अंटार्कटिक सन्धि तंत्र

अण्टार्कटिक सन्धि तन्त्र (Antarctic Treaty System) दिसम्बर १, १९५९ में हस्ताक्षरित होने वाली अण्टार्कटिक सन्धि (Antarctic Treaty) और उस से सम्बन्धित समझौतों का सामूहिक नाम है। अण्टार्कटिक पृथ्वी का इकलौता महाद्वीप है जहाँ कोई मनुष्य मूल रूप से नहीं रहता था और यह सन्धि व्यवस्था अण्टार्कटिका के विषय में सभी अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों को निर्धारित करता है। अंटार्कटिक सन्धि १९६१ से लागू हुई और सन् २०१६ तक इसपर ५३ देश हस्ताक्षर कर चुके थे।[1] इस सन्धि के अन्तर्गत अण्टार्कटिका को एक वैज्ञानिक संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया और इस महाद्वीप पर किसी भी प्रकार की सैनिक कार्यवाई पर पाबन्दी लगा दी गई। साथ ही अण्टार्कटिका के मामलों पर निर्णय करने के लिये एक वार्षिक "अण्टार्कटिक सन्धि परामर्श बैठक" (Antarctic Treaty Consultative Meeting या ATCM) की परम्परा चालू की गयी।

██ परामर्शी सदस्य देश जो अंटार्कटिका के किसी भाग पर सम्प्रभुता जतलाते हैं ██ परामर्शी सदस्य देश जो भविष्य में सम्प्रभुता का दावा कर सकते हैं ██ अन्य परामर्शी सदस्य देश ██ बिना परामर्श के दर्जे वाले सदस्य देश ██ देश जो सदस्य नहीं हैं

सम्प्रभुता वर्जित

जब सन्धि पर पहले हस्ताक्षर हुए तब सात देश अण्टार्कटिका के अलग-अलग क्षेत्रों पर अपनी सम्प्रभुता का दावा करते थे, यानि उन क्षेत्रों को अपने देशों का भाग बताते थे। सन्धि ने यह कहा कि कोई भी हस्ताक्षर करने वाला न तो अपने दावे से हट रहा है, न किसी और का दावा मान रहा है और न ही कोई नया दावा करेगा। मिसाल के लिये फ्रांस अण्टार्कटिका के आदेली धरती नामक क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता है लेकिन सन्धि के अन्तर्गत वह इस दावे को किसी और से मनवाने में अक्षम है। वहीं भारत अण्टार्कटिका के किसी भी क्षेत्र पर किसी भी देश की प्रभुता नहीं स्वीकारता और पूरे महाद्वीप को पूर्ण मानव जाति की सम्पत्ति मानता है।

दो प्रकार के सदस्य देश

अंटार्कटिक सन्धि में दो प्रकार के सदस्य देश हैं - परामर्शी (consultative) और अपरामर्शी (non-consultative)। सन्धि के अनुसार जब हर साल अंटार्कटिक सन्धि परामर्श बैठक होती है तो परामर्शी देशों को प्रस्तावों पर वोट देने का अधिकार होता है लेकिन अपरामर्शी सदस्यों को यह अधिकार नहीं होता। परामर्शी सदस्य बनने के लिये किसी देश को यह दिखाना होता है कि वह अंटार्कटिका में अनुसंधान करने में सक्रीय है। इस सक्रीयता का एक पहलू अंटार्कटिका में अनुसंधान केन्द्र स्थापित करना होता है जहाँ उस देश के वैज्ञानिक दस्ते रहकर काम कर सकें। अंटार्कटिका का वातावरण कठोर है और वहाँ पहुँचना भी दुर्गम है इसलिये यह कम ही देश कर पाए हैं। २०१६ में विश्व के २०० से अधिक कुल देशों में से अंटार्कटिक सन्धि के ५३ सदस्य थे, जिनमें से केवल २९ परामर्शी दर्जा रखते थे।[2]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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