आशा पारेख
आशा पारेख (जन्म: 2 अक्टूबर 1942) बॉलीवुड अभिनेत्री, निर्माता और निर्देशक हैं। वह 1959 से 1973 के मध्य सर्वश्रेष्ठ तारिकाओं में से एक थीं।[2][3] 1992 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री के साथ सम्मानित किया गया।
आशा पारेख | |
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जन्म | 2 अक्टूबर 1942 कर्नाटक, भारत[1] |
पेशा | अभिनेत्री, निर्माता, नर्तकी |
कार्यकाल | 1952–वर्तमान |
जीवन
आशा पारेख गुजराती हैं[4] जिनका जन्म 2 अक्टूबर 1942 को सुधा और बच्चूभाई पारेख, जो गुजराती बनिया थे, के यहाँ हुआ था।[5] उनकी माँ ने उन्हें कम उम्र में भारतीय शास्त्रीय नृत्य कक्षाओं में दाखिला दिलाया और उन्होंने पंडित बंसीलाल भारती सहित कई शिक्षकों से नृत्य सीखा। आशा आजीवन अविवाहित रही।
फिल्मी सफर
आशा पारेख ने अपने करियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में बेबी आशा पारेख नाम से की थी। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक बिमल रॉय ने उन्हें स्टेज समारोह में नृत्य करते देखा और उन्हें दस साल की उम्र में माँ (1952) में लिया और फिर उन्हें बाप बेटी (1954) में दोहराया। इस फिल्म की विफलता ने उन्हें निराश किया और भले ही उन्होंने कुछ और बाल भूमिकाएं कीं, फिर भी उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा को फिर से जारी किया। सोलह साल की उम्र में उन्होंने फिर से अभिनय करने की कोशिश की और एक नायिका के रूप में अपनी शुरुआत की। लेकिन उन्हें अभिनेत्री अमीता के लिये विजय भट्ट की गूँज उठी शहनाई (1959) से खारिज कर दिया गया, क्योंकि फिल्म निर्माता ने दावा किया था कि वह प्रसिद्ध अभिनेत्री बनने के काबिल नहीं थी। ठीक आठ दिन बाद, फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने उन्हें शम्मी कपूर के विपरीत दिल देके देखो (1959) में नायिका के रूप में लिया। इसने उन्हें एक बड़ा सितारा बना दिया।[6]
इस फिल्म से नासिर हुसैन के साथ उनका लंबा और फलदायी जुड़ाव रहा। उन्होंने अपनी छः: और फिल्मों में आशा को नायिका के रूप में लिया; जब प्यार किसी से होता है (1961), फिर वही दिल लाया हूँ (1963), तीसरी मंज़िल (1966), बहारों के सपने (1967), प्यार का मौसम (1969) और कारवाँ (1971)।[7] उन्होंने उनकी फ़िल्म मंज़िल मंज़िल (1984) में एक कैमियो भी किया। आशा पारेख को मुख्य रूप से उनकी अधिकांश फिल्मों में ग्लैमर गर्ल / उत्कृष्ट नर्तकी के रूप में जाना जाता था। जब तक कि निर्देशक राज खोसला ने उन्हें अपनी तीन फिल्मों में अलग तरह की भूमिकाएँ नहीं दी; दो बदन (1966), चिराग (1969) और मैं तुलसी तेरे आँगन की (1978)। निर्देशक शक्ति सामंत ने उन्हें अपनी अन्य फिल्मों, पगला कहीं का (1970) और कटी पतंग (1970) में अधिक नाटकीय भूमिकाएँ दीं। बाद वाली के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
प्रमुख फिल्में
नामांकन और पुरस्कार
- अखंड सौभाग्यवती के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का गुजरात राज्य पुरस्कार (1963)[8]
- फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार चिराग के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नामांकन' (1969)
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार कटी पतंग के लिए (1971)
- फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार उधार का सिंदूर के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के रूप में नामांकन (1976)
- फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मैं तुलसी तेरे आंगन की के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के रूप में नामांकन (1978)
- दादा साहब फालके पुरस्कार से सम्मानित (2022)
- पद्म श्री कला में सम्मानित(1992)[9][10]
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार 2022 से नवाजा गया है