क़
क़ देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। हिन्दी–उर्दू के कई शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे कि क़त्ल, क़ानून, क़मर, क़यामत, क़ुरबानी और क़िला। इस अक्षर का वर्णन कई भाषाओं तथा अन्य लिपियों में करी गई, जैसे, क़ाज़ाक़ भाषा में इसे Қ, қ लिखा जाता है, अरबी लिपि में इसे ق लिखा जाता है, जिस अक्षर का नाम "क़ाफ़" है, इब्रानी लिपि में इसे ק लिखा जाता है, जिस अक्षर का नाम "क़ौफ़" है, अरामाई लिपि में इसे ܩ लिखा जाता है, जिस अक्षर का नाम "क़ौप" है और अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसके उच्चारण को q के चिन्ह से लिखा जाता है।
अघोष कण्ठ्य संघर्षी
"क़" को भाषाविज्ञान के नज़रिए से "अघोष अलिजिह्वीय स्पर्शी" वर्ण कहा जाता है (अंग्रेजी में इसे "वाएस्लेस युवुलर प्लोसिव" कहते हैं)।
अशुद्ध उच्चारण
"क़" का उच्चारण बहुत लोग "क" से मिलता–जुलता कर देते हैं। इस से ज़्यादातर कोई कठिनाई नहीं पैदा होती क्योंकि यह दोनों ध्वनियाँ काफ़ी समीप हैं। अरबी भाषी लोग "क" और "क़" की ध्वनियों में काफ़ी अन्तर करते हैं, लेकिन वह भी विदेशियों द्वारा इन दोनों को एक जैसे उच्चारित करने से असमंजस में नहीं पड़ते क्योंकि बहुत कम शब्द हैं जिनमें इन दोनों को मिला देने से ऐसा असमंजस पैदा हो।[1] फिर भी हिन्दी–उर्दू में कुछ शब्द हैं जिनमें ग़लत अर्थ निकल सकता है (हालाँकि सन्दर्भ से अशुद्ध उच्चारण के साथ भी सही अर्थ भाँपा जा सकता है):
ईरानी उच्चारण
ईरान में 'क़' को अक्सर 'ग़' की तरह उच्चारित किया जाता है। इस से बहुत से ऐसे शब्द हैं जिनमें हिन्दी-उर्दू और ईरानी फ़ारसी में अंतर आ जाता है। मिसाल के लिए 'इन्क़लाब' को 'इन्ग़लाब', 'साक़ी' को 'साग़ी', 'क़ुर्बान' को 'ग़ुर्बान' और 'क़ीमत' को 'ग़ीमत' कहा जाता है।[2] भारत में प्रचलित जिन्न की कहानियों में अक्सर जिन्न अपने मालिक को "आक़ा" बुलाता है। यही "मालिक" के अर्थ वाला शब्द ईरान में बदलकर "आग़ा" हो गया, जिस से इस्माइली शियाओं के धार्मिक नेता "आग़ा ख़ान" का नाम आया है।