोमी कि विशेषता  है कि हर अक्षर में एक व्यंजन और एक स्वर ध्वनि होती है। अधिकतर संज्ञा और विशेषण कुनयोमी दो से तीन अक्षर वाले शब्द हैं, और क्रिया कुनयोमी में एक से तीन अक्षर होते हैं। यह ओनयोमी से अलग है जो सभी एक अक्षर वाले होते हैं, और चीनी लिपि का उपयोग करने वाले अन्य भाषाओं (कोरियाई, वियतनामी और झ़ुआंग) से अलग है। (यहाँ "अक्षर" से मतलब काना से है)।

承る उकेतेमावारु, 志 कोकोरोज़ाशि, और 詔 मिकोरोनोरि में एक कानजी के पाँच अक्षर हैं, जो जोयो कानजी के सूची में सबसे लंबे हैं।

मिश्रित पठन

जूकाबो (重箱) में मिश्रित ओन-कुन पठन है।
युतो (湯桶?)  में मिश्रित कुन-ओन पठन है।

ऐसे कई यौगिक कानजी शब्द हैं जहाँ ओनयोमी और कुनयोमी का मिश्रण का उपयोग होता है। इन शब्दों को इनके क्रम के अनुसार जूकाबो (重箱, बहुस्तरीय खाने का बक्सा) या युतो (湯桶, गर्म पानी का पात्र) कहते हैं, जो स्वयं ऐसे मिश्रित शब्द हैं। जूकाबो क पहला अक्षर का ओनयोमी पढ़ा जाता है, और दूसरे का कुनयोमी। युतो में इसका उलटा है।

इन शब्दों को औपचारिक तौर पर जूकाबोयोमी (重箱読, जूकाबो पठन) और युतोयोमी (湯桶読み, युतो पठन) कहते हैं। अन्य उदाहरण हैं बाशो (場所, "स्थान", कुन-ओन), किनइरो (金色, "स्वर्णिम", ओन-कुन) और omo-shiro-i (面白い?, interesting) face-whiteningआइकिदो (合気道, आइकिदो युद्धकला, कुन-ओन-ओन)।

विशेष पठन

गिकुन (義訓?) और pēji (頁、ページ?, page)(難訓?, कठिन पठन) कहते हैं।
गिकुन अमानक कानजी हैं जिन्हें प्रभाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जैसे 寒 का पठन फ़ुयु ("शीतऋतु")।

जुकुजिकुन उन्हें कहते हैं जब एक शब्द का मानक कानजी उसके अर्थ से संबंधित है, पर उसके ध्वनि से नहीं। जैसे, 今朝 ("आज सुबह") एक जुकुजिकुन है, और इसे इमाआसा (कुनयोमी) या कोनचो (ओनयोमी) नहीं पढ़ते, बल्कि केसा पढ़ते हैं, जो एक जापानी मूल का शब्द है। इसी तरह 明日("आने वाला कल") को आकारिहि (कुनयोमी) या मेइनिचि (ओनयोमी) नहीं पढ़ा जाता, बल्कि आशिता पढ़ते हैं। 

एकल अक्षर गाइराइगो

कुछ दुर्लभ मामलों में एक कानजी के पठन को एक विदेशी भाषा ( (गाइराइगो) से लिया गया है। प्रमुख उदाहरण हैं पेजी (頁, ページ, पृष्ठ), बोतान (釦/鈕、ボタン, बटन), ज़ेरो (零、ゼロ, शून्य) और मेतोरु (米、メートル, मीटर)। इनको कुनयोमी में ही वर्गिकृत किया जाता है, क्योंकि यह अक्षर अपने अर्थ के लिए इस्तेमाल की जाती है। लेकिन अधिकतर कुनयोमी के विपरीत, ये पठन जापानी से नहीं बल्कि अन्य भाषाओं से ली गई हैं, इसकिए उनको कुनयोमी कहना भ्रामक है।

अन्य पठन

कुछ कानजी के कम ज्ञात पठन हैं जिन्हें नानोरी (名乗り) कहते हैं। इनका उपयोग नामों के लिए होता है और ये कुनयोमी से संबंधित हैं। स्थानों के नामों में अक्सर नानोरी का इस्तेमाल होता है।

जैसे, उपनाम 小鳥遊 (अर्थात् "खेलते नन्हे पक्षी") जिसका तात्पर्य है कि कोई शिकारी नहीं हैं। इसका उच्चारण है "कोतोरि आसोबु"। इसका अर्थ 鷹がいない (ताका गा इनाइ, अर्थात "आसपास कोई बाज़ नहीं") भी हो सकता है, और इसे संक्षेप में ताकानाशि भी पढ़ा जा सकता है।[13]

कब किस पठन का उपयोग करें

ओनयोमी और कुनयोमी के उपयोग के नियम हैं, पर जापानी में कई अपवाद हैं, और पूर्व अनुभव के बिना एक जापानी भाषी भी पूरी निश्चितता से किसी अक्षर का पठन नहीं जान सकता (यह ख़ासकर नामों के लिए है)। जापानी पढ़ते समय पाठक को शब्द और उनके पठन पहचानने पड़ते हैं, न कि शब्द का एक-एक अक्षर।

मुख्य निर्देश यह है कि अगर कानजी के बाद ओकुरिगाना है, तो वहाँ हमेशा कुनयोमी का इस्तेमाल होता है, जबकि बहु-कानजी शब्दों में आम तौर पर ओनयोमी। एकल कानजी का आम तौर पर कुनयोमी पढ़ा जाता है।

ओकुरिगाना का इस्तेमाल होता क्रिया या विशेषण के अंत में विकार को दिखाने के लिए। चीनी शब्दों (हो संज्ञा होते हैं)  के अंत में (〜する, करना) लगाकर उन्हें क्रिया बनाया जा सकता है।


कुछ प्रसिद्ध जगहों के नाम, जैसे जापान (日本 निहोन ) और टोक्यो  (東京 तोक्यो) के नाम ओनयोमी में पढ़े जाते हैं, लेकिन अधिकतर जापानी नाम कुनयोमी हैं: 大阪 ओसाका, 青森 आओमोरी, 箱根 हाकोने।

जापानी उपनाम भी आम तौर पर कुनयोमी में पढ़े जाते हैं: 山田 यामादा, 田中 तानाका, 鈴木 सुज़ुकी।  उन्हें जूबाको या युतो नहीं माना जाता है, पर वे अक्सर कुनयोमीओनयोमी और नानोरी के मिश्रण होते हैं, जैसे 大助 दाइसुके [ओन-कुन] और 夏美 नात्सुमी [कुन-ओन]। क्योंकि नाम उनके परिजनों पर निर्भर है, किसी के नाम का पठन किसी नियम पर आधारित नहीं है।उच्चारण में किसी तरह के उलझन की संभावना को हटाने के लिए दस्तावेज़ों में नाम को काना और कानजी दोनों में लिखना आवश्यक है। 

चीनी व्यक्तियों और जगहों के नाम जब जापानी पाठ में आते हैं, उन्हें हमेशा ओनयोमी में पढ़ा जाता है। इससे जापानी उच्चारण चीनी उच्चारण से बहुत अलग हो सकता है। जैसे, माओ ज़ेदोंग (毛沢東) को मो ताकुतो पढ़ा जाता है, और वानरराज सुन वुकोंग (孫悟空) को सोन गोकू।

आजकल, चीनी नाम जो जापान में जाने-माने नहीं हैं, उन्हें काताकाना में लिखा जाता है जो उसके चीनी उच्चारण के क़रीब है। ख़ासकर ऐसे शहर हो मंगोल या मांचु भाषाओं से आए हों।

हिंदी नामजापानी नाम
रोमाजी
काताकानाकानजी
हारबिनहारुबिनハルビン哈爾浜
उरुमचीउरुमुचिウルムチ烏魯木斉
चिचिहारचिचिहारुチチハル斉斉哈爾
ल्हासारासाラサ拉薩

प्रसिद्ध चीनी शहरों के नाम उनके पुराने अंग्रेज़ी नामों के अनुसार कहे जाते हैं, उनके ओनयोमी या मंदारिन या कैंटोनी चीनी उच्चारण के बावजूद।

हिंदी नाममंदारिन नाम (पिनयिन और हिंदी)जापानी नाम
कानजीकाताकानारोमाजी
हांग कांगXianggang

शिआंगगांग

香港ホンコンहोनकोन
बीजिंग (पहले पेकिंग)Beijing

बेइजिंग

北京ペキンपेकिन
शंघाईShanghai

शांगहाइ

上海シャンハイशानहाइ
नांजिंग (पहले नांकिंग)Nanjing

नानजिंग

南京ナンキンनानकिन
ताइपेTaibei

ताइबेइ

台北タイペイताइपेइ
मकाउAo'men

आओ मेन

澳門マカオमाकाओ
काओशिउंगGaoxiong

गाओशिंओंग

高雄カオシュン / タカオकाओशुन/ताकाओ

उच्चारण सहायता

इन सारे समस्याओं के कारण, कभी-कभी कानजी के उच्चारण उनके पास छोटे अक्षरों में दर्शाया जाता है, जिन्हें फ़ुरिगाना कहते हैं।  ऐसा अक्सर बच्चों या जापानी सीखने वालों के लिए किताबों में किया जाता है। अख़बारों और मांगा में भी दुर्लभ शब्दों या कानजी के लिए भी किया जाता है।

स्थानीय  विकास और चीनी से विचलन

क्योंकि कानजी मूलतः चीनी हानज़ी अक्षर हैं, अधिकतर अक्षरों के अर्थ चीनी और जापानी में एक ही हैं। फिर भी, शताब्दियों के विकास के बाद, ऐसे कई कानजी हैं जिनका अर्थ चीनी भाषा में अलग है।

इसके मुख्य कारण हैं:
  • जापान में बने अक्षरों का उपयोग
  • जिन अक्षरों को जापानी में अलग अर्थ दिया गया
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापानी का सरलिकरण (शिनजिताई)

कोकुजी

जापानी में कोकुजी (国字, देशी अक्षर) उन अक्षरों को कहते हैं जो चीन के बाहर बने हैं। जापान में बने कानजी को वासेई कानजी (和製漢字) कहते हैं। उन्हें चीनी अक्षरों की तरह ही दो घटकों को जोड़कर बनाया जाता है, पर जैसे चीन में न हुआ हो। ऐसे अक्षरों को कोरियाई में गुकजा (國字) कहते हैं।

क्योंकि कोकुजी को स्थानीय शब्दों के लिए बनाया जाता है, उनके केवल कुन पठन होते हैं। पर कुछ के ओन पठन भी हैं।

जोयो कानजी में निम्नलिखित ९ कोकुजी हैं।

  • どう दो, はたら(く) हातारा(कु) "काम", सबसे आम कोकुजी है जिसे क्रिया हातारा(कु) (働く, काम करना) में इस्तेमाल किया जाता है।
  • こ(む) को(मु) जिसका क्रिया कोमु (込む, भीड़ होना) में इस्तेमाल होता है।
  • にお(う) निओ(उ), जिसका इस्तेमाल क्रिया निओउ (匂う, सुगंधित होना)
  • はたけ हाताके "फ़सल का मैदान"
  • せん सेन "तंत्रिका"
  • とうげ तोगे "दर्रा"
  • わく वाकु, "फ़्रेम"
  • へい हेइ, "दीवार"
  • しぼ(る) शिबो(रु), "दबाना" (disputed; see below); a

जिनमेइयो कानजी में

  • さかき साकाकी, एक तरह का पेड़
  • つじ त्सुजी "चौराहा"
  • もんめ मोनमे (वज़न की इकाई)

ह्योगाइजी

  • しつけ शित्सुके  "प्रशिक्षण, जानवर का पालना"

कोक्कुन

In addition to kokuji, there are kanji that have been given meanings in Japanese different from their original Chinese meanings. These are not considered kokuji but are instead called kokkun (国訓) and include characters such as:

अक्षरजापानीचीनी
पठन
अर्थपिनयिनअर्थ
फ़ुजिविस्टेरियातेंग
डंडा, बेल

[14]

ओकि
अपतटीयचोंग
धोना
椿त्सुबाकि
कैमेलियाचुन
महोगनी
आयु
 आयु मछलीनिआनकैटफ़िश (आम तौर पर )

कानजी शिक्षा

अधिकतर जोयो कानजी का चित्र, जहाँ क्योइकु कानजी को कक्षा के अनुसार रंगा गया है।

जापनी विद्यार्थियों को बुनियादी १००६ कानजी अक्षर (क्योइकु कानजी) कक्षा ६ तक सीखना पड़ता है। इनके सीखने का एक निश्चित क्रम है। विद्यार्थियों को नवीं कक्षा तक सभी २१३६ जोयो कानजी सीखने पड़ते हैं।[15] 

जापानी सरकार कानजी केइतेई (日本漢字能力検定試験 निहोन कानजी नोर्योकु केनतेइ शिकेन  "जापानी कानजी योग्यता परीक्षा") लेती है, जो कानजी लिखने और पढ़ने की क़ाबिलियत परखता है। इसके उच्चतम स्तर में लगभग छह हज़ार कानजी की परीक्षा ली जाती है।

स्थानीय  विकास और चीनी से विचलन

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